Monday, September 20, 2010

ब्राह्मण ब्लोगर नाऊ जात देख गुर्राऊ

छत्तीसगढ़ी में एक हाना (लोकोक्ति) है "बाम्हन कूकुर नाऊ जात देख गुर्राऊ"! मतलब यह कि एक ब्राह्मण स्वयं को दूसरे ब्राह्मण से श्रेष्ठ बताने की कोशिश करता है, एक नाई दूसरे नाई को सहन नहीं कर सकता और एक गली के कुत्ते अपनी गली में दूसरी गली के कुत्ते के आ जाने पर उस पर गुर्राने लगते हैं। इस हाने (लोकोक्ति) से हमारा परिचय कल ही हुआ है। कल जब हम अपनी बेटी के घर गए तो उसकी गली के कुत्ते हम पर भौंकने लगे।

हमने जवाँई जी को बताया कि उनकी गली के कुत्ते हम पर भौंक रहे थे तो उन्होंने कहा, "पापा जी ऐसा तो होता ही है, जब किसी दूसरी गली का इस गली में आता है तो ..."

हम भौंचक से हो गए और हमारे मुँह से निकल पड़ा, "क्याऽऽऽ"

तो जमाई जी ने कहा, "आपने तो सुना ही होगा 'बाम्हन कूकुर नाऊ जात देख गुर्राऊ'!"

इस प्रकार से इस छत्तीसगढ़ी लोकोक्ति से हमारा परिचय हो गया। पर इस हाने को सुनकर हमारे भीतर का गब्बर जाग उठा और कहने लगा, "गलत है ये हाना। 'दोपाये दो और चौपाया एक', बहुत बेइन्साफी है ये। या तो तीनों के तीनों चौपाये होने चाहिए या फिर तीनों के तीनों दोपाये! इसलिए अब हम तीनों को ही दोपाये बनाय देते हैं - 'ब्राह्मण ब्लोगर नाऊ जात देख गुर्राऊ'!"

हमें लगा कि हमारे भीतर का गब्बर ठीक ही तो कह रहा है। दो आदमियों के साथ एक जानवर होने का भी भला कोई तुक है? तीनों को आदमी ही होना चाहिए। तीसरे आदमी के लिए ब्लोगर ही सबसे अधिक उपयुक्त है क्योंकि एक ब्लोगर ऊपरी तौर पर दूसरे ब्लोगर के पोस्ट में मिश्री की डली जैसी टिप्पणी तो करता है पर भीतरी तौर से गुर्राता भी है 'उसके पोस्ट में मेरे पोस्ट से टिप्पणियाँ ज्यादा क्यों?' अब मैं ऐसा पोस्ट लिख कर दिखाउँगा जिसमें सबसे ज्यादा टिप्पणियाँ होंगी।

हम खुश हुए कि हमारे भीतर के गब्बर से प्रेरणा पाकर हमने एक नई लोकोक्ति की रचना कर डाली है। हो सकता है कि भविष्य में इस नई लोकोक्ति के लिए लोग यह कह कर हमारी तारीफ करें कि  'स्साला एक जी.के. अवधिया था यार, जिसने इस लोकोक्ति को बनाया'!

चलिए जब लोकोक्ति की बात चली है तो हम इतना और लिख दें कि "जब जीवन का यथार्थ ज्ञान नपे-तुले शब्दों में मुखरित होता है तो वह लोकोक्ति बन जाता है" याने कि लोकोक्ति एक प्रकार से "गागर में सागर" होता है। छत्तीसगढ़ी में लोकोक्ति को "हाना" के नाम से जाना जाता है। छत्तीसगढ़ी भाषा में बहुत से सुन्दर हाने हैं जिन्हें उनके हिन्दी अर्थसहित जानकर आपको बहुत आनन्द आयेगा। यहाँ पर हम कुछ ऐसे ही रोचक छत्तीसगढ़ी हाना उनके हिन्दी अर्थ सहित प्रस्तुत कर रहे हैं:

