Tuesday, November 17, 2009

लड़की भगाकर अर्थात् हरण करके उससे विवाह करने का चलन पौराणिक काल से चला आ रहा है

मेरे मित्र के साले महोदय अपने पड़ोस की कन्या को लेकर भाग गये। यह लगभग डेढ़ साल पहले की बात है। मित्र के ससुराल वाले मेरे मित्र को बहुत मानते हैं इसलिये इस मामले में क्या करना है इस बात का निश्चय उन्हें ही करना था। उन्होंने सारा किस्सा मुझे बताया और इस मामले में मेरी सलाह माँगी। उन्होंने बताया कि तीन दिनों तक छिपे रहने के बाद उनके साले ने अपने घर से सम्पर्क स्थापित कर बता दिया है कि वह कहाँ है। अन्तर्जातीय मामला है। लड़की वाले धनी और सम्पन्न हैं और बुरी तरह से बिफड़े हुए भी हैं किन्तु बहुत खोज करवाने के बाद भी उन्हें अपनी लड़की और मित्र के साले का पता नहीं चल सका है। अब इस मामले में क्या करना चाहिये।

मैंने कहा कि भाई यदि लड़का और लड़की सचमुच शादी करना चाहते हैं तो उनकी शादी कर ही देनी चाहिये। इस मामले में जाति-पाँति देखना बेकार है। मेरे कहने से मित्र के ससुराल वाले उनकी शादी करवाने के लिये तैयार हो गये। पूरी सावधानी बरतते हुए आर्यसमाज में उन दोनों का विवाह करा दिया गया और लड़की वालों को भनक भी नहीं लगी। शादी हो जाने पर लड़की वाले भड़के तो बहुत किन्तु कुछ भी नहीं कर पाये और आज वह दम्पति सुखी गृहस्थ जीवन बिता रहा है।

यह तो हुआ किस्सा। किन्तु इस प्रकार से विवाह करने का चलन हमारे यहाँ पौराणिक काल से चला आ रहा है। कृष्ण और विदर्भ के राजा भीष्मक की पुत्री रुक्मणी एक दूसरे पर आसक्त थे। रुक्मणी का विवाह चेदिराज शिशुपाल के साथ करना तय हो गया तो कृष्ण रुक्मणी को हर लाये अर्थात् भगा लाये और उससे विवाह कर लिया।

इसी प्रकार अर्जुन और कृष्ण की बहन सुभद्रा एक दूसरे से प्रेम करते थे किन्तु सुभद्रा के बड़े भाई बलराम नहीं चाहते थे कि उनका विवाह हो। कृष्ण की सलाह के अनुसार ही अर्जुन सुभद्रा को भगा लाये याने कि हर लाये और विवाह किया।

वत्स राज्य के पुरुवंशीय राजा उदयन भी अवन्ति राज्य की राजकुमारी वासवदत्ता को हर लाये थे और उनसे विवाह किया था, संस्कृत के महाकवि भास ने तो उदयन और वासवदत्ता की प्रेमकथा पर "स्वप्नवासवदत्ता", "प्रतिज्ञायौगन्धरायण" जैसे नाट्यों की रचना कर डालीं। पृथ्वीराज के द्वारा संयोगिता को भगा कर विवाह करने के विषय में आप तो सभी जानते ही हैं।

इन सभी उदाहरणों से स्पष्ट है कि लड़की भगाकर उससे शादी करने का चलन पौराणिक काल से चला आ रहा है।


चलते-चलते

विवाह के बाद विदा होते समय वर अत्यन्त खुश रहता है और कन्या खूब रोती है।

और एक बार विदा हो जाने के बाद कन्या जीवन भर खुश होती है और वर जीवन भर रोता है।

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"संक्षिप्त वाल्मीकि रामायण" का अगला पोस्टः

पम्पासर में राम हनुमान भेंट - किष्किन्धाकाण्ड (1)

19 comments:

निर्मला कपिला said...

अच्छा आलेख है शुभकामनायें

ब्लॉ.ललित शर्मा said...

भागे बर तैयार हो ही तभे त उढरिया भागही
हमु हां पहिले भी भगाए के उदिम करेन कौनो नई भागिस, अब एक झन हावे तौनो ला भगाए के उदिम करत हन उहु हा नी भागत हवे, कईसे करबे गा जम्मो के किस्मत मा नई होय भागना अउ भगाना, जय होय महाराज

Mohammed Umar Kairanvi said...

बहुत बढिया, चलते-चलते अपने रोने के बारे में मैं कुछ नहीं कहता, मेरी बीवी भी धान के देश में घूमने लगी है,उसने पढ लिया तो पता नहीं कब तक रोना पडे, इस लिए उलटा लिख देता हूं
यह आपकी सबसे बेकार पोस्‍ट है

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

काश, हमारे वक्त और प्रदेश में भी यह प्रथा होती

Dr. Shreesh K. Pathak said...

