ब्लोग याने कि वेबलॉग की शुरुवात हुई थी निजी किन्तु सार्वजनिक दैनन्दिनी के रूप में। अंग्रेजी ब्लोग्स की बात करें तो यह कहा जा सकता है बहुत ही तेजी के साथ उनकी की लोकप्रियता बढ़ती चली गई। लोकप्रियता बढ़ने के साथ ही साथ निजी-सार्वजनिक दैनन्दिनी वाले उनके रूप में भी परिवर्तन होता चला गया और वे व्यावसायिक होते चले गए। आज अंग्रेजी के प्रायः ब्लोग्स पूर्ण रूप से व्यावसायिक हैं। अंग्रेजी ब्लोग्स की व्यावसायिकता ने 'वर्क एट होम', 'वर्क फ्रॉम होम', 'फायर योर बॉस' आदि नई मान्यताओं को जन्म दिया। अनेक लोग अपनी नौकरी छोड़कर सफल व्यावसायिक ब्लोगर्स बन गए!
हिन्दी ब्लोग्स के साथ ऐसी बात नहीं रही, उन्हें उस प्रकार से लोकप्रियता नहीं मिल पाई जिस प्रकार से अंग्रेजी ब्लोग्स को मिली। वास्तव में हिन्दी जानने वाले नेट यूजर्स की एक बहुत बड़ी संख्या आज भी हिन्दी ब्लोग्स के अस्तित्व से ही अन्जान है। हिन्दी ब्लोग्स सर्च इंजिनों में अपनी पहचान नहीं बना पाए, उन्हें सदैव एग्रीगेटरों के सहारे की आवश्यकता बनी रही है। यही कारण है कि ब्लोगवाणी जैसे लोकप्रिय एग्रीगेटर के बंद हो जाने का अवसाद आज भी अधिकतर हिन्दी ब्लोगर्स के भीतर बना हुआ है। एग्रीगेटर्स के सहारे टिके होने के कारण हिन्दी ब्लोग्स को प्रायः हिन्दी ब्लोगर्स ही पढ़ते हैं। प्रायः सामान्य नेट यूजर्स की रुचि एग्रीगेटर्स में नहीं नहीं होती, वे सर्च इंजिनों में अपने रुचि के विषयों को ही खोजते हैं। इसी कारण से हिन्दी ब्लोग्स के पाठकों की कमी बनी रहती है जिसके कारण से हिन्दी ब्लोग्स में व्यावसायिकता की क्षमता नहीं बन पाती।
तो क्या कभी हिन्दी ब्लोग्स कभी व्यावसायिक हो पाएँगे?
हमारा तो मानना है कि अवश्य बन पाएँगे यदि हिन्दी ब्लोगर्स पाठक बढ़ाने के उद्देश्य से पाठकों की रुचियों को ध्यान में लेखन करें। टिप्पणियों की संख्या के बादले पाठकों की संख्या को अधिक महत्वपूर्ण समझें। जाने-अनजाने में हम ब्लोगरों और हमारे एग्रीगेटरों ने ही टिप्पणियों को महत्वपूर्ण बना दिया है। चिट्ठाजगत यदि 'धड़ाधड़ टिप्पणियाँ' के बदले धड़ाधड़ पठन को डीफॉल्ट हॉटलिस्ट बना दे याने कि मुख्य हॉट लिस्ट में अधिक टिप्पणियाँ पाने वाले ब्लोग्स के स्थान पर अधिक पढ़े जाने वाले ब्लोग्स दिखाई देने लगें तो ब्लोगरगण टिप्पणियाँ बढ़ाने की अपेक्षा पाठक बढ़ाने की ओर अधिक ध्यान देने लग जायेंगे। ऐसा करने से कई प्रकार के तिकड़म कर के टिप्पणी बढ़ाने वाले भी हतोस्साहित होंगे तथा चिट्ठाजगत के साख में भी वृद्धि होगी।
कुछ लोगों को यह भी लग सकता है कि आखिर हम हिन्दी ब्लोग्स की तुलना अंग्रेजी ब्लोग्स से क्यों करते हैं? इस प्रश्न का उत्तर बहुत ही सरल है। स्वयं को जानने के लिए हमें तुलना करनी ही पड़ती है, यदि हम तुलना ना करें तो न तो कभी हम स्वयं को जान पायेंगे और न ही कभी आत्म-मुग्धता से हमें मुक्ति मिल पायेगी। तुलना ही है जो कि हमें उन्नति की ओर अग्रसर करती है।
13 comments:
न तो कभी हम स्वयं को जान पायेंगे और न ही कभी आत्म-मुग्धता से हमें मुक्ति मिल पायेगी।
सत्य है गुरुदेव
तो क्या कभी हिन्दी ब्लोग्स कभी व्यावसायिक हो पाएँगे?
