Thursday, June 10, 2010

भगवान राम भला करे उसका जो "वाल्मीकि रामायण" पर भी नापसन्द का चटका लगाता है

सभी की अपनी अपनी पसन्दगी और नापसन्दगी होती है। हम जानते हैं कि पसन्द और नापसन्द व्यक्ति का अपना निजी मामला होता है इसीलिये हमारे ब्लोग "धान के देश में" में किसी पोस्ट के प्रकाशित होते ही नापसन्द का चटका लग जाने पर हमें कभी भी आश्चर्य नहीं होता। किन्तु हमारे "संक्षिप्त वाल्मीकि रामायण" के कल के अन्तिम पोस्ट में एक नापसन्द का चटका लगे देखकर हमें किंचित आश्चर्य अवश्य हुआ क्योंकि प्रायः देखा यही गया है कि किसी ऐसे ग्रंथ को जिसे कि सम्पूर्ण विश्व में मान्यता प्राप्त हो यदि कोई पसन्द नहीं कर पाता तो उसके प्रति, शिष्टाचार के नाते ही सही, अपनी नापसन्दी भी नहीं जताता।



अस्तु, किसी की पसन्द और नापसन्द से हमें भला करना ही क्या है, हम तो भगवान श्री राम से यही प्रार्थना करते हैं कि उस भले मानुष का कल्याण करे!

भले ही किसी की पसन्द और नापसन्द से हमें कुछ लेना देना ना हो किन्तु ब्लोगवाणी नापसन्द बटन के विषय में जरूर कुछ कहना चाहेंगे क्योंकि यह बहुत सारे ब्लोगर्स को प्रभावित करता है। इस विषय में हम एक बार फिर से अपने पोस्ट "नापसन्द बटन याने कि बन्दर के हाथ में उस्तरा" कही गई बात को दुहराना चाहेंगे कि:

खुन्नस रखने वालों के लिये नापसन्द का यह बटन "बन्दर के हाथों उस्तरा" ही साबित हो रहा है।


चलते-चलते

A good man in an evil society seems the greatest villain of all.

खराब समाज में सभी लोगों को एक अच्छा आदमी सबसे बड़ा खलनायक जैसा लगता है।

A lie can be halfway around the world before the truth gets its boots on.

सत्य से पराजित होने के पूर्व झूठ आधी दुनिया की यात्रा कर लेता है।

Bad news travels fast.

खराब समाचार तेजी से फैलता है।

An empty vessel makes the most noise.

खाली बर्तन अधिक आवाज करता है। अधजल गगरी छलकत जाय।

All that glisters is not gold.

हर चमकने वाली चीज सोना नहीं होती।

14 comments:

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

उस पोस्ट पर नापसन्द का चटका लगा देखकर मुझे भी बहुत ताज्जुब हुआ था..
और यही नहीं उस दिन कई अच्छी और निर्विवादित (मेरे हिसाब से) पोस्टों पर भी नापसन्द का चटका लगा था...
दीवाना था कोई...

ब्लॉ.ललित शर्मा said...

ये दे अवधिया जी,
इसमें भी किसी ने लगा दिया नापसंद,
जयचंद की औलाद ने।

आप अपना काम करिए
और इनसे निपटने का काम रामदूत पर छोड़िए
जब उसकी गदा की मार पड़ती है
तो दाई ददा सब याद आ जाता है।

रामदूत अतुलित बलधामा।
अंजनी पूत्र पवनसुत नामा॥

बोल सियारामचंद्र की जय।

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

हा-हा, उसी विरादरी का है यह एन्डरसन की नाजायज औलाद, दिलजला खान !

Unknown said...

avdhiya ji !

kuchh de hi raha hai na ...


rakh lo


main bhi ye soch kar santosh kar raha hoon ki bhale hi vah naapasand kar raha hai lekin aa to raha hai

M VERMA said...

नापसन्द का चटका पोस्ट पर नहीं बल्कि ब्लागर पर लगता है .. साबित हो गया.

Khushdeep Sehgal said...

अपना भी हाल तेरे जैसा है,
क्या करें हम भी, मौसम ही ऐसा है...

जय हिंद...

honesty project democracy said...

नापसन्द का चटका पोस्ट पर नहीं बल्कि ब्लागर पर लगता है .. साबित हो गया.
सही कहा वर्माजी आपने और अवधिया जी आपने भी सही फ़रमाया है इस ब्लॉगजगत में कुछ रावण हैं जिनका भला राम जी ही करेंगे और कोई उसका भला कर भी नहीं सकता ,ऐसे लोग मानसिक रूप से बीमार ही कहे जा सकते हैं |

कहत कबीरा-सुन भई साधो said...

यह काम तो अल्लह के बन्दों का ही हो सकता है

Unknown said...

कहत कबीरा-सुन भई साधो

आपका इशारा जिनकी ओर है यह काम कदापि उनका नहीं है। "संक्षिप्त वाल्मीकि रामायण" ब्लोग जब से आरम्भ हुआ है तब से आज तक उन्होंने ऐसा कार्य नहीं किया तो अन्तिम पोस्ट में भला क्यों करने लगे?

यह काम "अल्लाह के बन्दों" का नहीं "भगवान के किसी भक्त" का ही है।

संजय बेंगाणी said...

पसन्द ना पसन्द पर चटका लगाने के लिए पोस्ट पढ़ना जरूरी नहीं है. चटाकाना भी एक मानसिक संतोष देता है तो विघ्नसंतोषी द्वारा चटका लगा दिया जाता है.

Unknown said...

@ संजय बेंगाणी

संजय जी, शायद आपने ध्यान दिया हो कि आजकल कुछ ब्लोगर्स को निशाना बना कर उनके पोस्टों पर नापसन्द का चटका लगाया जा रहा है जो कि किसी घिनौने सोच वाले व्यक्ति या गुट का ही काम है।

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" said...

हमें भी यही लगता है कि हो न हो जरूर इसके पीछे आपसी गुटबाजी ही कारण होगा....क्यों कि नापसन्द ब्लागर को किया जा रहा है न कि उसकी पोस्ट को...

डॉ टी एस दराल said...

पसंद नापसंद व्यक्तिगत मामला है । इसे सार्वजनिक कर के व्यर्थ ही उत्पात और विवाद को बढ़ावा दिया जा रहा है ।

सूर्यकान्त गुप्ता said...

नापसन्द लगाने वाले का भी राम जी करेन्गे बेड़ा पार दासी मन काहे को डरे। काहे को डरे रे………………।