Tuesday, April 20, 2010

आप अंधेरे में कब तक रहें फिर कोई घर जला दीजिये

आज के जमाने में अगर जीना है तो जमाने के चलन को अपनाना ही पड़ेगा। आज आप आगे तभी बढ़ सकते हैं जब अपने घर में रोशनी करने के लिये दूसरे के घर को जला देने में आपको जरा भी झिझक न हो। अपने सौ रुपये के फायदे के लिये यदि किसी का हजार रुपये नुकसान होता हो तो बेहिचक उसका नुकसान कर दीजिये। यही है आज के जमाने का चलन।

कल ही की बात है, हम आटो रिक्शे में जा रहे थे कि ट्रैफिक वाले ने उसे रोक लिया ओव्हरलोड के आरोप में। दो सौ रुपये का चालान बनाने की धमकी देकर उसने आटो वाले की कड़ी धूप में गाढ़ी मेहनत से की गई अस्सी रुपये की कमाई को हड़प लिया। माँग तो वह सौ रुपये रहा था किन्तु उस वक्त तक आटो वाले ने केवल अस्सी रुपये ही कमाये थे, उससे अधिक रुपये उसके पास नहीं थे। आटो वाले का दोष सिर्फ इतना था कि उसने महज पाँच अतिरिक्त कमाने के लिये अपने आटो पर एक सवारी अधिक बिठा लिया था।

ऐसी बातें देखकर हम अक्सर सोचने लगते हैं कि अब हमें भी स्वयं को बदल लेना चाहिये, बड़े लोगों ने ठीक ही कहा है "जैसी चले बयार पीठ तैसी कर लीजे"। किन्तु हमारा यह विचार कुछ समय तक ही के लिये रहता है और बाद में हम वैसे ही रह जाते हैं जैसे सदा से थे। बहुत बड़ी कमजोरी है यह हमारी।

पोस्ट का शीर्षक मुन्नी बेगम के गाये एक गज़ल के शेर से लिया गया है इसलिये वह गज़ल भी सुनवा देते हैं, हमें तो पसंद है ही शायद आपको भी पसंद आयेः

15 comments:

राजकुमार सोनी said...

अवधिया जी,
हमेशा की तरह अच्छी पोस्ट। आप अपने आसपास घटित हो रहे घटनाक्रम को पूरी संवेदनशीलता के साथ उकेरते हैं। यही एक बात आपको भीड़ से अलग खड़ा करती है। बधाई।

अजित गुप्ता का कोना said...

पुलिस वाले ने चालान की रसीद काटी या ऐसे ही पैसे धर लिए अपने खीसे में।

Unknown said...

@ ajit gupta

अपने खीसे में ही धर लिये मैडम। चालान काटता तो दो सौ रुपयों के काटता, उसने तो अस्सी रुपये अपने खीसे में धर कर भला ही किया बेचारे आटो वाले का, एक सौ बीस रुपये बचा दिये उसके! यही तो आज के जमाने का चलन है।

डॉ महेश सिन्हा said...

औटो वाले भी कम नहीं हैं . दूसरों की सुरक्षा का ध्यान नहीं रखते

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

अवधिया साहब, with due respects to all imaandaar policewala मगर क्या आज तक आपने किसी पुलिस वाले की संतान को तरक्की करते देखा ?

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

भ्रष्टाचार अब नैतिकता में बदल चुका है....

संजय बेंगाणी said...

लालच करने का अधिकार ऑटो वाले को ही है?

अनुनाद सिंह said...

िस लेख का शीर्षक ही सब कुछ कह दे रहा है, आगपढ़ने की जरूरत ही नहीं।

Anil Pusadkar said...

अपने शहर के आटो वाले आज भी मीटर लगाने का विरोध करते हैं, क्यों?

Unknown said...

अनिल जी, मेरा मन्तव्य यह नहीं है कि आटो वाले ने अच्छा किया बल्कि मैंने तो पोस्ट में आटो वाले का उल्लेख सिर्फ आज के चलन को दर्शाने के लिये ही किया है। मैं यह कहना चाहता हूँ कि आज के चलन में केवल स्वार्थ और बेईमानी ही व्याप्त होकर रह गये हैं।

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" said...

अवधिया जी, समय ही कुछ इस प्रकार का आ गया है कि हर आदमी किसी न किसी तरीके से दूसरे से लूटने, उससे फायदा उठाने में लगा हुआ है.....

राज भाटिय़ा said...

अवधिया जी, भगवान करे उस पुलिस वाले को भी उस से ज्यादा जर्माना हो, कुते को कीडे पडे मोटे मोटे, किसी साईकिल के नीचे आ कर मरे

Saleem Khan said...

Agree with Mahfooz Bhai...

भ्रष्टाचार अब नैतिकता में बदल चुका है....

Saleem Khan said...

और भाटिया जी औरतों की तरह गाली न दीजिये मर्दों की तरह तमाचे जड़ दीजिये

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

आज के चलन पर सूक्ष्म अवलोकन ....