ये है ब्लोगवाणी के हॉटलिस्ट में सर्वोच्च पाँच पोस्ट का स्क्रीनशॉट, जिसे मैंने आज दिनांक 23 अप्रैल 2010 को सुबह 9.33 बजे लिया हैः
इन सर्वाधिक हॉट पोस्टों से भाषा, समाज, देश का कितना हित हो रहा है?
क्या इन पोस्टों को ब्लोगरों को छोड़कर कोई अन्य पढ़ना चाहेगा?
यदि वह पढ़ भी ले तो हिन्दी ब्लोगिंग के स्तर के विषय में क्या सोचेगा?
और इन्हें पढ़ने के बाद क्या वह भविष्य में हिन्दी ब्लोग्स की तरफ झाँकने की भी कोशिश करेगा?
किसके लिये और क्यों ब्लोगिंग कर रहे हैं हम?
43 comments:
अवधिया जी,
कहते हैं न दिल को दिल की राह होती है...
बिल्कुल यही बात आज मेरे दिल में ब्लॉगवाणी की शीर्ष पर स्थित पोस्ट को देखकर आई...मुझे स्क्रीन शॉट लेना नहीं आता...लेकिन जो मैं चाह रहा था वो आपने करके दिखा दिया...
दिक्कत मुझे उनसे नहीं है जो ज़िंदगी के और सारे ज़रूरी मुद्दे या हंसी-खुशी के दो पल देने वाला लेखन करने की जगह सिर्फ भोंपू की तरह चौबीस घंटे धर्म का राग अलापते रहते हैं...मुझे शिकायत उनसे है जो इन्हें काउंटर करते हुए पोस्ट लिखते हैं और इन्हें बेमतलब का भाव देते हैं...कल समीर जी ने बड़े सटीक ढंग से इस और इशारा किया था...देखते हैं किसी की समझ आता है या नहीं...
जहां तक मेरा सवाल है, इस माहौल को देखकर तो मुझे सही ही लगता है कि मैं रोज़ लिखने की जगह हफ्ते में दो पोस्ट पर आ गया...ऐसी ज़हर उगलने वाली पोस्ट में अपनी पोस्ट फंसे रहते देखना अच्छा नहीं लगता था...यही हाल रहा तो कहीं बिल्कुल ही पोस्ट डालना बंद न कर दूं...बस जो अच्छे लगते हैं, उन्हीं को पढ़कर कमेंट कर दिया करूंगा...
जय हिंद...
सही पकड़ा अवधिया जी।ऐसी हालत मे तो सिर्फ़ अफ़सोस ही किया जा सकता है।आपकी चिंता मेरी भी चिंता है और शायद सभी ब्लागरों की भी।आभार आपका इस बात को उठाने के लिये।
खुशदीप भाई और अनिल भैया से सहमत
नाईस पोस्ट
एक ऐसा ही डाटाबेस कल रात ११.२० का मैंने भी लिया हुआ है .लेकिन अब उसको पोस्ट करने की कोई जरुरत नहीं है .
अवधिया जी,कहना सिर्फ यह है की लिखने वालों की और पढ़ने वालों की क्या पसंद है यह डाटाबेस इसको साफ़ साफ़ दिखाता है .काव्य छोडो,व्यंग छोडो,और सारे विषय भी छोडो,क्या भोंपू की तरह चौबीस घंटे धर्म का राग अलापने का और फ़ालतू की बहस व थानेदार बनने का ही काम है इस ब्लॉगिंग में.मजे की बात यह कि ब्लॉगिंगजगत के तथाकथित नाम भी और ही शामिल है इन सब कारनामो में .ब्लॉग उन सब के लिए जिन्हें कंही अवसर नहीं मिलता,अपने आपको अभिव्यक्त करने का बढ़िया और सर्वोत्तम जगह है खासतौर पर नई प्रतिभाओ के लिए .
स्वस्थ लिखिए और सबको स्वस्थ पठन सामग्री दीजिए .आपका बहुत बहुत धन्यवाद. इस जरुरी और बेहद जरुरी विषय पर मैं आपके साथ हूँ .
मुझे लगता है की संकलको को हॉट, पसंद, हिट्स दिखाने से बचना चाहिए.. आदर्श अवस्था में तो ठीक हे पर इतनी भीन्न्न्ताओ के बीच नहीं..
कोई दिक्कत नहीं है अवधिया जी।
ब्लॉगवाणी में अपना ब्लॉग कभी नहीं दिखा हॉट पर!
लेकिन इसे पढ़ने वाले रोज़ाना सैकड़ों में होते हैं!!
