Wednesday, March 10, 2010

डॉक्टर हैं पर क्यों दे अपने ब्लोग में डॉक्टरी जानकारी? ... बेवकूफ समझ रखा है हमें?

"यार, ठीक है कि तुम अपने ब्लोग में अपनी कविताएँ लिखते हो। पर तुम चिकित्सक भी हो। क्यों नहीं चिकित्सा सम्बन्धी जानकारी वाला अपना एक और ब्लोग बना लेते?"

"तुम तो जानते हो यार, कितना बिजी रहता हूँ मैं। पेशेन्ट्स से हमेशा घिरा रहता हूँ। कई बार तो खाना-पीना, यहाँ तक कि नींद-चैन भी, हराम हो जाती है अपने इस पेशे के कारण। ऐसे में बड़ी मुश्किल से समय निकाल कर कविता लिखता हूँ और अपने पोस्ट में प्रकाशित भी करता हूँ। अब समय कहाँ है मेरे पास दूसरा ब्लोग बनाने के लिये। और मानलो मैं अपना दूसरा ब्लोग बनाकर उसमें बताऊँ कि इथिकल क्या होता है, जेनरिक क्या होता है तो भला उसे कौन समझेगा?"

"अरे भाई, यदि तुम अच्छे से समझाओगे तो कोई क्यों नहीं समझेगा?"

"तुम तो बस बाल की खाल निकालने बैठ जाते हो। अरे भाई, अगर मैं लोगों को बता दूँ कि मैं उन्हें तीन-तीन, चार-चार सौ रुपये कीमत वाली जो इथिकल दवाइयाँ प्रेस्क्राइब करता हूँ उसके बदले में वह यदि मात्र दो-तीन रुपये वाली जेनरिक दवा खा ले तो भी ठीक हो जायेगा तो मेरे रेपुटेशन का क्या होगा? इथिकल कंपनी के जो एमआर मेरे पास आते हैं और हर साल मुझे नई कार दे जाते हैं वो क्या ऐसे में मेरे पास आयेंगे? ये जो मैं हर साल कार, टीव्ही, फ्रिज बदल लेता हूँ ये सब उन्हीं की मेहरबानी से तो है। अब मैं अपने ब्लोग में इथिकल के बदले जेनरिक जैसी सस्ती दवाओं से इलाज के बारे में लिखने लगूँगा तो वो सारी इथिकल कंपनियाँ और उनके एमआर खुश होंगे क्या?

"और यदि अपने ब्लोग में लोगों को बताऊँ कि एक्झर्शन के कारण हल्का बुखार है तो एक पैरॉसीटामोल की गोली खा लो, साधारण सा दर्द है तो निमुसुलाइड गोली खा लो तो भला लोग मेरे पास इलाज कराने क्यों आने लगे? वो लोग मेरे पास नहीं आयेंगे तो मैं खून, पेशाब आदि जाँच करवाने के लिये पैथॉलाजिकल लैब किन्हें भेजूँगा? उन सारे लैब से मिलने वाले मेरे कमीशन का क्या होगा?

"तुम तो भैया, हमारा धंधा ही चौपट करवाने पर तुले हो पर हम इतने बेवकूफ नहीं हैं जो तुम्हारा कहना मान लें। इतना खर्च करके डॉक्टर बने हैं तो पैसा पीटने के लिये बने हैं, ब्लोग लिखकर फोकट में जानकारी देने के लिये थोड़े ही बने हैं। इसलिये समझ लो कि हम अपने ब्लोग में सिर्फ कविताएँ ही लिखेंगे।"

15 comments:

drdhabhai said...

भाई जी कुछ समझ नहीं आया कि क्या लिखना चाहते हैं आप....डाक्टर ,ब्लोग,कमीशन बाजी.....जहां तक मेरा खयाल है कि ये कोई जरूरी नहीं कि कोई सुनार होगा तो वो गहनों पर ही ब्लोग लिखेगा या के कोई इंजिनियर हो तो वो सिर्फ अपने विषय पर ही लिखें ....लेखन एक शौक है...और कौन किस विषय पर लिखता है इस बात पर पहरेदारी ...क्या आप चाहेंगे ...ये तो आत्मा की आवाज है कौन क्या लिखेगा...खैर मेरे दो ब्लोग हैं समय मिले तो जरूर देखियेगा drdhabhai.blogspot.com,mihirbhoj.blogspot.com

संगीता पुरी said...

