Friday, September 24, 2010

पितृ पक्ष अर्थात् मृतक पूर्वजों की स्मृति का प्रावधान

आज हमारा अस्तित्व सिर्फ इसलिए है क्योंकि कभी हमारे पूर्वजों का अस्तित्व था, यदि हमारे पूर्वज न होते तो हमारा होना भी असम्भव था। मृत्यु के पश्चात् मृतक की स्मृति मात्र ही रह जाती है जो कि समय बीतने के साथ क्षीण होते जाती है। यह स्मृति क्षीण न होने पाए इसीलिए हिन्दू दर्शन में पितृपक्ष का प्रावधान है। वर्ष में पन्द्रह दिन अर्थात् भाद्रपद के सम्पूर्ण कृष्णपक्ष को पितरों को समर्पित किया गया है। हिन्दू दर्शन के अनुसार मृत्यु सिर्फ शरीर की होती है और आत्मा को अमर माना गया है अतः पितरों की आत्मा की शान्ति के लिए पितृपक्ष में उनके नाम से तर्पण तथा श्राद्ध किया जाता है।

हिन्दू दर्शन में पितरों को मोक्ष दिलवाने के लिए उनका श्राद्ध करना पुत्र का अनिवार्य कर्तव्य माना गया है। पितरों के मोक्ष का महत्व इतना अधिक है कि राजा सगर के साठ हजार पुत्रों, जिन्हें कपिल ऋषि ने शाप देकर भस्म कर दिया था, की मुक्ति के लिए सगर के पौत्र अंशुमान तथा अंशुमान के पुत्र दिलीप ने देवलोक से गंगा को भूलोक में लाने के लिए घोर तपस्या की किन्तु सफल न पाये तो दिलीप के पुत्र भगीरथ ने इस कार्य को पूरा किया और अपने पूर्वजों को मुक्ति दिलाई (लिंक)। मनुष्य जीवन में सफलता के लिए माता-पिता की सेवा कर तथा पितरों की आत्मा की शान्ति प्रदान कर उनका आशीर्वाद प्राप्त करने की बड़ी महत्ता है।

पितृ पक्ष में पितरों की क्षुधा-शान्ति के लिए कौओं को भोजन कराने का विधान है। कौए के साथ साथ गौ, श्वानादि प्राणियों को भी भोजन दिया जाता है। इन विधानों का प्रत्यक्षतः पितरों से कुछ सम्बन्ध नहीं है ये मात्र लोकरीतियाँ ही प्रतीत होती हैं। शायद ये लोकरीतियाँ प्राणीमात्र पर दया करने के उद्देश्य ही बनाई गई हैं।

4 comments:

Dr.J.P.Tiwari said...

आज अपने अग्रज, अपने पूर्वजों को तो याद कर लिया जाय जिन्होंने इतनो अच्छी विरासत...संस्कृति, संस्कार और विज्ञानं.. प्रदान किया हमारी सुख शांति और ऐश -ओ-आराम के लिए. पर सच बोलिए हम हों या आप कितना याद करते हैं उन्हें........? आज से प्रारंभ हुआ पितृपक्ष उन्ही के लिए है.... इस व्यवस्था को जिसने भी बनाया हो, लागू किया हो, बड़ा उपकार किया मानव समाज पर. पूर्वजो को सबसे उत्तम श्रद्धांजलि तो यह होगी की हम पुत्र - पुत्र - प्रपौत्र...के रूप में ऐसा कोई काम न करें जिससे उनके नाम के साथ हमारा नाम जोड़कर बदनाम किया जाय. यह संकल्प आज बहुत ही महत्वपूर्ण होगा. श्रद्धांजलि देंगे हम उनको और लाभ होगा हमारा. विकास होगा हमारा, प्रगति और उन्नयन होगा हमारा. तो इससे अच्छी बात और क्या हो सकती है.............आइये याद करते हैं अपने प्रथम पूर्वज को ...... जिन्हें हम ईश्वर भगवान्...खुदा ...जो भी नाम दे..

Unknown said...

बढ़िया बात !
उम्दा पोस्ट !

अजित गुप्ता का कोना said...

अपने पूर्वजों का स्‍मरण हमारी परिवार व्‍यवस्‍था को सुदृढ़ करने के लिए है। हम मनुष्‍य हैं और मनुष्‍य सामाजिक प्राणी है। समाज बनाकर रहना हमारी मानसिकता में सम्मिलित है। यदि हमने अपने पूर्वजों को बिसरा दिया तब मनुष्‍य अकेले रहने का संत्रास भोगेगा। जो वर्तमान में दिखायी दे रहा है।

Satish Saxena said...

इस लेख की आवश्यकता थी, आपका धन्यवाद !