Tuesday, June 8, 2010

मतलब निकल गया है तो पहचानते नहीं

युवक ने पहली बार अपनी गर्ल-फ्रेंड को अपने कमरे में इन्व्हाइट किया। लड़की इन्व्हीटेशन कबूल करके उसके साथ चल पड़ी। लड़के का कमरा ऊपर की मंजिल पर था जिसके लिये लकड़ी की सीढ़ियाँ बनी थीं। चौथी सीढ़ी के बाद पाँचवी सीढ़ी पर पैर रखते समय लड़के ने लड़की को बड़े प्यार से बताया, "अगली सीढ़ी पर संभल कर पैर रखना क्योंकि उसमें एक छेद है जिसमें पाँव फँस जाने का डर है।"

आधे घंटे के बाद जब वे दोनों वापस जाने के लिये सीढ़ियाँ उतर रहे थे तो लड़की का पैर सीढ़ी के छेद में फँस ही गया। उसे फँसे देखकर लड़के ने बड़ी रुखाई के साथ उससे कहा, "आँख की अंधी होने के साथ ही साथ अकल की भी अंधी है क्या? आधे घंटे पहले ही बताई बात को याद नहीं रख सकती?"

तो मित्रों, यह संसार ऐसा ही है जहाँ पर लोग सिर्फ मतलब का व्यवहार रखते हैं। इसीलिये तो 'गिरिधर' कवि ने कहा हैः

सांई सब संसार में, मतलब को व्यवहार।
जब लग पैसा गाँठ में, तब लग ताको यार॥
तब लग ताको यार, यार संगही संग डोलैं।
पैसा रहा न पास, यार मुख से नहिं बोलैं॥
कह 'गिरिधर' कविराय जगत यहि लेखा भाई।
करत बेगरजी प्रीति यार बिरला कोई सांई॥

16 comments:

honesty project democracy said...

ज्यादातर मामलों में आपकी बात सच है लेकिन कुछ लोग हैं अभी भी जो निःस्वार्थ व्यवहार करते हैं ,हाँ ये जरूर है की इंसानियत बढे यह स्वार्थ उनका भी होता है लेकिन ऐसे लोग अब खत्म होते जा रहें हैं |

Khushdeep Sehgal said...

गधे को भी बाप यूहीं थोड़े बनाते हैं लोग...

जय हिंद...

रंजन (Ranjan) said...

सही है...

ब्लॉ.ललित शर्मा said...

नाईस कहे हस गुरुदेव

बने गियान पाएवं

जोहार ले

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

इसमें कोई शक है क्या??

शिवम् मिश्रा said...

बहुत सटीक तरह से समझाया है आपने !

Shah Nawaz said...

:-)

बहुत ही सटीक लेख.

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" said...

आज के जमाने में यही तो दुनिया का दस्तूर है अवधिया जी!

Randhir Singh Suman said...

nice

परमजीत सिहँ बाली said...

सही बात!

राजकुमार सोनी said...

आपकी इस पोस्ट को पढ़कर मुझे पुराने फिल्म के उस दृश्य की याद आ रही है जब हीरो-हिरोइन बगीचे में प्यार करते थे तो दो फूलों को टकराते हुए दिखाया जाता था।
आपने बगैर लिखे ही स्पष्ट कर दिया कि लड़का-लड़की के बीच क्या हुआ होगा।
अच्छी पोस्ट है।

कडुवासच said...

...बहुत खूब !!!

shikha varshney said...

एकदम सही ओर सटीक.

सूर्यकान्त गुप्ता said...

करत बेगरजी प्रीति यार बिरला कोई सांई॥
सौ फीसदी सही। बस लेकिन एक ही बात कहना चाहुन्गा लोगों को परमार्थ को भी ध्यान मे रखना चाहिये, यह समझकर कि इसमे भी अपना ही स्वार्थ सिद्ध हो रहा है।

एक बेहद साधारण पाठक said...

रचना अच्छी है

एक बेहद साधारण पाठक said...

रचना अच्छी है