सीनियर ब्लोगर, जूनियर ब्लोगर, बड़े ब्लोगर, छोटे ब्लोगर, महान ब्लोगर ....
आखिर क्या है यह? ब्लोगर महान होता है या उसका पोस्ट उसे महान बनाता है?
हमारा तो मानना है कि सिर्फ रचना ही छोटी, बड़ी या महान होती है जो कि रचयिता को भी छोटा, बड़ा या महान बना देती है। लेखन का विषय चाहे जो भी हो, यदि उसके भाव पाठक के दिल में घर कर जाते हैं तो वह लेखन महान हो जाता है। 'भगवतीचरण वर्मा' जी की कृति "चित्रलेखा" इसलिये महान हो गयी क्योंकि वर्मा जी ने अपनी उस कृति में 'नर्तकी चित्रलेखा' और 'तपस्वी कुमारगिरि' के अहं (ego) के टकराव को इतने सुन्दर और प्रभावशाली शैली में व्यक्त किया कि उनकी अभिव्यक्ति पाठकों के मन को छू गई। चित्रलेखा जैसे एक साधारण नर्तकी से कुमारगिरि जैसे महान ज्ञानी का पराजित हो जाने को उन तपस्वी का अहं स्वीकार नहीं कर पाता। किन्तु तपस्वी नर्तकी से सिर्फ एक बार नहीं बल्कि बार-बार पराजित हो कर पतन के गर्त में गिरते ही चला जाता है और अन्त में योगी से भोगी हो जाता है, पुण्यात्मा से महान पापी हो जाता है। "चित्रलेखा" उपन्यास को नर्तकी और तपस्वी के अहं के टकराव ने महान बना दिया और कृति की महानता ने रचयिता भगवतीचरण वर्मा को महान लेखकों की सूची में सम्मिलित कर दिया। चित्रलेखा उपन्यास वर्मा जी की आरम्भिक कृतियों में से है, जब इस उपन्यास को उन्होंने लिखा था तो उनकी अवस्था बहुत कम थी। तो क्या उम्र कम होने के कारण से ही उन्हें छोटा या जूनियर रचनाकार कहा जाता? हमारे विचार से तो कदापि नहीं।
अहं के टकराव की प्रभावशाली अभिव्यक्ति ने चित्रलेखा ही नहीं बल्कि और भी अनेक कृतियों को महान बना दिया है। फाँसी की सजा पाये विलक्षण कैदी और जेल के जेलर के अहं के टकराव की अभिव्यक्ति ने 'अनिल बरवे' जी के नाटक "थैंक यू मिस्टर ग्लाड" को अत्यन्त लोकप्रिय और चर्चित बना दिया। 'शरतचन्द्र' जी के उपन्यास "पथ के दावेदार" में माँ के किसी ईसाई के साथ द्वितीय विवाह कर लेने के कारण ईसाई हो गई, किन्तु विशुद्ध हिन्दू संस्कार वाली, मिस भारती जोसेफ और बंगाली युवक अपूर्व के अहं के टकराव की अभिव्यक्ति इतनी सुन्दर है कि पाठक उस काल्पनिक कथा के संसार में खो जाता है और उस टकराव को स्वयं अनुभव करने लग जाता है।
अनेक बाते हैं जो कि रचनाकार की रचना को महान बनाती हैं जैसे कि पात्रों का चरित्र-चित्रण, रचना में भावों की सुन्दर अभिव्यक्ति, लेखन शैली आदि-आदि इत्यादि। सूबेदारनी का लहनासिंह के प्रति विश्वास और लहनासिंह का सूबेदारनी के प्रति आत्मिक प्रेम (प्लूटेरियन लव्ह) की अभिव्यक्ति ने "उसने कहा था" को संसार भर में लोकप्रिय बना कर चन्द्रधर शर्मा 'गुलेरी' जी को अमर कर दिया। गोदान में ग्राम्य तथा नगरीय जीवन शैली को समटते हुए ग्रामीण होरी का दर्द, गाँव के जमींदार के द्वारा ग्रामीणों के शोषण, नगर के प्रोफेसर मेहता और मिस मालती के विचारों के अन्तरद्वन्द्व की प्रभावशाली अभिव्यक्ति 'प्रेमचंद' जी के लेखन की ऐसी विशेषता है जो उन्हें अतिविशिष्टता प्रदान कर के महान बना देती है।
ब्लोगिंग भी अपने विचारों को व्यक्त करने का एक सशक्त माध्यम है और हमारा मानना है इस माध्यम के द्वारा आप बड़े, छोटे, सीनियर, जूनियर कदापि नहीं बन सकते, हाँ महान अवश्य बन सकते हैं यदि आप अपने पाठकों के हृदय में घर कर लेते हैं तो! आपकी अभिव्यक्ति ही आपको पाठकों की विशाल संख्या प्रदान कर के आपको श्रेष्ठता प्रदान कर सकती है। इसलिये हमारा अनुरोध है कि आप सीनियर ब्लोगर, जूनियर ब्लोगर, बड़े ब्लोगर, छोटे ब्लोगर, महान ब्लोगर आदि बातों का विचार न कर सिर्फ उत्तम लेखन पर ही ध्यान देते रहें।
29 comments:
सही है..
