Monday, July 19, 2010

थोड़ी खुशियाँ थोड़े गम हैं यही है यही है छाँव-धूप ... बीत गये जीवन के साठ साल...

पल क्षणों में क्षण घंटों में और घंटे दिन-रात में परिणित होते जाते हैं और समय अबाध गति से बीतते जाता है। काल का पहिया ज्यों-ज्यों घूमता है उम्र तिल-तिल करके घटते जाता है। शैशवकाल लड़कपन में लड़कपन किशोरावस्था में, किशोरावस्था युवावस्था में और युवावस्था वृद्धावस्था में कैसे बदलते जाता है यह पता ही नहीं चल पाता।

आज थोड़ी देर के लिये भी बिजली चली जाती है प्रतीत होने लगता है कि अंधा हो गया हूँ मैं। पर एक जमाना वह भी था कि कंदील की रोशनी में पढ़ाई किया करता था। रायपुर शहर में बिजली थी अवश्य किन्तु घर में नहीं थी। नौ-दस साल का रहा होउँगा उन दिनों मैं, रात का खाना खाने के बाद कंदील की रोशनी में गणित के सवाल हल करने बैठ जाया करता था। रुपया-आना-पैसा, मन-सेर-छटाक, तोला-माशा-रत्ती, ताव-दस्ता-रीम के जोड़-घटाने वाले सवाल फटाफट हल करता और दादी के पास चला जाता कहानी सुनने। सुखसागर, श्रीमद्भागवत, रामायण आदि के दृष्टांत सुनाया करती थीं दादी मुझे।

जिस जमाने में मेट्रिक की परीक्षा पास कर लेने वाले को भी अच्छी वेतन वाली सरकारी नौकरी मिल जाया करती थी उस जमाने में पिताजी, स्व. श्री हरिप्रसाद अवधिया, हिन्दी में एम.ए. करने के बाद भी स्कूल मास्टर थे। स्वयं की दृष्टि में स्वाभिमानी और लोगों की नजर में अकड़ू। अकड़ में आकर तीन-चार नौकरियाँ छोड़ी उन्होंने। हम स्वयं को मध्यमवर्गीय कहा करते थे किन्तु वास्तव में देखा जाये तो किसी प्रकार से परिवार चल जाया करता था। नीले रंग के हाफ-पेंट और सफेद रंग की कमीज वाली स्कूल ड्रेस के दो जोड़ों में ही हायर सेकेंडरी तक की पढ़ाई पूरी हुई। ग्यारहवीं कक्षा पहुँचने पर पहली बार फुलपेंट पहनने का सौभाग्य मिला। अभाव के कारण इंजीनियरिंग कॉलेज में दाखिला हो जाने के लगभग छः माह बाद इंजीनियरिंग की पढ़ाई जारी नहीं रख पाया। इंजीनियरिंग कॉलेज छोड़कर साइंस कॉलेज आ गया।

यद्यपि अभाव था किन्तु मैं अपनी ही मस्ती में मस्त रहा करता था। चिन्ता फिकर करने के लिये माँ, बाबूजी और दादी माँ थीं। फिल्मों के प्रति रुझान (उन दिनों मैं थर्ड क्लास में ही फिल्में देखा करता था), अवस्थाजनित विपरीतलिंगीय आकर्षण आदि ने कभी अभाव का अनुभव ही नहीं होने दिया। उन दिनों छोटी बहन की सहेली बहन से कहा करती थी, "चज चल्दी चच चल चना चरे! चते चरा चभा चई चघू चर चघू चर चके चदे चख चर चहा चहै चमु चझे"। और बहन मुस्कुरा के जवाब देती, "चतो चक्या चहो चग चया? चतू चही चतो चमे चरी चभा चभी चब चने चगी"। यद्यपि वे दोनों बड़ी तेज गति से इस 'च' वाली सांकेतिक भाषा में बोला करती थीं और समझती थी मुझे उनकी यह सांकेतिक भाषा का ज्ञान नहीं है पर मैं सब समझता था।

पिताजी की अन्तिम नौकरी छूटने पर चार भाइयों और एक बहन में ज्येष्ठ होने के कारण मुझे भौतिकशास्त्र में एम.एससी. फाइनल की पढ़ाई छोड़कर नौकरी कर लेनी पड़ी। फिर एक बार घर चलाने का जो बोझ कंधे पर आई वह आज तक चल ही रही है। माँ-बाबूजी का इलाज और अन्ततः स्वर्गवास, भाई-बहनों की शादी और उसके बाद बच्चों के पालन-पोषण की जिम्मेदारी। बस इन्हीं सब में ही उम्र तमाम होती रही, मीनाकुमारी जी की शे'र के जैसेः