पिछले 15 दिन का आधिकारिक हिसाब यहाँ क्लिक कर देख लें
सनसनी ध्यान आकर्षित करती है...सामान्य मनोविज्ञान वाली बात है. और कुछ नहीं.
अवधिया जी, हॉट टोपिक वाले लेख ज्यादातर संवेदनशील लेख नहीं होते क्योंकि जिस तरह अच्छे लेखक या वक्ता नगण्य है ठीक वैसे ही ब्लॉग बिरादरी में अच्छे श्रोता भी लगभग नदारद है. जैसा संजय जी ने कहाँ सनसनी पैदा कर के ध्यान आकृष्ट करने वाली बात है.
भूल हम लोगो की भी है क्यों इतना importance दिया जा रहा है इन पोस्टो कों ?
समीर जी ने सही कहा है देखो ही मत उधर और ना ही इन की चर्चा करो !
अगर इन कों top पर हम ला सकते है तो क्या bottom पर नहीं ला सकते ?
अवधिया साहब, सीधा सा जबाब यह है क़ि पाठक ही उसी मानसिकता के है जिस स्तर की उपरोक्त प्रिविष्ठियाँ है !
very true.
श्रीमान जी,उपरोक्त पोस्टो में से एक मेरी पोस्ट है!यदि इस से ब्लॉग्गिंग का स्तर किसी भी तरह से गिरा है तो मै सम्पूर्ण ब्लॉगजगत से माफ़ी मांगता हूँ!एक अपील भी है!आप मेरे ब्लॉग पर आये,मेरी और पोस्ट भी पढ़े,यदि फिर भी आप लोगो को लगता है कि मै गलत राह पर चल रहा हूँ,तो कोई औचित्य नहीं मेरे इस तरह से आने वाली पीढ़ी को गलत-सलत परोसने का!मै स्वयं ब्लॉग पर लिखना छोड़ दूंगा!
कुंवर जी,
आप ने सही लिखा इसी के चलते पहले जहाँ मैं ब्लोगिंग का दीवाना था वहीँ अब इसे ढो रहा हूँ!सब अपना अपना हित साधने में लगे है!कुछ ने अपने संगठन बना लिए है तो कुछ 'तू मेरे लिए मैं तेरे लिए' को चरितार्थ कर रहे है!और अब तो इसमें जाती,समाज और धर्म को भी निशाना बनाया जाने लगा है!क्यूँ नहीं हम अच्छा लिखे पढ़ें और उस पर मंथन करें,वरना हमारा हाल भी २४ घंटे चलने वाले न्यूज़ चैनलों वाला हो जायेगा...
खुशदीप जी और अनिल जी से भी सहमत..
kunwarji's
इस पोस्ट से मेरा मन्तव्य किसी ब्लोगर की भावनाओं को ठेस पहुँचाना कदापि नहीं है, मैंने तो सिर्फ यह बताने का प्रयास किया है कि हिन्दी ब्लोगिंग किस दिशा में जा रही है।
मेरा मानना यह है कि धर्म के विवाद को त्यागकर हम अपनी ऊर्जा को रचना रचनात्मकता में ही व्यय करें।
ये वो पहाड़ हैं जिन्हें खोदने पर चुहिया निकलती है।
आपकी तरह से ही सभी यह सब देख रहे हैं। किन्तु मनुष्य का स्वभाव ही सनसनी पसन्द करने का है। अन्यथा हम वहाँ झाँकने भी क्यों जाते हैं?
घुघूती बासूती
बहुत सार्थक चर्चा ....
शायद मानसिक फितूर है.....
हम तो यही कहेंगे कि जिसके पास जो होगा वही तो वह देगा.......
जी.के. अवधिया साहब मेरी एक बात समझ में नहीं आई कि आखिर मेरे लेख में क्या गलत लगा आपको? लोग यहाँ सारे आम धमकियाँ दे रहे हैं, और अगर कोई उनके खिलाफ आवाज़ उठाए तो आपको बुरा लग रहा है? आखिर क्यों?
मानता हूँ कि समाज में बहुत से मुद्दे हैं जिन पर चर्चा नहीं हो रही है, लेकिन इसका मतलब यह भी नहीं है कि अगर कोई लेख अथवा मुद्दा हमें पसंद ही ना आए तो हम उसे एग्रीगेटर से प्रार्थना करके निरस्त ही करवा दें. क्या यह लोकतंत्र के लिए अच्छा है? होना तो यह चाहिए कि हम अपने विचार दुनिया के सामने प्रस्तुत करें और फिर लोगों पर छोड़ दें कि उनको क्या पंसद है और क्या नहीं. लेकिन कुछ लोग ज़बरदस्ती यह निर्णय सब पर थोपना चाह रहें हैं कि "लोगो को क्या पढ़ना चाहिए और क्या नहीं?"
