टॉप याने कि सर्वोच्च! टॉप में रहने की चाहत भला किसे नहीं होती। पर ऊपर चढ़ना हरेक के बस की बात नहीं है। फिर क्या करें? सामने वाला तो ऊपर ही ऊपर चढ़े जा रहा है। अरे भइ हम ऊपर नहीं जा सकते तो क्या हुआ उसकी टाँगे खींच कर उसे नीचे तो ला सकते हैं ना! यही तो संसार का नियम है। हम ऊपर नहीं जा सकते तो साला कोई दूसरा क्यों ऊपर रहे।
ये टाँग खीचने वाला काम मनुष्य तो क्या देवता तक भी करते हैं। विष्णु तक को भी दैत्यराज बलि का ऊँचा जाना नहीं भाया और उसने उसकी टाँग खींचने के बजाय अपने पैरों के नीचे ही दबा कर रख दिया। अब देखो ना, इन्द्र खुद तो तपस्या कर सकता नहीं पर चाहे शिव जी तपस्या करें कि नारद करें या और कोई करे, भेज देता है कामदेव को उसकी तपस्या भंग करने के लिये। ये टाँग खींचना नहीं है तो क्या है?
टाँग खींचने का काम तो युगों से चला आ रहा है। सतयुग में सत्यवादी हरिश्चन्द्र की टाँग खींचने के लिये विश्वामित्र आ गये थे और उन्हें राजा से ऐसा कंगाल बनाया कि डोम का काम करने के लिये विवश हो जाना पड़ा। त्रेता युग में राम ने बालि की टाँग खींच कर रख दिया। द्वापर में तो कृष्ण ने कितनों की टाँग खिंचाई की है इसका तो हिसाब ही नहीं मिलता। उन्होंने तो अपनी बहन सुभद्रा का विवाह अर्जुन से करने के लिये अपने बड़े भाई बलराम तक की भी टाँग खिंचाई कर कर दी थी।
टाँग खींचना तो कलियुग का धर्म ही है। राजनीति हो, मीडिया हो, ब्लोगिंग हो चाहे जो भी हो टाँग खिंचाई का ही काम होता है वहाँ। ब्लोगवाणी ने तो नापसंद बटन देकर टाँग खिंचाई के काम को और भी आसान बना दिया है। एक ब्लोगर अपने पोस्ट में बताता है कि फलाने के ब्लोग की फलाने अखबार में चर्चा हुई है और दूसरा ब्लोगर तड़ से उस पोस्ट को नापसंद करके उसकी टाँग खींच देता है। किसी के ब्लोग की किसी अखबार में चर्चा भी कोई पसंद करने वाली चीज है भला? किसी पोस्ट लिखा है कि आज फलाने ब्लोगर का जन्मदिन है तो उस पर भी नापसंद का चटका लग जाता है। आखिर उस ब्लोगर जन्म हुआ ही क्यों? क्या जरूरत थी उसे इस संसार में आने की? चलो संसार में आ गया तो आ गया पर ब्लोगजगत क्या करने आया? हम तो भाई नापसंद ही करेंगे इसे। समझ में ही नहीं आता कि यह पोस्ट नापसंद है या ब्लोगर नापसंद? पसंद या नापसंद करने के लिये पोस्ट को पढ़ना जरूरी थोड़े ही है! वैसे हमारे लिख्खाड़ानन्द जी एक बार बता चुके हैं कि टिप्पणी करने के लिये भी पोस्ट को पढ़ना जरूरी नहीं है।
अब कहाँ तक लिखें टाँग खिंचाई की महिमा? इसकी महिमा तो अपरम्पार है!
चलते-चलते
फागुन का महीना है, होली नजदीक आ रही है, इसलिये प्रस्तुत है एक फागगीतः
नचन सिखावै राधा प्यारी
हरि को नचन सिखावै राधा प्यारी
जमुना पुलिन निकट वंशीवट
शरद रैन उजियारी
हरि को सिखावै राधा प्यारी
रूप भरे गुण हाथ छड़ी लिये
डरपत कुंज बिहारी
हरि को सिखावै राधा प्यारी
चन्द्रसखि भजु बालकृष्ण छवि
हरि के चरण बलिहारी
हरि को सिखावै राधा प्यारी
9 comments:
बढ़िया, अवधिया साहब , इसे लिए तो कोई चढ़ा भी रहा हो तो मैं ज्यादा ऊपर नहीं चढ़ता , क्या पता कब टांग खींच ले :)
अरे! वाह..बहुत सही कहा आपने.... यहाँ तो ऐसे ऐसे बैठे... हैं...कि...जब चिढ नहीं निकाल पाते तो नापसंद का चटका लगते हैं.... यह लोग हैं ...जो अर्धनारी हैं.... जिनका पूरा व्यक्तित्व डाउटफुल है.... (?) ....पता ही नहीं चलता ...वैसे ....सरकार.... ने अब कहा है कि कानूनन हिजड़े महिलाओं कि श्रेणी में आयेंगे.... तो इन लोगों से और क्या उम्मीद की जा सकती है.... चिढना तो वैसे भी नारीत्व गुण है.... यह वो लोग हैं जो खुद तो थोथा चना बाजे घना वाला हाल रखते हैं....और दूसरों को आगे बढ़ता देख ... चिढ़ते हैं.... टांग खींचने की कोशिश करते हैं... ख़ैर! आप और हमें अपना काम करना चाहिए.... ऐसे लोग कितने दिन टांग खिचेंगे.... ?
क्या आप को लगता है कि इस टिप्पणी से बवाल होने के चांसेस हैं? ख़ैर..बवाल कोई करेगा तो भी क्या....मेरा लाठी-बल्लम तो हमेशा तैयार रहता है.... आख़िर मैं रिफाइंड गुंडा जो ठहरा....हम तो नंगे के साथ सुपर नंगे हैं....
टाँग खिचाई को राष्ट्रीय खेल सम्मान से नवाजा जाए
माने ताँग खिंचाई का महान काम करने वाले विष्णु, इन्द्र, कृष्ण आदि का अनुशरण कर रहे है? :) :) नेक काम से न रोको उद्यमियों को :)
भैया टांग होगी तो खींचने वाले पुरुषार्थी भी मिलेंगे। इसलिए हम "गेड़ी" का उपयो्ग करने की सलाह देते हैं। जिससे शायद कुछ हद तक समस्या का समाधान हो सकता है।
जोहार ले----------!
Radha krishna ki photo bahut achhi lagi... itna gusaa....
आवधिया जी जो टांग खिंचे बस मोके का इंतजार करे, ओर एक बार ऎसी टांग जमाये की उसे दिन मै तारे दिख जाये... फ़िर देखे , ऎसे लोग ना खुद चेन से रहते है ओर दुसरो को चेन से रहने नही देते
टाँग खिंचने के डर से ही हम ज्यादा ऊँचा चढने की कौशिश भी नहीं करते...बस यहीँ बीच में बैठ कर चढने उतरने वालों को देख देख कर ही आनन्द ले रहे हैं :-)
sahi ji sahi......
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