सुबह होती है शाम होती है
जिन्दगी यूँ ही तमाम होती है।


आज जीवन के साठ वर्ष पूरा होने पर सारा विगत चलचित्र के समान आँखों के सामने घूम गया और यह पोस्ट भी बन गई।

मन में विचार आता है कि क्या है यह जीवन? कभी रूप-वैभव का दर्प, कभी प्रभुता-महत्ता-सत्ता का मद तो कभी रोग-शोक-दुःख- चिन्ता! क्या यही जीवन है? पूरा जीवन बीत जाता है और जीवन का उद्देश्य क्या है हम यह भी नहीं जान पाते। आशा और तृष्णा की मरीचिका के पीछे भागते रहते हैं हम। इसीलिये कबीरदास जी ने कहा हैः

माया मरी न मन मरा, मर-मर गए शरीर ।
आशा तृष्णा न मरी, कह गए दास कबीर ॥

22 comments:

ब्लॉ.ललित शर्मा said...

जन्मदिवस की हार्दिक शुभकामनाएं।

साठ के उमर होगे हे, सठियाए नइ हस

साठा सो पाठा कहते हैं।

उम्र के साथ ज्ञान का भंडार बढता है।

गाड़ा गाड़ा बधाई

राज भाटिय़ा said...

अवाधिया जी आप को जन्मदिवस की हार्दिक शुभकामनाएं। ओर बधाई, हम भी आ रहे है पीछे पीछे... आप का प्यार हम सब को युही मिलता रहे ५०, ६० साल ओर.
धन्यवाद

शिवम् मिश्रा said...

आदरणीय अवधिया जी, आप को जन्मदिन की हार्दिक बधाइयाँ और शुभकामनाएं ।

प्रवीण पाण्डेय said...

जन्मदिन की बधाईयाँ।
60 हुये तो क्या हुआ, जीवेत वर्षम् शतम्।

Anonymous said...

जन्मदिवस की हार्दिक शुभकामनाएं!

संगीता पुरी said...

जन्‍मदिन की शुभकामनाएं !!

Unknown said...

sathiyane ki

saath saath badhaaiyan......

अजित गुप्ता का कोना said...

वर्तमान में तो साठ के बाद ही जीवन शुरू होता है क्‍योंकि पहले तो सभी के लिए कुछ न कुछ करते रहे बस अब ही अपने लिए समय मिला है। तो बस आज खुशियां मनाइए, नव नूतन जन्‍मदिन की। आपकों ढेरों बधाइयां।

The Straight path said...

जन्‍मदिन की शुभकामनाएं !!

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

जन्मदिन की शुभकामनायें....

चतो चब चहन चकी चस चहे चली चब चहन चकी चभा चभा चभी चन चहीं चब चनी ?

Unknown said...

@ संगीता स्वरुप ( गीत )

चब चनी!

नवीन प्रकाश said...

जी. के. अवधिया जी आपको जन्मदिन की बहुत बधाई व शुभकामनायें

Amit Sharma said...

जन्मदिन की बहुत बधाई व शुभकामनायें

Amit Sharma said...

बाउजी एक कहावत भी तो है ना......... "साठा सो पाठा" :-)

Udan Tashtari said...

जन्मदिवस की बहुत बधाई एवं हार्दिक शुभकामनाएं

डॉ टी एस दराल said...

अवधिया जी , जन्मदिन की हार्दिक बधाई ।
अब आप भले ही बुजुर्गों की श्रेणी में आ गए हैं लेकिन यह मत समझिएगा कि बूढ़े हो गए हैं ।
आपका अनुभव समाज के काम आता रहे , यही कामना है ।

girish pankaj said...

अवधिया जी, साठा सो पाठा. जन्मदिन की हार्दिक बधाई । हार्दिक शुभकामनाएं.

Arvind Mishra said...

जन्मदिन की बधाई -जब तक सांस तब तक आस !

FAITH SPOKEN ENGLISH said...
This comment has been removed by the author.
FAITH SPOKEN ENGLISH said...

Sir,
Manny manny very happy Birth Day
behalf of all student,
जन्मदिन मुबारक हो

कडुवासच said...

...फ़िलहाल तो जन्मदिन की गाडा गाडा बधाई!!!

राजकुमार सोनी said...

कल आपसे मुलाकात के बाद पता नहीं क्यों मुझे आप रणधीर कपूर की तरह गाना गाते हुए दिखे-
हम जब होंगे साठ साल के और तुम होगी बचपन की
बोलो प्रीत निभाओंगी न फिर भी अपने बचपन की.
हां जब आप गाना गा रहे थे तो सामने बबीता नहीं उसकी बेटी करिश्मा कपूर चल रही थी.
हा... हा... हा..
बधाई एवं शुभकामनाएं