खाए पीए अघाए लोगों को व्यावसायिक होने की जरुरत नहीं है।
बहुत बढिया बात कही जी आपने
पाठकों की कमी ही मूल समस्या है, हिन्दी ब्लॉग्स के व्यवसायिक ना होने की।
हिन्दी ब्लॉग्स को ब्लॉगर ही पढ रहे हैं और पाठक खींचने की तरफ किसी का ध्यान नहीं है।
प्रणाम
जब हम हिन्दी और अंग्रेजी के ब्लाग की तुलना ही कर रहे हैं तब उनकी संख्या की भी तुलना करें। यह बात एकदम सत्य है कि अंग्रेजी भाषा ही व्यावसायिकता की भाषा है तो वहाँ तो यह उपस्थित ही रहेगी और जो हिन्दी में लेखन कर रहे हैं उन्हें व्यावसायिकता से अधिक अपनी अभिव्यक्ति की चिन्ता है। इसलिए अभिव्यक्ति और व्यावसायिकता में तो अन्तर रहेगा ही।
@ ajit gupta
"जो हिन्दी में लेखन कर रहे हैं उन्हें व्यावसायिकता से अधिक अपनी अभिव्यक्ति की चिन्ता है।"
व्यावसायिकता से अधिक अभिव्यक्ति की चिन्ता होने पर भी उत्तम अभिव्यक्ति का मापदण्ड पाठकों की संख्या ही होगी, न कि पाई गई टिप्पणियों की संख्या।
आप कभी भी देख सकती हैं कि चिट्ठाजगत के 'धड़ाधड़ टिप्पणियाँ'हॉटलिस्ट का टॉप ब्लोग उसके 'धड़ाधड़ पठन' हॉटलिस्ट में कहीं बहुत नीचे होती हैं। अब अधिक टिप्पणियाँ पाने वाले पोस्ट को उत्तम अभिव्यक्ति मानें या अधिक पढ़े जाने वाले को?
इंतजार है गुरूदेव.
हिंदी ब्लॉग का व्यवसायिक उपयोग : एक उदहारण -
हमारे एक मित्र रामबाबू सिंह एलोवेरा के प्रोडक्ट बेचते है उन्हें अपने व्यवसाय को बढाने हेतु प्रचार की आवश्यकता थी सो इस कार्य के लिए एक हिंदी ब्लॉग बनाया गया और उस पर अपने उत्पादों की जानकारी देती पोस्ट्स के साथ स्वास्थ्य सलाह वाली पोस्ट्स लिखी जाती है पिछले आठ महीनों से रामबाबू बिना टिप्पणियों की परवाह किये सिर्फ उस पर अपनी बात धडाधड लिखे जा रहे है न तो वे चिट्ठाजगत को कभी खोलकर देखते है और न ही कभी उन्होंने ब्लॉग वाणी खोलकर देखा था ,
उन्हें सिर्फ भरोसा था गूगल से आने वाले पाठको पर , चूँकि उनके ब्लॉग पर ज्यादातर पाठक एलोवेरा की खोज कर आते है जाहिर है उन्हें एलोवेरा के उत्पाद चाहिए और वे ब्लॉग पर जानकारी ले कर रामबाबू से संपर्क करते है
पहले अपने उत्पाद बेचने के लिए रामबाबू व्यक्तिगत तौर पर लोगों से मिलते थे पर अब देश विदेश से लोग उनसे संपर्क करते है उनका व्यावसायिक दायरा दिल्ली से बढ़कर पुरे देश तक फ़ैल गया धीरे धीरे उनकी सेल भी बढ़ रही है |
कुल मिलकर रामबाबू का हिंदी ब्लॉग का अपने व्यवसाय में इस्तेमाल करने का प्रयोग काफी हद सफल रहा है |
http://www.aloe-veragel.com
Ratan Singh Shekhawat
आपने बहुत अच्छी जानकारी दी है रतन सिंह जी! रामबाबू जी वास्तव में बहुत अच्छा कार्य कर रहे हैं और इसके लिए वे धन्यवाद के पात्र हैं। आज ऐसे ही टिप्पणियों और संकलकों की परवाह न कर अपने लक्ष्यप्राप्ति के जुटे रहने वाले ब्लोगर्स की अत्यन्त आवाश्यकता है।
कुछ समय तो लगेगा
मेरा भी यही प्रश्न है कि अधिक टिप्पणियाँ पाने वाले पोस्ट को उत्तम अभिव्यक्ति मानें या अधिक पढ़े जाने वाले को?
आवधिया जी कहते है दुर के ढोल सुहाभने लगते है, अजी अंग्रेजी ब्लोग्स भी कुछ नही कमा रहे, मेरे बच्चो ने अग्रेजी मै जर्मन मै ब्लांग बनाये है, ओर एद भी खुब लगाई, लोग भी खुब आते है लेकिन आमदन नही होती....
बिना एड भी बहुत कमाई है इंटर नेट से, जब कभी मेरा मुड होता है तो मै महीने मै३,४ सॊ € कमा लेता हुं, केसे इस बारे मै एक पोस्ट तेयार कर रहा हुं, जल्द ही पोस्ट करुंगा....
धन्यवाद
सार्थक लेखन के लिए शुभकामनायें
आपकी पोस्ट ब्लॉग4वार्ता पर-स्वागत है....
आतंक वाद कब तक झेलेगें हम
पोस्ट और टिप्पणियों के माध्यम से अच्छी जानकारियाँ मिलीं | धन्यवाद
अन्ततः ब्लॉगों से क्या पाना है, स्तर उसी से ही निर्धारित होगा।
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