क्या आपको नहीं लगता कि हिन्दी ब्लोगिंग सिर्फ संकलकों तक ही सिमट कर रह गई है? इंटरनेट यूजर्स के मामले में विश्व में आज भारत का स्थान चौथे नंबर पर है और हमारे देश में लगभग आठ करोड़ दस लाख इंटरनेट यूजर्स हैं (देखें: http://www.internetworldstats.com/top20.htm)। इनमें से कई करोड़ लोग हिन्दीभाषी हैं किन्तु इन हिन्दीभाषी इंटरनेट यूजर्स में से कितने लोग हमारे संकलकों और ब्लोग्स में आते हैं? सिर्फ नहीं के बराबर लोग।
आखिर क्यों है ऐसा? भारत में हिन्दीभाषी इंटरनेट यूजर्स की एक विशाल संख्या होने के बावजूद भी ये लोग हिन्दी ब्लोग्स में क्यों नहीं झाँकने आते? हमें मानना पड़ेगा कि हममें कहीं ना कहीं कुछ ना कुछ खामी अवश्य है जिसके कारण हम इन लोगों को अपने ब्लोग्स की ओर आकर्षित नहीं कर पाते। यदि ये लोग हिन्दी ब्लोग्स में आना शुरू कर दें तो यह तय है कि हिन्दी ब्लोग्स के वारे न्यारे हो जायेंगे।
जो कुछ भी आपने ऊपर पढ़ा वह मैं पहले भी कई बार लिख चुका हूँ और आगे भी समय समय पर इस बात को स्मरण कराते ही रहूँगा। हो सकता है कि मेरे इस प्रकार से स्मरण कराते रहने से किसी दिन हिन्दी ब्लोगर्स को अपनी शक्ति का एहसास हो जाये और वे एक विशाल पाठकवर्ग तैयार करने में सक्षम हो जायें।
17 comments:
इसके लिये शायद तूँ तूँ मैं मैं से परे होने की भी आवश्यकता है... स्वतंत्र रचनात्मक अभिव्यक्ति ही विकल्प है.
अवधिया जी,
लगे रहिए मुन्ना भाई की तर्ज़ पर...वो सुबह कभी तो आएगी...
जय हिंद...
मुझे लगता है कि इस दिशा में हिन्दी के समाचार पत्र बहुत कोताही बरत रहे हैं। हिन्दी अखबारों का जितना प्रसार है वे हिन्दी के बारे में, हिन्दी ब्लागों के बारे में, हिन्दी हस्तियों के बारे में, हिन्दी-जनता के हित की बात आदि कभी भूलकर भी नहीं करते।
अवधिया जी,
यह चिन्ता का विषय तो है ही कि हिन्दी ब्लागिंग को अभी ठीक-ठाक सम्मान नहीं मिल पाया है, लेकिन लगता है कि जल्द ही सब कुछ ठीक हो जाएगा। हमें उम्मीद का दामन नहीं छोड़ना चाहिए।
हम तो ईमानदारी पूर्वक अपना काम कर रहे हैं, यदि सभी ऐसा ही करें तो एक दिन अवश्य सपना पूरा होगा। बस अपने श्रेष्ठ विचार देते रहिए, इस बात की चिन्ता मत करिए कि क्या हो रहा है और क्या नहीं। दुनिया में सभी कुछ होगा।
काफी उत्थान हुआ है हिंदी ब्लोगिंग का....और विकास होगा...उम्मीद का दामन ना छोड़ें
अवधिया जी
जरुर मिलेगा वो सम्मान जो आप चाहते है, निराश ना हो
बस हर कोई ईमानदारी से अपना सार्थक लेखन जारी रखे तो एकदिन सफलता मिलनी तो निश्चित है......
इसका एक बड़ा कारण है ब्लॉग को निजी डायरी के रूप में देखा और प्रयोग किया जाना. जबकि ये मुफ्त में उपलब्ध सबसे बड़ा सार्वजनिक मंच है .
ढेरों ऐसे ब्लॉग है जिनमे हिंदी और भारत कि ऐसी अद्भुत जानकारियाँ भरी है जो अन्यत्र उपलब्ध नहीं है, हिंदी ब्लोग्स में व्यवस्थित जानकारियों का अभाव है, अगर आप सिर्फ अपने विचार ही ब्लॉग के माध्यम से परोसेंगे तो आप एक निश्चित पाठक संख्या तक ही पहुँच बना पायेंगे .