शाह नवाज जी,
मेरे ब्लोग में आपका स्वागत् है।
यद्यपि आपकी टिप्पणी मेरे पोस्ट के विषय से हट कर है तथापि मैं यही कहना चाहूँगा कि अपने इस पोस्ट में मैंने कहीं भी उल्लेख नहीं किया है कि किसी के पोस्ट में मुझे कुछ गलत लगा हो। मैंने तो मात्र यही दर्शाने का प्रयास किया है कि हिन्दी ब्लोगिंग किस दिशा में जा रही है।
.
.
.
आदरणीय अवधिया जी,
पूरा मामला जो इस अल्पबुद्धि को समझ में आया वह यह है...
१- सबसे पहले एक या दो मुस्लिम ब्लॉगरों aka. अवांछित तत्वों (बहुसंख्यकों की नजर में) ने एक ब्लॉग बनाया।
२- फिर उस तत्व ने पोस्ट लिखी।
३- उस पोस्ट का विरोध हुआ।
४- यह विरोध थोड़ा मर्यादित और थोड़ा अमर्यादित था।
५- फिर उस तत्व ने अपनी समझ से जवाब दे दिया।
६- फिर विरोधियों ने भी अपने जवाबों को पोस्ट रूप में छापा।
७- इन तत्वों को समझाने वाली बीचबचाव करती पोस्टें भी छपीं।
८- इस सारे क्रम में हुआ यह कि वह तत्व और उसके विरोधी और समझाने वाले भी हॉट लिस्ट में लगातार ऊपर आते रहे।
कुछ लोग ऐसे भी थे जो इस सारे पचड़े में शामिल नहीं थे पर हॉट लिस्ट में रहने की आदत सी थी उन्हें... शायद उन्हें यह सब नागवार गुजरा।
अब होना क्या था...
१- इन सभी तत्वों का बहिष्कार और संकलकों से उनको बाहर करने की गुहार लगाती पोस्ट आने लगी, और हिट हुईं।
२- संकलकों को इन को बाहर का रास्ता दिखाने वरना संकलकों का ही बहिष्कार करती पोस्टें आई औेर हिट हुईं।
३- फिर निर्विकार-निरपेक्ष भाव से इस सारे पचड़े से बच कर निकलने की सलाह देती पोस्ट आई, और हिट हुई।
४- इसी क्रम में भाषा, समाज, देश और ब्लॉगिंग के हित व स्तर की चिंता करती आपकी पोस्ट आई है और यह भी हिट होगी।
कुल मिला कर लब्बोलुबाब यह कि सारे प्रकरण में ब्लॉगवुड को ३०-४० हिट पोस्टें मिल गईं ।
डॉ० अनुराग जी के शब्दों मे सेलेक्टिव नैतिकता व डॉ० अमर कुमार जी के शब्दों में सुविधापरक आभिजात्य का यह भौंडा प्रदर्शन देख अब तो उबकाई सी आने लगी है...
आभार!
प्रवीण जी,
आपकी टिप्पणी को मैंने अन्यत्र किसी पोस्ट में भी पढ़ा है और मेरे पोस्ट में भी वही टिप्पणी मिलने पर मेरी अल्पबुद्धि में भी कुछ प्रश्न तथा विचार उभरे हैं:
१- सबसे पहले एक या दो मुस्लिम ब्लॉगरों aka. अवांछित तत्वों (बहुसंख्यकों की नजर में) ने एक ब्लॉग बनाया।
इनके ब्लोग बनाने के पूर्व ही आपको कैसे पता चला कि ये अवांछित तत्व हैं?
२- फिर उस तत्व ने पोस्ट लिखी।
क्या पोस्ट लिखी? क्या उन पोस्ट का उद्देश्य अन्य लोगों की भावनाओं को चोट पहुँचाना नहीं था?
३- उस पोस्ट का विरोध हुआ।
क्यों विरोध हुआ? क्या किसी की भावनाओं को चोट पहुचाने वाली बातों का विरोध नहीं होना चाहिये?
४- यह विरोध थोड़ा मर्यादित और थोड़ा अमर्यादित था।
मुण्डे मुण्डे मतिर्भिन्ना! कोई मर्यादा में रह सकता है तो कोई अमर्यादित भी हो सकता है।
५- फिर उस तत्व ने अपनी समझ से जवाब दे दिया।
क्या जवाब दिया? क्या वह जवाब और भी भड़काने वाला नहीं था?