  • "अपन पूछी ला कुकुर सहरावै" अर्थात् अपनी तारीफ स्वयं करना, हिन्दी में इसके लिए है "अपने मुँह मियाँ मिट्ठू बनना"।
  • "चलनी में दूध दुहय अउ करम ला दोष दै" अर्थात् खुद गलत काम करना और किस्मत को दोषी ठहराना।
  • "घर के जोगी जोगड़ा आन गाँव के सिद्ध" अर्थात् घर के ज्ञानी को नहीं पूछना और दूसरे गाँव के ज्ञानी को सिद्ध बताना याने कि आप कितने ही ज्ञानी क्यों न हों घर में आपको ज्ञानी नहीं माना जाता।
  • "अपन मरे बिन सरग नइ दिखय" अर्थात् स्वयं किये बिना कोई कार्य नहीं होता।
  • "रद्दा में हागै अउ आँखी गुरेड़ै" अर्थात् रास्ते में गंदगी करना और मना करने वाले पर नाराज होना, इसी को हिन्दी में कहते हैं "उल्टा चोर कोतवाल को डाँटै"।
  • "आज के बासी काल के साग अपन घर में काके लाज!" अर्थात् अपने घर में रूखी-सूखी खाने में काहे की शर्म याने कि "रूखी सूखी खाय के ठंडा पानी पी, देख पराई चूपड़ी मत ललचावे जी"।
  • "अड़हा बैद परान घातिया" अर्थात् नीम-हकीम खतरा-ए-जान।
  • "कउवा के रटे ले बइला नइ मरय" अर्थात् कौवा के रटने से बैल मर नहीं जाता याने कि किसी के कहने से किसी की मृत्यु नहीं होती।
  • "उप्पर में राम-राम तरी में कसाई" अर्थात् "मुँह में राम बगल में छुरी"।
  • "करनी दिखय मरनी के बेर" अर्थात् किये गये अच्छे या बुरे कर्मों की परीक्षा मृत्यु के समय होती है।
  • "खेलाय-कुदाय के नाव नइ गिराय पराय के नाव" अर्थात् प्रशंसा कम मिलती है और अपयश अधिक।

14 comments:

VICHAAR SHOONYA said...

अवधिया साहब आपकी कहावतों पर ही लिखी एक पुरानी पोस्ट पढ़ी थी और अब ये एक नयी पोस्ट पढ़ी है. आपने मेरे कहावतों के ज्ञान को समृद्ध किया है इसके लिए शुक्रिया.

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

इसी बहाने लोकोक्तियों का सुंदर खजाना उपलब्ध करा दिया आपने, शुक्रिया।

संगीता पुरी said...

सचमुच छोटी छोटी लोकोक्तियों में भाव का सागर समाया होता है .. बहुत अच्‍छी पोस्‍ट !!

अजित गुप्ता का कोना said...

कहीं आप अपरोक्ष रूप से कुत्ते के स्‍थान पर ब्‍लागर को तो नहीं रख रहे हैं ना? अरे बेचारा ब्‍लागर तो कभी भौंकता ही नहीं है। यहाँ की नस्‍ल तो अधिकतर अमेरिकी प्रकार की है। वैसे मजेदार पोस्‍ट है, ऐसी ही कहावतों वाली पोस्‍ट लिखते रहिए, ज्ञानवर्द्धन होता रहेगा।

Unknown said...

अजित जी, खातिर जमा रखें, अपरोक्ष रूप से कुत्ते के स्थान पर बलॉगर को रखने की मेरी कतइ मंशा नहीं है। आखिर मैं भी तो एक ब्लॉगर हूँ कि नहीं! :)

मनोरंजन के साथ थोड़ी छत्तीसगढ़ी हानों की जानकारी देना ही इस पोस्ट का मुख्य उद्देश्य है।

प्रवीण पाण्डेय said...

इसी गुर्राने में देश की पूरी ऊर्जा बही जा रही है।

निर्मला कपिला said...

हम तो गागर के पानी से खूब नहा लिये। मुझे प्रवीण की टिप्पणी बहुत अच्छी लगी उसे और आपको बधाई।

मनोज कुमार said...

बहुत सी नई जानकारी मिली। बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!

और समय ठहर गया!, ज्ञान चंद्र ‘मर्मज्ञ’, द्वारा “मनोज” पर, पढिए!

Unknown said...

bahut sunder batt batai.

संजय @ मो सम कौन... said...

बढ़िया पोस्ट लगी, अवधिया साहब।
अपने भीतर के गब्बर को यदा कदा जगाते रहिये, हमारा आपके प्रदेश के बारे में ज्ञान बढ़ेगा।
आभार।

ब्लॉ.ललित शर्मा said...

उलट-पुलट भये संसार, नाऊ के मूड ला मुड़े लोहारा.

जय हो गुरुदेव एकदमे रख के दे हस..... जोहार ले.

शरद कोकास said...

आपने चार पैर वाले के स्थान पर दो पैर वाले को रख दिया , लेकिन वह चार पैर वाला अन्य विशेषताओँ मे कई दो पैर वलोँ से आगे है > पर बने हाना है जी ।

Anonymous said...

स्साला एक जी.के. अवधिया है यार, जिसने... :-)

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

बहुत सी नई जानकारी मिली। बहुत अच्छी प्रस्तुति।