Saturday, October 3, 2009

पप्पू का प्रश्न खुशदीप अंकल से

(खुशदीप जी, नाराज मत होना अपुन तो आप ही का बताया फंडा इस्तेमाल कर रहे हैं।)


खुशदीप जी ने अपनी टिप्पणी में हमें बतायाः

...और ये पप्पू तो अभी से ही ब्लॉगिंग के टिप्स, टिप्पणियों के तरीके... कंप्यूटर का ज्ञान... पता नहीं क्या-क्या
तेजी के साथ सीख रहा है।

जैसे मदारी साँप और नेवले की लड़ाई दिखाने की बात कह कर और डुगडुगी बजा कर मजमा इकट्ठा कर लेता है और बाद में साँप नेवले की लड़ाई दिखाने के बदले ताबीज बेचना शुरू कर देता है वैसे ही हमने भी ऊपरोक्त बातें लिखकर आप लोगों की भीड़ इकट्ठा किया है क्योंकि हमें भी अपनी ताबीज बेचना है। घबराइये नहीं भाई हम पप्पू के प्रश्न पर भी आयेंगे पर थोड़ा धैर्य धारण कीजिए, ताबीज बेचने के रूप में थोड़ा सा हमे झेलिए।

अब हम यदि पहले कहते कि कल हमारा धंधा मंदा रहा, हमारे नियमित पाठक भी हमें पढ़ने नहीं आए तो क्या आप यहाँ आते? अरे, आना क्या झाँकते भी नहीं हुजूर। खैर, हमें पढ़ना तो क्या, कल किसी ने भी किसी को शायद ही पढ़ा होगा। हमने ही कल एक दो लोगों को छोड़ कर किसी को नहीं पढ़ा, आखिर सभी जगह गांधी ही गांधी होगा तो उन्हें पढ़ने कौन जाए? सभी जगह वही घिसे पिटे महात्मा और वही राष्ट्रपिता के सिवाय कुछ और पढ़ने के लिए मिलेगा क्या? खैर, हमें कल अविनाश वाचस्पति जी और राजकुमार ग्वालानी जी के पोस्ट क्रमशः "गर महात्मा गांधी जी ने अपना हिन्दी ब्लोग बनाया होता?" और "गांधी को युवाओं से सरोकार नहीं" पसंद आया। पर हमें नहीं लगता कि गांधी जी अपना हिन्दी ब्लोग बनाते। भई बनाना ही होता तो अपनी खुद की ईजाद की गई "बादशाह राम" और "बेगम सीता" वाली हिन्दुस्तानी भाषा का ही ब्लॉग बनाते, हिन्दी से उन्हे क्या लेना देना था। अस्तु, हमने अपनी पसंद के दोनों लेखों के लिंक यहाँ पर दे दिया है और आप यदि पसंद करें तो उन्हें पढ़ सकते हैं पर शर्त यह हैं कि वहाँ पर हमारी टिप्पणी को भी आपको पढ़ना होगा। तो देखा आपने कि कैसे हमने भी अपनी टिप्पणी वाली ताबीज बेचना शुरू कर दिया।

चलिए अब आते हैं पप्पू के प्रश्न पर।

खुशदीप जी पप्पू को लेकर गार्डन में घूमने के लिये गये। वहाँ पर एक आदमी, जिसकी तोंद निकली हुई थी, को देख कर पप्पू ने पूछा, "अंकल, अंकल, उस आदमी का पेट इतना बड़ा क्यों है?" खुशदीप जी ने बताया, "बेटा पप्पू, वो 'उद्योगपति' है। उद्योगपतियों के पेट बहुत बड़े हो जाते हैं।"

थोड़ी देर के बाद पप्पू ने एक गर्भवती महिला को देखा और बोला, "अंकल, अंकल, देखिए एक और उद्योगपति!"

खुशदीप जी ने भन्ना कर कहा, "चुप बे, वो 'पतिउद्योग' है।"

9 comments:

राजीव तनेजा said...

बहुत ही मज़ेदार...
आपका मदारीपना हमको बहुत भाया ...इसीलिए तो आपकी पोस्ट पे मैँ टिप्पणी करने को चला आया

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

खुशदीप जी पप्पू को लेकर गार्डन में घूमने के लिये गये। वहाँ पर एक आदमी, जिसकी तोंद निकली हुई थी, को देख कर पप्पू ने पूछा, "अंकल, अंकल, उस आदमी का पेट इतना बड़ा क्यों है?" खुशदीप जी ने बताया, "बेटा पप्पू, वो 'उद्योगपति' है। उद्योगपतियों के पेट बहुत बड़े हो जाते हैं।"

थोड़ी देर के बाद पप्पू ने एक गर्भवती महिला को देखा और बोला, "अंकल, अंकल, देखिए एक और उद्योगपति!"

खुशदीप जी ने भन्ना कर कहा, "चुप बे, वो 'पतिउद्योग' है।"

सुन्दर प्रसंग, अवधिया जी !

शिवम् मिश्रा said...

बहुत ही मज़ेदार!

Khushdeep Sehgal said...

अवधिया जी, खुशदीप अंकल तो शुक्र मना रहे हैं...जैसी कि पप्पू को जींस के जरिए बाल की खाल निकालने की आदत मिली हुई है, कहीं अगला प्रश्न ये नहीं दाग देता...ये पतिउद्योग...कौन से सेक्टर में आता है... प्राइवेट लिमिटेड या पब्लिक लिमिटेड...बताइए फिर मैं क्या जवाब देता...

अविनाश वाचस्पति said...

हमारा पप्‍पू यहां खुशदीप अंकल से बतिया रहा है
हम भी सोच रहे हैं तब से
पप्‍पू कहां गया
किस्‍सा सुना रहा था
कि गायब हो गया
http://words.sushilkumar.net/2009/10/blog-post.html
यहां पर किस्‍सा सुना जारी रखें

राज भाटिय़ा said...

धीरे धीरे पप्पू समाझदार हो जायेगा जी.
मजेदार

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" said...

लो जी, जब आपने मदारी वाली डुगडुगी बजा ही दी है तो अपना भी फर्ज बनता है कि टिप्पणी रूपी ताली पीट दें :)

Gyan Darpan said...

लो जी टिप्पणी रूपी ताली :)

Anil Pusadkar said...

बढिया डमरू बजाया अवधिया जी आपने।अगर ये काम चल निकला तो जमूरे की नौकरी के लिये अभी से मेरा एप्लिकेशन जमा कर लिजियेगा।लोक्ल जमूरा हुं टी ए डी ए भी नही लूंगा।मज़ा आ गया।