६- फिर विरोधियों ने भी अपने जवाबों को पोस्ट रूप में छापा।
दूसरों की भावनाओं को चोट पहुँचा कर भड़काने के कार्य का पहल किसने किया?
७- इन तत्वों को समझाने वाली बीचबचाव करती पोस्टें भी छपीं।
क्या कुछ गलत हुआ? क्या ब्लोगजगत में सौहार्द्र नहीं बने रहना चाहिये?
८- इस सारे क्रम में हुआ यह कि वह तत्व और उसके विरोधी और समझाने वाले भी हॉट लिस्ट में लगातार ऊपर आते रहे।
क्यों आते रहे? क्या मानसिकता है हम लोगों की?
कुछ लोग ऐसे भी थे जो इस सारे पचड़े में शामिल नहीं थे पर हॉट लिस्ट में रहने की आदत सी थी उन्हें... शायद उन्हें यह सब नागवार गुजरा।
दो चार नाम भी बताया होता ऐसे लोगों का जिनकी हॉट लिस्ट में रहने की आदत सी है और उन्हे नागवार गुजरा। मेरे विचार से तो नागवार इसलिये गुजरा कि उपरोक्त सभी बातों से गन्दगी फैल रही थी।
मैं तो इसे ताबडतौड लोकप्रियता के एक फ़ण्डे से ज्यादा महत्व नही दूंगा.
रामराम.
अवधिया जी एक आध बार गलती से मै इन पोस्टो पर पहुच गया, लेकिन फ़िर दोवारा कभी जाने का मन नही किया, बल्कि ओरो को भी रोका कि तुम मस्त रहो....दिल दुखता है, बकवास बाते पढ कर.... अगर यही हाल रहा तो हम भी अपना बोरी बिस्तर बांध कर यहां से चले जायेगे.... दुसरा कोई रास्ता नही
हिंदी ब्लोगिंग सच मे मैच्योर नहीं होगा कभी.. तब तक तो कभी नहीं जब तक लोग किसी खास एक या दो अग्रीगेटर पर आश्रित रहेंगे..
मैं अपनी बात मे उन सभी को लपेट रहा हूँ जो किसी भी अग्रीगेटर का रोना रोते हैं..
kyaa is post sae kisi kaa bhalaa hua haen
रचना जी,
इस पोस्ट से किसी का भला हुआ है या नहीं यह तो मैं नहीं कह सकता, हाँ इतना अवश्य कह सकता हूँ कि इस पोस्ट को पढ़कर यदि कुछ लोग ब्लोगिंग को सही दिशा देने के प्रयत्न में लग जायें तो अवश्य ही बहुत लोगों का भला होगा।
सामान्यतः मैं टिप्पणी मिटाता नहीं हूँ किन्तु विवाद को जन्म देने वाली एक टिप्पणी को मिटाने के लिये मैं विवश हो गया।
आप टिप्पणी मिटा दो भले ही लेकिन इस नारी का यह मिज़ाज़ ठीक नहीं है कहीं भी नाक घुसेड़ने वाला
bhala to yahi huaa hai ji ki jo kuchh galat tareeke se chal raha tha us par ek swasth bahas ho gayi!
lekin jo galat hai usko galat kehne ke kya maandand hone chaahiye,unka khulaasa bhi hona jaruri sa hai!
jisne bhi jo baat keh di,usne abhivayacti ke niyam ke tahat keh to di,par samaaj ke prati jimmewaari jaisi bhi koi cheej hai,ye bhi samajhna jaruri hai!
aatm-manthan ke liye koi to hilaaye hume,koi to jhinjhode!kisi ko to ye buraai leni hi padti hai!kabhi mai,kabhi aap!
