Wednesday, November 25, 2009

प्यार से फिर क्यों डरता है दिल

प्यार शब्द इतना प्यारा है कि इसके आकर्षण से कोई भी अछूता नहीं रह सकता।

वैसे तो मानव जीवन भर आकर्षित रहता है प्यार से, किन्तु इसका आकर्षण किशोर अवस्था और युवावस्था के वयःसन्धि याने कि सोलह से पच्चीस वर्ष तक के उम्र मे अपनी चरमसीमा में रहता है। उम्र का ये सोलह से पच्चीस वर्ष का अन्तराल गधा-पचीसी कहलाता है और इस काल में प्रायः लोग आकर्षण को ही प्रेम समझने की भूल कर जाते हैं। विपरीत लिंग वालों का एक दूसरे के प्रति आकर्षित होना प्राणीमात्र का ईश्वर प्रदत्त स्वभाव है। आप चाहे पुरुष हों या महिला, किन्तु आप में से कोई भी ऐसा नहीं होगा जिसे जीवन में कभी न कभी किसी विपरीत लिंग वाले ने आकर्षित न किया हो। जरा अपने कालेज के दिनों को याद कर के देखें, आपको स्वयं ही हमारी इस बात की सत्यता का प्रमाण मिल जायेगा। अजी आप ही क्या, हम स्वयं अपने गधा-पचीसी की उम्र में सैकड़ों बेवकूफियाँ कर चुके हैं। किन्तु अपनी उन बेवकूफियों को अपने इस पोस्ट में बता कर हमें अपने अनुजों तथा अनुजाओं के समक्ष लज्जित होना उचित नहीं लगता।

यहाँ पर यह बता देना हम उचित समझते हैं कि आकर्षण प्रेम नहीं है यद्यपि प्रेम में आकर्षण का होना स्वाभाविक है। जिस प्रकार से लोग आकर्षण को ही प्रेम समझ लेते हैं उसी प्रकार से अक्सर काम-वासना को भी प्रेम समझ लिया जाता है जबकि वासना प्रेम नहीं है। प्रेम में हमेशा वासना का होना भी आवश्यक नहीं है। जहाँ माँ-बेटा, भाई-बहन, बाप-बेटी के बीच स्नेह वासनारहित प्रेम होता है वहीं पति-पत्नी के बीच प्रेम में वासना का होना भी आवश्यक होता है।

विवाहित जीवन के लिये प्रेम का बहुत महत्व है और पति-पत्नी के मध्य प्रेम का होना आवश्यक है। वास्तव में विवाहित जीवन का आधार ही प्रेम होता है।

जिससे प्रेम किया जाता है उसके प्रति समर्पण की भावना होना ही प्रेम को सर्वोत्तम बनाता है। वासनारहित ऐसा प्रेम जिसमें सिर्फ पूर्ण समर्पण की भावना ही निहित होती है, प्लूटोरियन लव्ह अर्थात् आत्मिक प्रेम कहलाता है। कुछ लोगों के अनुसार प्लूटोरियन लव्ह या आत्मिक प्रेम मात्र काल्पनिक आदर्श है किन्तु ऐसे लोग भी हैं जो इसे एक वास्तविकता मानते हैं। सुप्रसिद्ध कहानीकार चन्द्रधर शर्मा 'गुलेरी' जी की विश्वविख्यात कहानी "उसने कहाथा" प्लूटोरियन लव्ह या आत्मिक प्रेम का एक उत्तम उदाहरण है।

चलते-चलते

जब से शादी हुई थी दम्पत्तिद्वय प्रतिसप्ताह रविवार को फिल्म देखने जाया करते थे। इस प्रकार से दस साल बीत गये।

एक रविवार को जब दोनों पिक्चर देखने के लिये निकले तो पति ने पत्नी से कहा, "तुम्हें फिल्में बहुत पसंद हैं इसीलिये, फिल्मों में अधिक रुचि न होने के बावजूद भी, मैं आज तक हर सप्ताह तुम्हें पिक्चर ले जाते रहा हूँ। मुझे तो बाग-बगीचों में घूमना फिरना ज्यादा अच्छा लगता है। यदि आज हम दोनों पिक्चर जाने के बदले किसी बगीचे में जायें तो तुम्हें बुरा तो नहीं लगेगा?"