पौराणिक काल में अंतरजातीय विवाहों के भी कुछ उदहारण देंगे अवधिया जी..मेरे एक मित्र को जरूरत है..शायद उसकी बात बन जाये..

Unknown said...

main aapke saath bhagne ke liye taiyaar hoon...

bolo kab ka plan hai ?

Unknown said...

@ श्रीश पाठक 'प्रखर'

श्रवणकुमार के पिता वैश्य और माता शूद्र थी देखें - श्रवणकुमार की कथा


@ AlbelaKhatri.com said...

भूल जाइये अलबेला जी, आपका नंबर नहीं नहीं लगने वाला क्योंकि मेरे साथ आज भी भागने के लिये तीन चार सुन्दर सुन्दर बुढ़ियाएँ तैयार हैं पर मेरी चिरयौवना भार्या मुझे छोड़कर भागने के लिये तैयार नहीं हो रही है।

अजय कुमार said...

पहले भाग कर शादी करते थे ,अब तो शादी करके
भागे भागे फ़िरते है

ब्लॉ.ललित शर्मा said...

@ अवधिया जी-मेरे साथ आज भी भागने के लिये तीन चार सुन्दर सुन्दर बुढ़ियाएँ तैयार हैं पर मेरी चिरयौवना भार्या मुझे छोड़कर भागने के लिये तैयार नहीं हो रही है।
पोस्ट के माध्यम से आप अपने मंसुबे बांध रहे हो,
क्या बात है, और वो भी तीन-चार सुंदर बु्ढियाँ..... हा हा हा

शिवम् मिश्रा said...

बढ़िया आलेख !
कमेन्ट मोडरेशन पर आपकी राय के लिए बहुत बहुत धन्यवाद !

Khushdeep Sehgal said...

अवधिया जी,
क्यों सब को पृथ्वीराज चौहान बनाने में लगे हैं...

वैसे जो आपने रोने वाला किस्सा सुनाया है...लड़की की विदाई के समय उसके माता-पिता से एक बात और सुनने को मिलती है...बड़े नाज़ो से पाला है...इतनी छोटी सी थी...
(वो छोटी सी थी...बाकी हम तो जैसे पैदा होते ही इतने ढींग के ढींग हो गए थे...)

जय हिंद

Anonymous said...

awadiya ji apki post jarur padta per muje yah post achi nahi lagi koiki ek ya do jano ke nam gina dene se koi bhi prata ashi nahi ho sakti ladki ya ladke ka bahna achi bat nahi hai ,logo per es ka pabhav acha nahi jata hai,yah hameri sanskiti ke viparit hai

Unknown said...

@ HEMANT KOTHARI

कोठारी जी, लगता है कि आपने सिर्फ पोस्ट का शीर्षक पढ़ कर ही टिप्पणी कर डाली क्योकि आपने अपनी टिप्पणी में ही लिखा है कि मैं आपकी पोस्ट पढ़ता पर ...। यदि आपने पोस्ट को पढ़ा होता तो आप यह नहीं कहते कि ये हमारी संस्कृति के विपरीत है। मुझे स्वयं अपनी संस्कृति अत्यन्त प्रिय है और मैं इसके विपरीत कुछ भी नहीं लिख सकता। इस पोस्ट में भी मैंने ऐसी कोई भी बात नहीं लिखी है जो कि हमारी संस्कृति के विरुद्ध हो।

Batangad said...

दरअसल पुरानी चीजों से हम अकसर रुढ़ियां लेते हैं बस। मामला यहीं फंसता है।

संजय बेंगाणी said...

कृष्ण रूकमणी को भगा कर लाए थे. जब भगवान भगा सकते है तो भक्त क्यों नहीं. बस कानुन हाथ में न लें. नियत साफ रखें. :)

ghughutibasuti said...

क्या प्रेमी चलकर साथ नहीं जा सकते जो भागना पड़ता है? यदि इतना भागना, भगाना होता है तो दौड़ में कोई पदक क्यों नहीं मिलते देश को? :D
घुघूती बासूती

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" said...

आपकी इस पोस्ट से ऎसे कईं प्रेमियों को प्रेरणा मिल सकती है जो कि भागने का मंसूबा बनाएं बैठे हैं :)

राज भाटिय़ा said...

जी.के. अवधिया जी कृष्ण भगवान भी मस्त थे जी ,वेसे हम ने भगा कर नही सात बार घुमा कर फ़िर शादी की थी, भगाने के लिये कोई भागने वाली भी तो चाहिये.....

Rakesh Singh - राकेश सिंह said...

लड़की यदि राजी है और घर वाले लाख कोशिशों के बावजूद नहीं मान रहे तो भगा कर शादी करना पुण्य का काम है | सार्थक पोस्ट |