सादर नमस्कार।
ब्लोगिंग भी अपने विचारों को व्यक्त करने का एक सशक्त माध्यम है और हमारा मानना है इस माध्यम के द्वारा आप बड़े, छोटे, सीनियर, जूनियर कदापि नहीं बन सकते, हाँ महान अवश्य बन सकते हैं यदि आप अपने पाठकों के हृदय में घर कर लेते हैं तो! आपकी अभिव्यक्ति ही आपको पाठकों की विशाल संख्या प्रदान कर के आपको श्रेष्ठता प्रदान कर सकती है। इसलिये हमारा अनुरोध है कि आप सीनियर ब्लोगर, जूनियर ब्लोगर, बड़े ब्लोगर, छोटे ब्लोगर, महान ब्लोगर आदि बातों का विचार न कर सिर्फ उत्तम लेखन पर ही ध्यान देते रहें।
------शत-प्रतिशत सही।...लेखन सार्थक, साकारात्मक और उत्तम होना चाहिए।।। सादर।।
आपने बिलकुल सही कहा कि सिर्फ रचना ही छोटी, बड़ी या महान होती है जो कि रचयिता को भी छोटा, बड़ा या महान बना देती है
रचनाकार रचना करता है और फिर रचना का गाम्भीर्य और श्रेष्ठता ही रचनाकार को पहचान देता है
रिटायर्ड बाबा , आप ऐसा दूसरो की महानता से जलकर तो नही कह रहे है न ?
बहोत सही कहा आपने एक बार मेरे ब्लॉग पर भी अवश्य पधारे
ब्लॉगर का लेखन ही मायने रखता है ....
आपने बिलकुल सही कहा कि सिर्फ रचना ही छोटी, बड़ी या महान होती है जो कि रचयिता को भी छोटा, बड़ा या महान बना देती है......
great
मुझे कुछ समझ नही आया अंकल जी ।
बात सही कही, जो दमदार लिखेगा वही दमदार कहलाएगा.
agreed
sehmat hu aapke kathan se
आपकी बात से असहमत होने का तो कोई सवाल ही नहीं....वैसे हमारी नजर में रचना से अधिक महान तो पाठक है, जिनके कारण ही किसी भी रचना/रचनाकार का भाग्य तय होता है...
एक बेहद उम्दा पोस्ट ! बहुत बहुत बधाइयाँ,शुभकामनाएं|
आपने बिकुल सही बात कही है भईया..
लेखन ही वो कसौटी है जिसपर किसी भी रचनाकार कि योग्यता जाँची जाती है....
एक सार्थक प्रविष्ठी...
आभार...
एकदम सही बात.
आज आपने खरी- खरी और बहुत ही उच्च कोटि की बात कही अवधिया सहाब !
सार्थक आलेख.
वैसे हमारी रिसर्च ये भी कह रही है कि पोस्ट महान नही होती बल्कि उसको मिले चटके और टीप उसे महान बनाते है.
सही है
श्रीमान जी आप गलतफ़हमी ना पालें. इस ब्लागजगत में अनूप शुक्ल जी के जितना स्वस्थ और गंभीर लेखक शायद दूसरा कोई भी नही है। और इसी लीक पर ज्ञानदत्त पांडे जी भी चल रहे हैं। इन लोगों के आसपास भी कोई दूसरा ब्लागर नही लगता। कुछ स्वनामधन्य ब्लागर तो
आजकल बिल्ली कुत्ते और गधों के नाम पर ब्लागिंग कर रहे हैं। और कूछ लोग हर पोस्ट पर टिप्पणी कर करके महान ब्लागरों की श्रेणी में शामिल हो गये हैं जबकि महान लेखन करना उनके वश की बात नही है.
उनको आप महान कहेंगे क्या?
लेखन ही सर्वोपरि है..उम्दा आलेख.
आपसे सहमत!
टंगड़ीमार ही दी नामाकूल ने चलो ठीक है
पर मैं आपसे सहमत हूं
सत्य वचन।
सादर वंदे गुरूदेव !
अनुकरणीय पोस्ट. बहुत सी कृतियों के पात्रों को स्मृति में लाने के लिए धन्यवाद.
बिलकुल सही जी,
ऐसा ही कुछ कल मैंने लिखा था :)
अवधिया जी, हम तो आपके लेखन, ऊर्जा और हास्यबोध के मुरीद है, इसलिए हमारे लिए तो आप ही महानतम हैं...
वैसे इस पोस्ट पर एक टिप्पणी भी महान है...
जय हिंद...
...बात में दम है !!!!
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