प्रत्येक आदमी किसी ना किसी का दोस्त होता है और किसी ना किसी का दुश्मन भी होता है। शायद ही कोई ऐसा हो जिसकी न तो किसी से दोस्ती हो और न ही किसी से दुश्मनी। यदि कोई ऐसा बिरला व्यक्ति मिल जाये जिसकी किसी न दोस्ती हो और न ही दुश्मनी तो आपका बहुत बड़ा सौभाग्य है क्योंकि वह व्यक्ति पूर्णतः विरक्त ही होगा। ऐसे विरक्त लोगों में सर्वोच्च स्थान कबीरदास जी का ही होना चाहिये क्योंकि वे लिखते हैं
कबिरा खड़ा बजार में माँगे सबकी खैर।
ना काहू से दोस्ती ना काहू से बैर॥
दोस्ती और दुश्मनी दोनों के ही बारे में बहुत सारे मुहावरे भी बने हैं मसलन "वक्त में काम आने वाला ही सच्चा दोस्त होता है", "मूर्ख दोस्त से समझदार दुश्मन अच्छा होता है", "दुश्मन का दुश्मन दोस्त होता है" आदि।
कुछ ऐसे भी लोग होते हैं जिनके बारे में कहा जाता है कि "न इनकी दोस्ती अच्छी और न ही दुश्मनी"। किसी जमाने में दोस्ती के मूल में प्रेम और दुश्मनी के मूल में क्रोध हुआ करता था। पर अब जमाना बदल गया है और आजकल दोस्ती और दुश्मनी दोनों ही के मूल में बस स्वार्थ ही हुआ करता है।
8 comments:
दोस्ती निभाओ तो दिल से, दुश्मनी करो तो भी दिल से...
बहुत अच्छी पोस्ट। आपसे सहमत।
बहुत आभार इस सुंदर सीख के लिये.
रामराम.
अपनी एक कविता की दो लाईन प्रस्तुत हैं -
"...दोस्ती से दुशमनी ज्यादा भली थी
तुम दुश्मन होते तो ज्यादा अच्छा होता
कम से कम मेरी पीठ में
खंजर तो न उतरा होता ..."
.... प्रभावशाली लेख !!!
सात्विक विचारों वाले मनुष्य के लिए मित्र और दुश्मन एक समान होते हैं।
दोस्ती और दुश्मनी तो दूर की बात है आजकल तो नजदीकी रिश्तों,सम्बंधों में भी स्वार्थ दिखाई देने लगा है.....
सही कह रहे हैं आप।
बहुत आभार इस सुंदर सीख के लिये.
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