जन्मदिन में केक काटना क्या जरूरी है? क्या हमारी यही प्रथा रही है?
ये प्रश्न मेरे मन में इसलिये उठे क्योंकि आज मेरे प्रिय मित्र ललित शर्मा जी का जन्मदिन है। मोबाइल लगाकर बधाई देने के बाद मैंने उनसे कहा कि मैं आ रहा हूँ अभनपुर आपके जन्मदिन के जश्न में शामिल होने के लिये। वे सहर्ष बोले कि आ जाइये, केक आपका इंतजार कर रहा है। इस पर मैंने कह दिया कि भाई मैं न तो कोई उपहार दूँगा और न ही केक खाउँगा। मैं तो बस बड़े खाउँगा वो भी उड़द दाल के और उपहार के बदले सिर्फ अपना स्नेह और आशीर्वाद ही दूँगा।
हमारे छत्तीसगढ़ में किसी के जन्मदिन मनाने के लिये आँगन में चौक पूरा (रंगोली डाला) जाता था, सोहारी-बरा (पूड़ी और बड़ा) बनाये जाते थे। बड़े उड़द दाल के होते थे, हाँ स्वाद बढ़ाने के लिये थोड़ा सा मूँगदाल भी मिला दिया जाता था। सगे-सम्बन्धियों तथा मित्र-परिचितों को निमन्त्रित किया जाता था। जिसका जन्मदिन होता था उसे टीका-रोली आदि लगाकर उसकी आरती उतारी जाती थी। वह स्वयं अपने से बड़ों के पैर छूता था और उससे कम उम्र वाले उसके पैर छूते थे। फिर प्रेम के साथ खा-पीकर खुशी-खुशी सभी विदा लेते थे। न कोई भेटं न कोई उपहार, भेंट-उपहार की प्रथा ही नहीं थी।
जब मैंने ललित जी को अपने छत्तीसगढ़ के उपरोक्त प्रथा की याद दिलाई तो वे आज इसी प्रथा के अनुसार अपना जन्मदिन मनाने के लिये राजी हो गये। ललित जी से मेरा परिचय मात्र तीन-चार माह ही पुरानी है, पिछले दिसम्बर में पहली मुलाकात हुई थी मेरी उनसे। पर आज लगता है कि हमारी जान-पहचान बरसों पुरानी है। उम्र में लगभग उन्नीस साल छोटे हैं वे हमसे किन्तु हमारे बीच उम्र की यह दूरी कभी बाधा नहीं बनी। बहुमुखी प्रतिभा के धनी हैं ललित जी। छत्तीसगढ़ी, हिन्दी के साथ साथ पंजाबी, हरयाणवी आदि अनेक भाषाओं पर अधिकार रखते हैं। संस्कृत का गहन अध्ययन किया है उन्होंने। साहित्य-सृजन में तो सानी नहीं है उनका, अपने लेखन से चारों ओर अपने प्रदेश छत्तीसगढ़ और अपने देश भारत का परचम फहरा रहे हैं। फोटोग्राफी और कम्प्यूटर ग्राफिक्स में महारत हासिल है सो अलग।
आज उनके जन्मदिन के शुभ अवसर पर मैं उनके दीर्घायु की कामना करता हूँ।
8 comments:
ललित जी को जन्मदिन की ढेरों बधाई।
लेकिन आपने भी अच्छी जानकारी दी जन्मदिन मनाने के बारे में । आभार।
सही कहाँ आपने ये केक काटने या जन्मदिन पर मोमबत्ती बुझाना हमारी संस्कृति नहीं है. अब जब आप जा ही रहे है तो उन्हें हमारी तरफ से भी जन्मदिन की बधाई दे दीजियेगा.
इससे अच्छी क्या बात होगी ..की ललितजी अपना जन्मदिन पूरे छातिगढ़िया इश्टाइल से मन रहे हैं...यही होना भी चाहिए और उनसे उम्मीद भी यही थी...उन्हें बहुत बहुत बधाई..
आप भी इस जश्न का लुत्फ़ उठाइए...
सबसे पहले तो शुभकामनाएं ... जन्मदिन की ही नहीं पूरे जीवन की ... एक दिन सब शुभकामनाएं देंगे और बाकी दिन??
वैसे मै ललित जी को दो तीन माह से ही जानता हूँ चैट के माध्यम से ... शुरुआत में जब ब्लॉगजगत में पैर रखा ही था तो जहां जिस भी ब्लॉग पर जाता एक चश्मे वाला मूछों वाला खतरनाक सा चेहरा ज़रूर दिख जाता ... सच कहूँ तो किसी माफिया जैसे ही लगे मुझे पहली नज़र में लेकिन इन दो चार महीनों में मैंने मित्र/भाई ललित जी को जितना जाना है उस दृष्टि से मै उन्हें कर्मठ, ब्लॉगजगत के प्रति समर्पित, अध्ययनरत, अपनी धरोहरों, संस्कारों, मूल्यों के रक्षक, देशप्रेमी,सरल,स्पष्ट और सुदृढ़ लेखक, रचनाकार, चर्चाकार(संभवतःखर्चाकार भी),हंसमुख, गंभीर और महान पत्नीधारी के रूप में जानता हूँ (भाभी जी की सहनशक्ति भी बेजोड़ है)...
रही बात जन्मदिन की तो आज जन्मदिन की परंपरा केक काट कर ही मनाई जाती है .. हमारी परंपरा इस से कहीं अच्छी और प्रासंगिक है
हमारी संस्कृति में अन्नदान, वस्त्रदान के साथ साथ देव पूजन की परंपरा रही है ... पर मै एक सलाह और देना चाहता हूँ कि हर व्यक्ति को अपने जन्म दिन पर कम से कम एक पेड़ अवश्य लगाना चाहिए और वर्ष भर उसको सिंचित करे .. इस तरह से भारत में सवा अरब पेड़ तो यूँ ही लग जायेंगी प्रतिवर्ष ... और हो सके तो एक संकल्प भी ले अपनी कोई एक कमी याबुरी आदत को छोड़ने का ...
हजारों साल शबनम अपनी बेनूरी पे रोती है
बड़ी मुश्किल से होता है चमन में दीदावर पैदा
पुनः ललित जी को जन्म दिन की शुभकामनाएं
ललित जी को जन्मदिन की ढेरों बधाई।
जन्मदिन मनाने की स्टाईल यानि अपने पुराने रीती रिवाजों की जोरदार वापसी. बधाई आपको भी इस जानकारी के लिये.
रामराम.
परंपरा के साथ जन्मदिवस मनाने की सीख शिष्य को एक गुरु से ही मिल सकती थी...
चश्मेबद्दूर...
जय हिंद...
The tradition of cutting cake has its roots in "Bali-Pratha". Happy B'day to Lalit ji.
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