पत्नी बोली, " मैं तो समझती थी कि आपकी फिल्मों में बहुत अधिक रुचि है इसीलिये आपके साथ फिल्म देखने चली जाया करती थी। मुझे भी फिल्मों में अधिक रुचि नहीं है और मैं भी बाग-बगीचों में घूमना बहुत पसंद करती हूँ।।"

तो बन्धुओं, वर्षों साथ रहने के बावजूद हम अनेक बार एक-दूसरे को पूरी तरह से जान नहीं पाते।


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लक्ष्मण-सुग्रीव संवाद - किष्किन्धाकाण्ड (9)

12 comments:

निर्मला कपिला said...

बहुत सुन्दर आलेख है धन्यवाद्

श्यामल सुमन said...

जीवन तो बस प्यार है प्यार भरा संसार।
सांसारिक इस प्यार में होता अब व्यापार।।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com

ब्लॉ.ललित शर्मा said...

कुल मिला कर प्रेम सभी जगह निहित है आकर्षण होने पर ही मामला आगे बढ़ता है।

Dr. Shreesh K. Pathak said...

प्रेम और आकर्षण में फरक कैसे कर सकते हैं..इस गधा-पचीसी में...और नीचे दिए गए लघुकथा में जो दम्पती है वे कैसा प्रेम कर रहे थे कि प्रत्येक की प्रतीति नहीं जान सके थे...कोई सेट फ़ॉर्मूला नहीं है..प्रेम चाहे परिपक्व हो अथवा अपरिपक्व लगे और उम्र के किसी मोड़ पर हो शुरूआत तो आकर्षण से होती है..कालांतर में आपसी समझ-बूझ से उस प्रेम को जीवन मिलता है..फिर क्या सही है क्या गलत है इसका पैमाना केवल प्रेम और आकर्षण की कसौटी से कैसे हो सकता है..जबकि दोनों गुथे-मुथे हैं..

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

मैं समझता हूँ कि जो दस साल वाला प्रसंग है उसे इस तरह नहीं लिया जाना चाहिये कि वे दस साल तक पति-पत्नी रहने के बाबजूद यह नहीं समझ पाए कि एक दुसरे की चाहत क्या है ! इसे दुसरे नजरिये से देखि कि उनमे इतना अगाध प्रेम था कि दुसरे की खुसी के लिए कूद को कुर्बान कर रहे थे और कही भी यह अहसास नहीं होने दिया कि मई यह सिर्फ तुम्हारी खुशी के लिए कर रहा हूँ !

रंजू भाटिया said...

प्रेम के रूप आपके चलते चलते में दिख गया .प्रेम का एहसास समझने वाला ही जान सकता है अच्छा लिखा है आपने शुक्रिया

Arshia Ali said...

प्रेम का सुंदर विश्लेषण।
आजकल आप नियमित लेखन कर रहे हैं, यह देख कर अच्छा लगता है।
यदि सम्भव हो, तो कृपया सांइस ब्लागर्स असोसिएशन के लिए हफते दस दिन में कोई लेख दिया करें।

राज भाटिय़ा said...

जिस प्रकार से लोग आकर्षण को ही प्रेम समझ लेते हैं उसी प्रकार से अक्सर काम-वासना को भी प्रेम समझ लिया जाता है जबकि वासना प्रेम नहीं है। प्रेम में हमेशा वासना का होना भी आवश्यक नहीं है। जहाँ माँ-बेटा, भाई
आव्धिया जी बहुत सुंदर बात लिखी आप ने मै अकसर टिअप्ण्णियो मै इसी बात को दोहराता हुं, ओर चलते चल्ते मै जिस जोडे की आप ने बात कही सभी ऎसे नही होते, जिन मै प्यार हो वो तो एक दुसरे की बात बिन कहे समझ जाते है. बहुत अच्छी लगी आप की यह बेहतरीन पोस्ट, बिलकुल आप की तरह से.
धन्यवाद

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" said...

बहुत बढिया तरीके से आपने प्रेम तथा आकर्षण के बीच के अन्तर को स्पष्ट किया.....

Anil Pusadkar said...

ये टेक्निकल मामला है अवधिया जी,इस पर तो हम ज्यादा कुछ बोल भी नही सकते।

विनोद कुमार पांडेय said...

ek badhiya prsang..prem ka koi muly nahi hai yah swtah manushy ke hriday me utpann hota hai..dhanywaad

Gyan Dutt Pandey said...

मनुष्य बन्धन में रहना चाहता है - प्लेटॉनिक प्यार उसकी अभिव्यक्ति है।