Wednesday, December 16, 2009

रोज खाते हो खाना ... पर कैसे सीखा मनुष्य ने खाना पकाना?


स्वादिष्ट खाना भला किसे अच्छा नहीं लगता? किन्तु क्या कभी आपने सोचा है कि स्वादिष्ट खाना पकाने के लिये भूनने, उबालने, तलने आदि विधियों का विकास मनुष्य ने कैसे किया होगा। यह सोचकर मुझे बड़ा आश्चर्य होता है कि आखिर गेहूँ को पीस कर आटा बनाना, गूँथना, तवे में सेंकना और फिर सीधी आँच में उसे फुला कर रोटी बनाना आखिर मनुष्य ने सीखा कैसे होगा? यही जानने के लिये जब मैंने नेट को खँगाला तो मुझे निम्न जानकारी मिलीः

खाना पकाने का आरम्भ कब और कैसे हुआ यह आज तक अस्पष्ट है। ऐसा समझा जाता है कि प्रगैतिहासिक काल में किसी जंगल में आग लग गई होगी जिसके कारण से आदिम मानव को पहली बार जानवर के भुने हुए मांस खाने का अवसर मिल गया होगा। उसे वह भुना हुआ मांस स्वादिष्ट होने के साथ ही साथ चबाने में आसान भी लगा होगा। अपने इस अनुभव से ही मानव को पका कर खाने का ज्ञान हुआ होगा।

माना जाता है कि ईसा पूर्व 9000 में मैक्सिको और मध्य अमेरिका के अर्धचन्द्राकार क्षेत्र, जिसे मेसोमेरिकन (Mesoamerican) से जाना जाता है, की उपजाऊ जमीन में पौधों की रोपाई करके खेती करने का कार्य शुरू हुआ। इस प्रकार से अन्न के साथ ही साथ लौकी, कद्दू, तुरई, मिर्च आदि की खेती का आरम्भ हुआ।

ईसा पूर्व 4,000 मिश्रवासियों ने खमीर उठाना भी सीख लिया। प्याज, मूली और लहसुन भी इन विशाल पिरामिड बनाने वाले मिश्रवासियों के मुख्य आहार में शामिल थे। उनका खाना तीखा और खुशबूदार किन्तु कम वसायुक्त हुआ करता था।

ईसा पूर्व 3,000 में मेसापोटोमिया (Mesapotomia) के किसानों ने शलजम, प्याज, सेम, मटर, मसूर, मूली और शायद लहसुन के भी फसल उगाने शुरू कर दिया था। शायद इस समय तक उन्होंने बतख पालन भी शुरू कर दिया था।

इसी काल में चीनी सम्राट; सुंग लूंग स्ज़े (Sung Loong Sze) ने वनस्पतियों के औषधीय गुणों की भी खोज कर ली थी।

ईसा पूर्व 1,000 का समय रोमन साम्राज्य में खाने के विकास के लिए एक सक्रिय काल था। इस अवधि के दौरान तीव्रता के साथ कृषि क्रांति हुई और भोजन में अनाज का प्रयोग अधिक होने लगा। लोग खेती-बारी के प्रति अधिक निष्ठावान होत गये। यह राष्ट्रवाद की ओर पहला कदम था।

ऐसा विश्वास किया जाता है कि ईसा पूर्व 2,000 में फारस में अनार की उत्पत्ति होने लगी। अनार की खाल का प्रयोग ऊन डाई करने के लिये किया जाने लगा। अनार में कई बीज होने के कारण इसे कई प्राचीन संस्कृतियों में उर्वरता का प्रतीक माना जाने लगा।

ईसा पूर्व 500 में भारत में गन्ने और केले की खेती शुरू हो गई। दक्षिणी मैक्सिको और मध्य अमेरिका में मायान भारतीयों (Mayan Indians) ने रुचिरा (Avocados) पैदा करना शुरू कर दिया। उस अत्यंत विकसित सभ्यता में इस उष्णकटिबंधीय फल के कई गुणों की अत्यन्त सराहना की जाती थी।

ईसा पूर्व 50 में सबसे पहले चीन में खूबानी के पेड़ों का लगाना आरम्भ हुआ। चीन से ही यह खूबानी भारत आया। 13वीं शताब्दी के पूर्व ही ये खूबानी इटली होते हुए इंग्लैंड तक पहुँच चुके थे।

ईसा पश्चात् 400 में शायद जर्मनी के किसी जनजाति ने इटली को पास्ता, आटा के लिए इतालवी शब्द, से परिचित करवाया। पास्ता के लिये जर्मनी में नूडल शब्द का प्रयोग किया जाता था जिसे कि अंग्रेजी ने भी अपना लिया।

