Monday, February 22, 2010

40000 हजार से 1411 ... कैसे बजा बाघों का 12

बाघ!

वही बाघ जिसका मुँह खोलकर बालक भरत, जी हाँ दुष्यन्त और शकुन्तला का महान पुत्र भरत जिसके कारण हमारे देश का नाम भारतवर्ष हुआ, ने उसके दाँत गिने थे!

वही बाघ जो हमारा राष्ट्रीय पशु है!

वही बाघ जिनकी संख्या एक सदी के भीतर 40000 हजार से 1411 हो गई। पता नहीं अब तक 1411 भी है या उससे भी कम हो गई है।

कहीं ऐसा हो कि बाघ विलुप्त ही हो जाये और हमें अपने बच्चों को बाघ दिखाने के लिये हमारे राष्ट्रीय प्रतीक को दिखाना पड़े कि बाघ यह होता है। कम से कम इतना तो है कि कोई कितना ही कोशिश कर ले पर राष्ट्रीय प्रतीक के चार बाघों, जिसके नीचे कठोपनिषद का उद्धरण "सत्यमेव जयते" है, का अवैध शिकार तो कर ही नहीं सकता। क्या बाघों का विनाश ही सत्य की विजय है?

हमारे देश में होने वाले अवैध शिकार ही तो इन बाघों के विनाश के मुख्य कारणों में से एक है। कैसे हो जाते हैं ये अवैध शिकार? क्या हमारे कानून में इतना दम नहीं है कि इन शिकारों को रोक सकें? क्या "बाघ परियोजना" (Project Tiger) अपना लक्ष्य पूर्ण कर सकेगी? वास्तविकता तो यह है कि बाघों के अवैध शिकार में कानून बनाने वालों और उसकी रक्षा करने वालों का भी सहयोग रहता है क्योंकि उससेसे हुई कमाई का एक बड़ा हिस्सा उन्हें भी मिलता है। रक्षक ही यदि भक्षक बनेंगे तो कैसे रुक पायेगा यह अवैध शिकार का देशद्रोही घृणित कर्म?

अब आप पूछेंगे कि इसमें हम क्या कर सकते हैं?

अजी आप तो बहुत कुछ कर सकते हैं। आप ब्लोगर हैं, आप के पास अपनी आवाज को प्रत्येक व्यक्ति तक पहुँचाने की शक्ति है। आपकी रचनाएँ अवश्य ही इनकी रक्षा कर सकती हैं, बाघों की रक्षा ही क्या ये तो क्रान्ति ला सकती हैं, भ्रष्टाचारियों का तख्ता पलट सकती हैं, देश को खुशहाल बना सकती हैं, युग बदल सकती हैं बशर्तें कि इन रचनाओं की कृति निःस्वार्थ भाव से अपने देश और अपनी भाषा के प्रति पूर्ण निष्ठा और लगन के साथ की जाये, यदि हमारी ये कृतियाँ लोगों को ऐसा प्रभावित करे कि वे एक नई क्रान्ति के लिये तत्पर हो जायें।

पर क्या हम आत्मप्रतिष्ठा को त्याग कर देश और भाषा के प्रति पूर्ण रूप से समर्पित हो पायेंगे? क्या हम ऐसी प्रभावशाली कृतियाँ लोगों को दे पायेंगे?

7 comments:

ब्लॉ.ललित शर्मा said...

"बुकमार्कनीय" आलेख।
आभार

Unknown said...

ललित जी! आपका तो हिन्दी के साथ ही साथ संस्कृत पर भी अच्छा खासा अधिकार है फिर भी आप यह हिन्दी को विकृत करने वाला "बुकमार्कनीय" जैसे शब्द का प्रयोग कर रहे हैं। मुझे आपसे ऐसी अपेक्षा नहीं थी।

आपसे अनुरोध है कि आप अपने ज्ञान का प्रयोग हमारी मातृभाषा की सार्थक सेवा के लिये करें। आशा करता हूँ कि आप इसे अन्यथा नहीं लेंगे।

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

सारी दुनिया को मिलकर चीन की ऐसी-तैसी करनी चाहिए, उस पर आर्थिक प्रतिबन्ध लगाए जाने चाहिए क्योंकि दुनिया में एक यही मुल्क है जो बाघ बध को बढ़ावा दे रहा है !

ब्लॉ.ललित शर्मा said...

@अवधिया जी,
मै तो एक नये शब्द का निर्माण हिन्दी और अंग्रेजी के संयोग से करके देख रहा था तथा ऐसा सोच रहा था कि इस शब्द(बुकमार्कनीय)के जन्म दाता के रुप मे पहचाना जाऊं, माफ़ करें अगर आपको अच्छा नही लगा।
गुरुदेव!
भविष्य मे आपके बताए रास्ते पर चलने की कोशिश करुंगा।

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

बढिया आलेख. अवधिया जी आपने सही सलाह दी शर्मा जी को. और शर्मा जी को मेरी सलाह कि इन शब्दों की डिक्शनरी हमारे खबरिया चैनल वालों को यह भेंट कर दें.

डॉ टी एस दराल said...

अमानवीय कृत्य है बाघों को मारना।
लेकिन सवाल ये है की --जिम्मेदार कौन ?

रानीविशाल said...

बहुत ही अच्छा आलेख ...आप बिलकुल सही कहते है यही दशा रही तो आने वाली पीड़ी के लिए तो बाघ देखना भी दूभर हो जाएगा !!
सादर
http://kavyamanjusha.blogspot.com/