kunwar ji,
रचना को कोई पूछे कि
हरकीरत
हारमोनियम
हाहाकार
हिंदी कथाकार
हिंदी किताबों का कोना
हिंदी भारत
हिंदी वाणी
हितचिंतक
हिन्द युग्म
अमीर धरती गरीब लोग
अरविंद कोशनामा
आत्ममंथन
आहा ग्राम्य जीवन भी क्या है
अभिव्यक्ति
अमलतास
अवलोकन
अहसास रिश्तों के बनने बिगड़ने का
आइए करें गपशप
आज की आवाज़
आज़ाद लब
इंडियन तमाशा
इंडिया गेट
इंडिया बनाम भारत
इंडिया वाटर पोर्टल
बेटियों का ब्लॉग
बेदखल की डायरी
बेबाक जुबां
बेहतर नई दुनिया की तलाश
बैसवारी
ब्लॉग बुखार
भगवान भरोसे
भारत का लोकतंत्र
भारत भविष्य चिंतन
भारतीय अध्यात्म
भारतीय शिक्षा
मगही भाषा एवं साहित्य
अग्रदूत
अदालत
अनवरत
अनुराग हर्ष
अन्तर सोहिल
अपना खेत-अपनी पाठशाला
अपनी-उनकी-सबकी बातें
अप्रवासी उवाच
पिंजर प्रेम प्रकासिया
मत-विमत
मल्हार
मसि-कागद
मा पलायनम
माताश्री
मातील्दा
सुमन सौरभ
सूचना एक्सप्रेस
सृजन और सरोकार
स्वचेतना
स्वास्थ चर्चा
हँसते रहो हँसाते रहो
हम लोगों की दुनिया
विचार बिगुल
विचार भरा प्याला
विचारों का दर्पण
वीणा स्वर
वो जो चुप ना रह सका
संवेदनाओं के पंख
व्यंजना
शकुनाखर
शब्द शिखर
शब्दावली
हमारा खत्री समाज
हमारी बात आपके साथ
हर लम्हा कैद है ज़िंदगी
अर्ज़ है
अलग सा
वीर बहुटी
वृद्धग्राम
वैतागवाड़ी
आदिवासी जगत
आपका पन्ना
आमार कथा
आर्यावर्त
आलोचक के मुख से
जैसे ब्लॉगों पर
उन्होंने कितनी टिप्पणियां की हैं और इससे किसका इसका भला हुआ है
अवधिया जी आपने अब कोई टिप्पणी मिटाई तो यह मान लूँगा कि आप कायर हो
आप क्या चाहते हैं कि माहौल खराब करने का ठेका कोई एक ले कर बैठा रहे
बहुत हो गया नाटक इन गिने चुके कुंठाग्रस्त लोगों का। काम ना धाम कभी भी कह दो हिन्दी ब्लॉगिं बुरी है इसमें स्तर नहीं कभी भी कह दोहिन्दी ब्लॉगिओन्ग़ को देखना बंद कर दिया कभी कहीं भी बेमतलब की टिप्पणी कर दो
ज़्यादा ही बिना लाग लपेट के कहने का शौक है तो अपने ब्लॉग पर कर लो ना ज़हर की उल्टियाँ
कौन कहता है इन्हें बार बार लौट कर आने को
जायो अंग्रेजी ब्लॉगों की पोस्टों में अपने दिन-रात गुजारो
अरे हद होती है किसी बात की
कूप कृष्ण जी,
मैं आपकी और रचना जी दोनों की भावनाओं का सम्मान करता हूँ। आप दोनों में यदि कुछ मतभेद है तो चर्चा करने के लिये और भी बहुत से स्थान हैं, कृपया मेरे ब्लोग को बख्श दीजिये। अन्यथा टिप्पणी मिटाने और मॉडरेशन लगाने के लिये मुझे मजबूर होना पड़ेगा।
कभी कोई खुशनुमा टिप्पणी की है इनसे कोई पूछे
कभी अच्छी हिन्दी में टिप्पणी की है इनसे कोई पूछे
कभी किसी पुरूष के ब्लॉग की तारीफ़ की है कोई इनसे पूछे
कभी किसी बच्चे के लिए कोई कहानी कविता लिखी है कोई पूछे
कभी अपनी किसी यातरा का विवरण लिखा है
कभी अपनी यादें बताई हैं
कभी किसी मीठी बात का वर्णन किया है
कभी ऐसी बात लिखी है जो मुस्कुराहत ले आए चेहरे पर
कभी किसी गाने पर अपने विचार रखें हैं
कभी किसी फिल्म की विवेचना की है
हमेशा बचकाना पोस्टें और टिप्पणियाँ
आखिर कब तक
अब नीचे है वह टिप्पणी जो अवधिया चाचा ने हटा दी थी
कोई अपने ब्लॉग में कुछ भी लिखे तुमको क्या?
कहती रही है रचना
अब अवधिया चाचा अपने ब्लॉग पर कुछ भी लिखे इनकी आंतों में क्यों दर्द हो रहा
अपना ब्लॉग तो देख ले जिसकी पोस्टों से किसका भला हो रहा बताए यह नारी
मैं विवाद खड़ा नहीं करना चाहता
लेकिन आज गुस्सा आ गया
जा रहा हूँ
फिर कुछ दिखा तो पलट कर आऊँगा
Post a Comment