सन् 1493 में कोलम्बस (Columbus) ने गुआदेलूप (Guadeloupe) के वेस्ट इंडीज (West Indies) के टापू में अनानास को खोज लिया जिसे कि वहाँ के लोग अनानास नाना (pineapple nana) कहा करते थे जिसका अर्थ है खुशबू या सुगन्ध (fragrance)। हवाई के लोगों ने इस स्वादिष्ट फल को सदियों बाद ही जाना।

पहले आम धारणा थी कि टमाटर जहरीला होता है। अतः 26 सितम्बर 1830 के दिन Col. Robert Gibbon Johnson ने सलेम, न्यू जर्सी, न्यायालय में सार्वजनिक रूप से टमाटर खाकर इस धारणा को गलत सिद्ध किया।

ये सब तो हुईं नेट से प्राप्त जानकारी। किन्तु कई हजार साल प्राचीन हमारे पौराणिक ग्रंथों में पक्वान्न, पायस, भक्ष्य, पेय, लेह्य आदि स्वादिष्ट खाद्य पदार्थों का वर्णन मिलता है। इससे सिद्ध होता है कि हमारे देश में अत्यन्त प्राचीन काल से ही खाना पकाने की विधि विकसित थी।

चलते-चलते

"चल आज तुझे चिकन बनाने का जोरदार तरीका बताता हूँ, तू भी क्या याद करेगा! कढ़ाई में तेल डालो और लहसुन, प्याज, अदरक पेस्ट को तलो। तल जाने पर एक कप व्हिस्की डालो। उसे चला कर उसमे चिकन को डाल दो। अब एक कप रम डालो। जब एक उबाल आ जाये तो उसमें एक कप जिन डालो। ज्योंही चिकन कढ़ाई से चिपकना शुरू करे, दो कप वाइन डाल दो। थोड़ी थोड़ी देर में बड़ा चम्मच वोदका डाल कर चलाते रहो। जब चिकन पूरा पक जाये तो एक कप व्हिस्की डाल कर अच्छे से चलाओ। बस तैयार हो गया चिकन!"

"क्यों? क्या चिकन को ऐसे बनाने से अधिक स्वादिष्ट बनता है?"

"अरे चिकन तो जो बनता है सो बनता है पर तरी में मजा जाता है गुरू!!!"

9 comments:

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

रोचक जानकारी है, आभार स्वीकारें।

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हर बाशिन्दा महफू़ज़ रहे, खुशहाल रहे।
छोटी सी गल्ती जो बडे़-बडे़ ब्लॉगर करते हैं।

Khushdeep Sehgal said...

अवधिया जी,
पहले का ज़माना ही बढ़िया था...कुछ खाने को मिल तो जाता था...अब तो जेब में इतना बड़ा सुराख हो चला है कि दाल रोटी भी खाना मुश्किल होता जा रहा है...

तरी तो मस्त हो गई और जो चिकन टुन्न और मदमस्त हो गया, उसका क्या...

जय हिंद...

Kusum Thakur said...

बहुत ही रोचक जानकारी दी है आपने .....धन्यवाद !

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

"अरे चिकन तो जो बनता है सो बनता है पर तरी में मजा आ जाता है गुरू!!!"

हा-हा-हा-ह अवधिया साहब, आज ही शाम को ट्राई करूंगा ! अच्छी जानकारी के लिए शुक्रिया !

अन्तर सोहिल said...

बढिया जानकारी
अजी चिकन बनाने की विधि वाली :)

गोदियाल जी बना लेंगें तो हम भी चख लेंगें

प्रणाम

अजय कुमार झा said...

वाह बडी ही रोचक जानकारी मिली खाना बनाने के बारे में

सर मैंने तो सुना है यदि मुर्गे को बनाने से पहले साथ बिठा के दो पैग पिला दिया जाए और उसके बाद बनाया जाए तो मुर्गा खुदबखुद बन जाता है वो भी टेस्टी ...सच है क्या

रंजू भाटिया said...

रुचिकर ,स्वादिष्ट लगी यह जानकारी शुक्रिया

डॉ टी एस दराल said...

बढ़िया जानकारी।
खाने की फोटो देखकर तो मूंह में पानी आ गया।
पर ये नहीं पता की ये वेज है या चिकन ।
और चिकन भी वेज या नॉन -वेज ?
( पिछले हफ्ते रेस्तरां में किसी को कहते सुना था --दम आलू मिलेगा, अच्छा ये वेज है या नॉन-वेज। )

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" said...

मालूम पडता है कि आप भी खाने के बडे अच्छे शौकीन है...तभी तो खानपान की नित रोज नई नई जानकारी खोज लाते हैं :)