अस्तु, किसी की पसन्द और नापसन्द से हमें भला करना ही क्या है, हम तो भगवान श्री राम से यही प्रार्थना करते हैं कि उस भले मानुष का कल्याण करे!
भले ही किसी की पसन्द और नापसन्द से हमें कुछ लेना देना ना हो किन्तु ब्लोगवाणी नापसन्द बटन के विषय में जरूर कुछ कहना चाहेंगे क्योंकि यह बहुत सारे ब्लोगर्स को प्रभावित करता है। इस विषय में हम एक बार फिर से अपने पोस्ट "नापसन्द बटन याने कि बन्दर के हाथ में उस्तरा" कही गई बात को दुहराना चाहेंगे कि:
खुन्नस रखने वालों के लिये नापसन्द का यह बटन "बन्दर के हाथों उस्तरा" ही साबित हो रहा है।
चलते-चलते
A good man in an evil society seems the greatest villain of all.
खराब समाज में सभी लोगों को एक अच्छा आदमी सबसे बड़ा खलनायक जैसा लगता है।
A lie can be halfway around the world before the truth gets its boots on.
सत्य से पराजित होने के पूर्व झूठ आधी दुनिया की यात्रा कर लेता है।
Bad news travels fast.
खराब समाचार तेजी से फैलता है।
An empty vessel makes the most noise.
खाली बर्तन अधिक आवाज करता है। अधजल गगरी छलकत जाय।
All that glisters is not gold.
हर चमकने वाली चीज सोना नहीं होती।
14 comments:
उस पोस्ट पर नापसन्द का चटका लगा देखकर मुझे भी बहुत ताज्जुब हुआ था..
और यही नहीं उस दिन कई अच्छी और निर्विवादित (मेरे हिसाब से) पोस्टों पर भी नापसन्द का चटका लगा था...
दीवाना था कोई...
ये दे अवधिया जी,
इसमें भी किसी ने लगा दिया नापसंद,
जयचंद की औलाद ने।
आप अपना काम करिए
और इनसे निपटने का काम रामदूत पर छोड़िए
जब उसकी गदा की मार पड़ती है
तो दाई ददा सब याद आ जाता है।
रामदूत अतुलित बलधामा।
अंजनी पूत्र पवनसुत नामा॥
बोल सियारामचंद्र की जय।
हा-हा, उसी विरादरी का है यह एन्डरसन की नाजायज औलाद, दिलजला खान !
avdhiya ji !
kuchh de hi raha hai na ...
rakh lo
main bhi ye soch kar santosh kar raha hoon ki bhale hi vah naapasand kar raha hai lekin aa to raha hai
नापसन्द का चटका पोस्ट पर नहीं बल्कि ब्लागर पर लगता है .. साबित हो गया.
अपना भी हाल तेरे जैसा है,
क्या करें हम भी, मौसम ही ऐसा है...
जय हिंद...
नापसन्द का चटका पोस्ट पर नहीं बल्कि ब्लागर पर लगता है .. साबित हो गया.
सही कहा वर्माजी आपने और अवधिया जी आपने भी सही फ़रमाया है इस ब्लॉगजगत में कुछ रावण हैं जिनका भला राम जी ही करेंगे और कोई उसका भला कर भी नहीं सकता ,ऐसे लोग मानसिक रूप से बीमार ही कहे जा सकते हैं |
यह काम तो अल्लह के बन्दों का ही हो सकता है
कहत कबीरा-सुन भई साधो
आपका इशारा जिनकी ओर है यह काम कदापि उनका नहीं है। "संक्षिप्त वाल्मीकि रामायण" ब्लोग जब से आरम्भ हुआ है तब से आज तक उन्होंने ऐसा कार्य नहीं किया तो अन्तिम पोस्ट में भला क्यों करने लगे?
यह काम "अल्लाह के बन्दों" का नहीं "भगवान के किसी भक्त" का ही है।
पसन्द ना पसन्द पर चटका लगाने के लिए पोस्ट पढ़ना जरूरी नहीं है. चटाकाना भी एक मानसिक संतोष देता है तो विघ्नसंतोषी द्वारा चटका लगा दिया जाता है.
@ संजय बेंगाणी
संजय जी, शायद आपने ध्यान दिया हो कि आजकल कुछ ब्लोगर्स को निशाना बना कर उनके पोस्टों पर नापसन्द का चटका लगाया जा रहा है जो कि किसी घिनौने सोच वाले व्यक्ति या गुट का ही काम है।
हमें भी यही लगता है कि हो न हो जरूर इसके पीछे आपसी गुटबाजी ही कारण होगा....क्यों कि नापसन्द ब्लागर को किया जा रहा है न कि उसकी पोस्ट को...
पसंद नापसंद व्यक्तिगत मामला है । इसे सार्वजनिक कर के व्यर्थ ही उत्पात और विवाद को बढ़ावा दिया जा रहा है ।
नापसन्द लगाने वाले का भी राम जी करेन्गे बेड़ा पार दासी मन काहे को डरे। काहे को डरे रे………………।
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