Sunday, February 21, 2010

"पतली कमर मोरे लचके" शीर्षक वाले पोस्ट पर तो भीड़ उमड़ पड़ेगी पर "कृष्ण की वंशी गोपियों को मोहती थी" जैसे शीर्षक वाले पोस्ट को क्या कोई पढ़ना पसंद करेगा?

"पतली कमर मोरे लचके" शीर्षक वाले पोस्ट पर तो भीड़ उमड़ पड़ेगी पर "कृष्ण की वंशी गोपियों को मोहती थी" जैसे शीर्षक वाले पोस्ट को क्या कोई पढ़ना पसंद करेगा? बिल्कुल नही करेगा। जमाना बदल गया है तो नये जमाने के लोगों का टेस्ट भी बदल गया है। लोग तो यही सोचेंगे कि यार क्या ये भी कोई कृष्ण गोपियों वाला जमाना है? क्यों ऐसे पोस्ट लिख कर बोर कर रहे हो हमें?

एक बार एक सज्जन से वैदिक मैथेमेटिक्स के विषय में कुछ कहने की गलती कर बैठा। सुनकर उन्होंने कहा, "क्या उपयोगिता है इस वैदिक गणित की आज के जमाने में? केलकुलेटर उठाओ और बात की बात में कुछ भी हिसाब कर लो!" तो मैंने कहा, "हाँ भाई उपयोगिता तो अब बूढ़े माँ बाप की भी नहीं रह गई है, काहे रखे हुए हो इन्हें अपने साथ? और ये तुमने अपने स्वर्गवासी दादा दादी की तस्वीर क्यों कमरे में लगा रखी है? निकाल कर क्यों नहीं फेंक देते इन तस्वीरों को?"

खैर साहेब, मैं तो यही समझता हूँ कि चीजें पुरानी हो या नयीं, उपयोगिता तो उनकी होती ही है। और नहीं तो कुछ न कुछ ज्ञानवर्द्धन तो होता ही है।

इतना सब कुछ मैंने इसलिये लिख मारा क्योंकि फागुन का यह महीना मुझे, इतनी उमर का हो जाने के बावजूद भी, मदमस्त कर देता है। फागगीतों का दीवाना हूँ मैं। आज के जमाने में फागुन के महीने में झाँझ, मंजीरा, मृदंग, ढोल, डफ, नगाड़े आदि के ताल धमाल बहुत ही कम सुनने को मिलते हैं। हमारे समय में तो बसंत पंचमी से लेकर रंग पंचमी तक एक भी दिन ऐसा नहीं होता था कि फाग की लय न सुनाई पड़े। कृष्ण और गोपियों के प्रेमरस से सने मधुर फाग!

तो प्रस्तुत हैं एक फागगीतः

मुरली धुन नेक बजाय हो साँवरिया मोह लिये सब ग्वालनिया
अरे मोह लिये सब ग्वालनिया हो मोह लिये सब ग्वालनिया
मुरली धुन नेक बजाय हो साँवरिया मोह लिये सब ग्वालनिया

काहेन के तोरे मूरलिया हो काहेन के तोरे मूरलिया
काहेन बंद लगाय हो साँवरिया मोह लिये सब ग्वालनिया
मुरली धुन नेक बजाय हो साँवरिया मोह लिये सब ग्वालनिया

सोनेन के तोरे मूरलिया हो सोनेन के तोरे मूरलिया
रेशम बंद लगाय हो साँवरिया मोह लिये सब ग्वालनिया
मुरली धुन नेक बजाय हो साँवरिया मोह लिये सब ग्वालनिया

कहँवा बाजे मूरलिया हो कहँवा बाजे मूरलिया
कहँवा शब्द सुनाय हो साँवरिया मोह लिये सब ग्वालनिया
मुरली धुन नेक बजाय हो साँवरिया मोह लिये सब ग्वालनिया

गोकुल बाजे मूरलिया हो गोकुल बाजे मूरलिया
मथुरा शब्द सुनाय हो साँवरिया मोह लिये सब ग्वालनिया
मुरली धुन नेक बजाय हो साँवरिया मोह लिये सब ग्वालनिया

चलते-चलते

मिला बन में मुरलिया वाला सखी मिला बन में मुरलिया वाला सखी

कोई कहे देखो मोहन है आये
कोई कहे नन्दलाला सखी
मिला बन में मुरलिया वाला सखी

धर पिचकारी खड़े ग्वाल सब
कोई धरे है गुलाला सखी
मिला बन में मुरलिया वाला सखी

सारी साड़ी मेरो भिगोये
देखो नन्द के लाला सखी
मिला बन में मुरलिया वाला सखी

बैजनाथ कहे श्याम सलोना
लेकिन मन का काला सखी
मिला बन में मुरलिया वाला सखी

11 comments:

परमजीत सिहँ बाली said...

बहुत सुन्दर भाव पूर्ण प्रस्तुति।आभार।

निर्मला कपिला said...

ओल्ड इस गोल्ड ---- बहुत सुन्दर रचनायें हैं धन्यवाद्

Anonymous said...

सही है

चीजें पुरानी हो या नयीं, उपयोगिता तो उनकी होती ही है
एकदम सही

बी एस पाबला

मनोज कुमार said...

बहुत सुंदर पोस्ट।

Chandan Kumar Jha said...

चीजे पुरानी हो जाने भर से ही उनकी सार्थका कम नहीं हो जाती । बिल्कुल सही कहा आपने की अगर मां-बाप बूढ़े हो जाय तो क्या उनकी आवश्यकता कम हो जाती है । बिल्कुल नहीं । सोच-सोच की बात है ।

फागुन के गीतों ने मदमस्त कर दिया । कृष्ण काव्य (हरि-राधा) हमेशा से मेरे लिये कौतूहल का विषय रहा है । कुछ दिनों पहले जयदेव की गीत-गोविंद हाथ लगी । पढ़-गुण रहा हूँ ।

vandana gupta said...

नया नौ दिन पुराना सौ दिन.........हमे तो बस यही पता है..............बहुत ही सुन्दर फाग गीत......मन मोह लिया.

Taarkeshwar Giri said...

बहुत बढ़िया सर जी। आखिर होली का अपना अलग ही मजा है.

राज भाटिय़ा said...

अजी हम तो "कृष्ण की वंशी गोपियों को मोहती थी" पर ही आयेगे, बहुत सुंदर लिखा आप ने. धन्यवाद

डॉ टी एस दराल said...

फागुन में कौन भला वृद्ध महसूस करता है।
ये त्यौहार तो है ही ऐसा।
बहुत सुन्दर रचना अवधिया जी।

देवेन्द्र पाण्डेय said...

ये फाग गीत सुनने में जितने अच्छे लगते हैं पढ़ने में नहीं. फाग गीत से पहले आपने जो लिखा है उसे पढ़ कर पुरानी पीढ़ी तो सराहेगी मगर नई पीढ़ी रूठ सकती है!

Unknown said...

awadiya ji
Sadar parnam bouth acha lagata hai jab bhi apki post padta hu, apki post bouth meaning ful hoti hai acha lagta hai ki aap purne holi geeto ko lika jisse hame perana milati hai ki holi ko kelne or manane ka maja hikuch hai