प्राचीन काल में हर पेशा उससे जुडे लोगों के लिए कमाने खाने का साधन बना हुआ है .. इसलिए दूसरों के पास उसकी तकनीकी जानकारी नहीं पहुंच पाती थी .. पर सेवा तो लक्ष्‍य होता ही था .. पर वर्तमान युग में हर पेशा तो दूसरों को बेवकूफ बनाकर ऐय्याशी का जीवन जीने के लिए होता है .. मूल जानकारी दूसरों को दे दे .. तो पेशे का क्‍या होगा ??

राज भाटिय़ा said...

जी.के. अवधिया बहुत सही लिखा, लेकिन आज कल तो ९८% इन डां को यह धंधा बन गया है, सेवा भाव कहां? ओर जो २% डां बचे है वो सही रास्ता ही दिखाते है, लेकिन लोग उन के पास जाते ही कम है, बहुत से डां यह सब जानकारी देते है नेट पर, जेसे हमारे डां चोपडा साहब जी, उन के ब्लांग पर हमेशा अच्छी जानकारी ही मिलती है सेहत के लिये.
धन्यवाद

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

दागदर(डाक्टर) साब से सहमत.......
और भाटिया जी से भी........
सेवा भाव और ईमानदार लोग कम ही रह गये हैं..
दुर्लभ....हैं....
डाक्टर साहब का दूसरा ब्लाग देखा है जिस पर चर्मरोग से सम्बन्धित काफी जानकारी दी गयी हैं..

Unknown said...

मिहिरभोज जी,

यह पोस्ट किसी व्यक्तिविशेष पर व्यक्तिगत आक्षेप नहीं है। मैं तो सिर्फ यह चाहता हूँ कि हिन्दी में अधिक से अधिक विषयआधारित और जानकारीपूर्ण ब्लोग बनें ताकि अधिक से अधिक लोग उनका लाभ ले सकें। मेरी लिखने की शैली अवश्य ही व्यंगात्मक रहती है किन्तु मेरा उद्देश्य कभी भी किसी को किंचितमात्र क्लेष पहुँचाना नहीं रहता।

यदि मेरे इस पोस्ट से आपकी भावनाओं को जरा भी ठेस पहुँची हो तो मैं क्षमाप्रार्थी हूँ।

बसंती said...

आज तो अवधिया जी डॉक्टरी करने वाले ब्लॉगर से कुछ ज्यादा ही अनुराग दिखा रहे हैं :-)

डॉ टी एस दराल said...

अवधिया जी , क्या बात है !
पहले हैडमास्टर , फिर डॉक्टर , और ड्रग्स कंट्रोलर !
आप तो डंडा लेकर पीछे ही पड़ गए । लेकिन ये एथिकल दवा क्या होती है ?

वैसे आपकी बात में कहीं तो दम है ।
बस पोस्ट का टाइटल अच्छा नहीं लगा।
जहाँ तक लेखन की बात है , ब्लोगिंग का यही तो चार्म है की जो चाहे लिखो, पर सार्थक लिखो ।

कृष्ण मुरारी प्रसाद said...

भैया, इधर इंजीनियर के ब्लॉग पर भी कभी-कभी झांक लिया करें....
लड्डू बोलता है ....इंजीनियर के दिल से...
http://laddoospeaks.blogspot.com

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" said...

आपके इस कथन से हम भी सहमत हैं कि ब्लागिंग को सिर्फ अपने शौकपूर्ती, टाईमपास का साधन न बनाकर...बल्कि अपने ज्ञान का सदुपयोग भी करना चाहिए...

डॉ महेश सिन्हा said...

आजकल इंटरनेट भरा पड़ा है जानकारियों से . ब्लॉग भी उसका एक अंग है . और छुपता तो कुछ नहीं आजकल केवल काले धन को छोडकर .

निर्मला कपिला said...

ावधिया जी आपसे सहमत हूँ। शुभकामनायें

वर्षा said...

अच्छा व्यंग और मज़ेदार टिप्पणियां

Manish said...

:) :) :)

गुदगुदी करना, बचपन से सीखा है कि इसी उम्र में डिग्री ली है।

जब आता हूँ आप गुदगुदी कर देते हैं :) :)

सूर्यकान्त गुप्ता said...

जेनरिक और इथिकल
बहुत ही बढ़िया यह पोस्ट भी है मिराक्कल
मुझे भी याद आ गया दाल का पानी रोटी का
छिलका खाना है मरीज को यह बताने के लिए
बड़े अस्पतालों में डाइटीशियन होते हैं जिनकी फीस
रुपये २००/- प्रति दिन होती है.

शरद कोकास said...

ऐसी खतरनाक सलाह न दीजिये वरना नीम हकीमों की बन आयेगी ,,आधी सलाह ब्लॉग मे देंगे और बाकी के लिये " हमारे दवाखाने में पधारिये " हाहाहा ।