Saturday, April 17, 2010

चूमा सामने वाले ने और झापड़ मुझे खाना पड़ा

ट्रेन चली जा रही थी। फर्स्ट क्लास के एक कूपे में चार लोग बैठे थे - एक अधेड़ महिला, एक खूबसूरत युवती, एक अपने देश का युवक और एक पड़ोसी देश का युवक।

चारों एक दूसरे के लिये बिल्कुल अपरिचित।

रास्ते में एक टनल आया। पता नहीं इलेक्ट्रिक सिस्टम में क्या खराबी थी कि बिजली का बल्ब जला नहीं। कूपे में घुप्प अंधेरा छा गया। हाथ को हाथ सुझाई नहीं दे रहा था।

अपने देश के युवक को एक शरारत सूझी। उसने अपने बायें हाथ को जोरदार चुम्मी की आवाज करते हुए चूमा और दायें हाँथ से पड़ोसी देश के युवक के गाल पर एक जोर का झापड़ दन्ना दिया।

कूपे के बाकी लोगो ने चूमने की और झापड़ पड़ने की आवाज को सुना और उसी के विषय में सोचने लगे।

अधेड़ औरत ने सोचा इनकी तो छेड़-छाड़ की उमर ही है। यदि लड़के ने मौके का फायदा उठा कर युवती को चूम ही लिया तो इतने जोर से झापड़ तो नहीं मारना चाहिये था।

युवती ने सोचा पता नहीं इनमें से किस युवक ने अधेड़ महिला को चूमा है। पर जिसने भी चूमा है अवश्य ही बहुत बड़ा बेवकूफ है। मेरे जैसी खुबसूरत लड़की को छोड़कर अधेड़ औरत को चूमेगा तो झापड़ तो पड़ेगा ही।

और पड़ोसी देश के युवक ने सोचा क्या अन्याय है। चूमा सामने वाले ने और झापड़ मुझे खाना पड़ा।

इसी को कहते हैं मुण्डे मुण्डे मतिर्भिन्ना!

11 comments:

मिहिरभोज said...

इसीलिए फोटू मैं आपका बांया गाल सूजा सूजा लगता है......

बेनामी said...

पुराना पाकिस्तानी जोक है। कुछ नया प्रस्तुत करिए। एक अनुरोध - कम से कम एक ढंग का अंग्रेजी ब्लाग जरूर पढ़िए।

समय चक्र said...

ये तो गल्त बात है जी

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

अवधिया साहब, मैं तो आपको शरीफ इंसान समझता था ! :) वैसे आइडिया बुरा नहीं है खुंदक निकालने के लिए हा-हा-हा

डॉ महेश सिन्हा said...

बिना आग के धुआँ निकलना

राज भाटिय़ा said...

अवधिया जी यह अधेड ओरत, ओर चुमा लेने वाला कवि, ओर थपड्ड खाने वाला फ़ोजी कोन था अगर आप साफ़ लिखते तो मजा दुंगना होता.... वेसे उस विदेशी फ़ोजी को तो जुते पडने चाहिये थे, कवि महाराज का हक बनता था, उस अधेड महारानी ्का चुमा लेने के लिये.
मजे दार जी

Anil Pusadkar said...

क्या बतायें अवधिया जी,ट्रेन मे अपन नही थे वर्ना बेवजह अपन भी पिट जाते.

M VERMA said...

लगता है उन्हें बिना आवाज के चूमना नहीं आता था.

Khushdeep Sehgal said...

अवधिया जी,
एक बार मक्खन भी मक्खनी के साथ ट्रेन पर जा रहा था...रास्ते में बहुत लंबी सुरंग आई....सुरंग जाने के बाद मक्खन ने मक्खनी से कहा...मैं भी अव्वल दर्जे का हॉलेट हूं...सुरंग चली गई, और कोई फायदा ही नहीं उठाया...मक्खनी ये सुनकर बोली...हाय राम, तो वो आप नहीं थे...

कुछ टंटों की वजह से नियमित कमेंट नहीं कर पा रहा...कारण अपनी कल की पोस्ट में स्पष्ट करने वाला हूं...

जय हिंद...

वीनस केसरी said...

@ बेनामी जी - एक अनुरोध - कम से कम एक ढंग का अंग्रेजी ब्लाग जरूर पढ़िए।

हा हा हा,, ठीक है जी आपका अनुरोध कैसे टाल सकते हैं

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" said...

:-)