जरुरत है हिंदी ब्लोग्स को उपयोगी बनाने कि आपका क्षेत्र चाहे जो भी हो उस क्षेत्र कि उपयोगी जानकारियां ब्लॉग के माध्यम से दें तो पाठक संख्या बढ़ेगी और ब्लॉग को व्यक्तिगत डायरी के ठप्पे से मुक्ति मिल पाएगी .
हिन्दीभाषियों का इंटरनेट यूजर्स होना तो ठीक है पर अभी भी इंटरनेट पर हिन्दी का प्रयोग वे नाम मात्र के लिए ही करते हैं. अभी समय लगेगा.
विरोधाभास जी ने और काजल जी ने बहुत कुछ सही कह दिया है । अवधिया जी , मगर मेरा विश्वास है कि देर सवेर स्थिति में सुधार भी आएगा ,बदलाव तेजी से हो रहे हैं
इसके पीछे कई कारण हैं:
* इंटरनेट की सीमित व मंहगी पहुँच
* हिन्दी (देवनागरी) लिपि में उपभोक्ता इंटरफ़ेस वाले कम्प्यूटर सॉफ़्टवेयरों की अनुपलब्धता
* कम्प्यूटर पर हिन्दी कैसे लिखें? इसकी अनभिज्ञता या उदासीनता
* समाज में मूलभूत सुविधाओं की पूर्ति हेतू जूझने को प्राथमिकता
* हिन्दी के शब्दों वाक्यांशों की जाँच करने वाले साधनों का अभाव
* अंग्रेजी को श्रेष्ठ समझने का संक्रमण काल
वगैरह-वगैरह
टांग खिंचाई/ तू-तू मैं-मैं/ गाली गलौज़/ घृणास्पद लेखन/ ईर्ष्या जैसी चीजें तो उपरोक्त के बाद गिनी जानी चाहिए
बी एस पाबला
खुशदीप जी के विचारो से सहमत हूँ ..वो सुबह फिर कभी आयेगी ....आभार.
गुरू, यह टिप्पड़ियों की संख्या का भी तो चक्कर है । ऐसा लगता है कि बहुत सारी टिप्पड़ियां बिना पढ़े की जा रही हैं । मेरा अनुमान है और मानना भी है कि रोजाना कोई इतना पढ़ कर टिप्पड़ी नही दे सकता , जितना कुछ लोग देते हैं । उनकी टिप्पड़ी भी बंधी बंधाई होती है , जिससे स्पष्ट हो जाता है कि बिना पढ़े ही दिया गया है । असल मे एक निश्चित पाठक वर्ग है और वही लेखक भी है । इसलिए व्यवहारवाद हावी हो रहा है । यानी उधार उतारने जैसा काम हो रहा है । जबकि होना यह चाहिए कि जो भी विषय या बात ठीक लगे उसे पढ़ें और यदि उचित लगे तो टिप्पड़ी दें । लेकिन ग्रुप बनाने से हम आपस मे सिमट ही जायेंगे विस्तार पाना मुश्किल होगा क्योंकि ग्रुप की एक मानसिकता होती है - उसमे प्रवेश कर पाना मुश्किल होता है और उसके सदस्यों को आपसी व्यवहार निभाना पड़ता है वरना बहिस्कार का अंदेशा रहता है । यानी ग्रुप प्रभावशाली तो हो सकता है पर व्यापक नही हो सकता ।
अब जहां तक इसकी लोकप्रियता बढ़ाने की बात है तो शायद एक तरीका यह हो सकता है कि यदि इसका अनुवाद हर भाषा मे स्वत: हो जाये ( अनुवाद शुद्ध हो क्योंकि टूल के माध्यम से जो अनुवाद मैं अपनी पोस्ट का पाता हूं वह अर्थ का अनर्थ कर देती है ) और गूगल आदि सर्च इंजन पर अंग्रजी शब्दों की सर्च पर भी उपलब्ध हो तो शायद संभव है कि ज्यादा पाठक मिले और इसकी लोकप्रियता बढ़े । हिंदी का मीडिया मे भी प्रभाव तभी बढ़ा जब बाजार की संभावना के चलते उत्पादकों ने हिंदी भाषी मध्यवर्ग को लक्ष्य किया । साथ ही साथ भाषा भी हिंदी से हिंग्लिश बन गयी । शायद ऐसा ही कुछ रास्ता हो सकता है ।
अनुनाद जी से सहमत हूँ इलाहाबाद के अमर उजाला में ब्लॉग कोना छपना बंद हो गया है
ऐसा क्यों किया गया मेरे समझ में नहीं आया मगर दुःख बहुत हुआ
लगे हैं और लगे रहेंगे, सुधार जरुर आयेगा.
थोडा समय लगेगा पर वो दिन आएगा
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