Tuesday, February 15, 2011

भारतीय कहानियाँ

मनोरंजन मनुष्य की एक स्वाभाविक आवश्यकता है। दिनभर काम करने के कारण शरीर में जो थकान उत्पन्न होती है उसे दूर करने के लिए जितनी भरपूर नींद जरूरी है उतना ही जरूरी मनोरंजन भी है। आज हमारे पास सिनेमा, टीवी, सीडी और डीवीडी जैसे मनोरंजन के अनेक साधन उपलब्ध हैं किन्तु एक जमाना वह भी था जब ये सुविधाएँ उपलब्ध नहीं थीं। उस जमाने में लोगों के मनोरंजन का एक मात्र साधन था आपस में मिलजुल कर बैठना तथा किस्से कहानी कहकर, फाग आदि लोकगीत और संगीत गा-बजाकर, रामलीला, कृष्णलीला या नाटक देखकर मन बहलाना।

वर्तमान दिनों में उपलब्ध आधुनिक सुविधाएँ यद्यपि हमारा मनोरंजन तो करती हैं किन्तु इन्होंने हमें स्वयं तक सीमित तथा आत्म-केन्द्रित बनाकर रख दिया है। आज किसी को किसी की कुछ परवाह ही नहीं है, यदि कोई मिल गया तो हँस-बोल लिए और यदि न मिला तो कोई फर्क नहीं पड़ता। हमारा आपसी मेल-जोल समाप्त होता जा रहा है जिसके परिणामस्वरूप हमारा सामाजिक रूप से परस्पर हेल-मेल और प्रेम-स्नेह समाप्तप्राय होते जा रहा है।

अस्तु, हम पुराने जमाने की बात कर रहे थे। उस जमाने में भी गीत संगीत और नाटक आदि के अवसर सीमित होते थे क्योंकि फाग केवल होली के समय गाया जाता था और रामलीला, कृष्णलीला आदि की निश्चित दिनों की अवधि हुआ करती थी, ऐसे में किस्सा कहानी कहना और सुनना ही लोगों के मनोरंजन का मुख्य साधन हुआ करता था। एक आदमी किस्सा सुनाने वाला होता था और बाकी सुनने वाले। किस्सा सुनाने वालों की अपनी-अपनी विशिष्ट शैली हुआ करती थी जो लोगों को बाँध कर रख दिया करती थी। मुझे आज भी याद है कि मेरे बचपन के दिनों में सारे बच्चे एक खोंचे वाले को चारों ओर से घेर कर घंटों इसीलिए बैठे रहते थे कि वह सुखसागर, आल्हा-ऊदल आदि की कहानियाँ बड़े ही रोचक ढंग से सुनाया करता था। प्रतिदिन रात को जब तक मेरी दादी मुझे कहानियाँ न सुनातीं, मैं सोता ही नहीं था। उनके मुख से सुनी हुईं अनेक पौराणिक कहानियाँ आज भी मुझे याद हैं।

भारत में किस्से-कहानियों का प्रचलन अत्यन्त प्राचीनकाल से चला आ रहा है और भारत में कथा-साहित्य का स्थान हमेशा से ही उच्च रहा है। ऋग्वेद, विभिन्न ब्राह्मण ग्रंथों, उपनिषद, महाभारत, रामायण आदि वैदिक ग्रन्थों में वर्णित अनेक आख्यान वैदिक काल में कहानियों की लोकप्रियता के प्रतीक हैं। कहानियों की लोकप्रियता के कारण ही सिंहासनद्वात्रिंशतिका (सिंहासन बत्तीसी), वेतालपंचविंशतिका (बैताल पच्चीसी), हितोपदेश, पञ्चतन्त्र, आदि ग्रंथों की रचना हुईं। भारत की इन्हीं कहानियों से प्रभावित होकर अरबी-फारसी में हातिमताई, अलिफ-लैला (अरेबियन नाइट्स) आदि कहानियाँ लिखी गईं। हातिमताई, अलिफ-लैला जैसी अरबी कहानियों में तो एक कहानी के भीतर दूसरी, दूसरी के भीतर तीसरी जैसी कई कहानियों की श्रृंखला ही बनी हुई है।

सामान्यतः आख्यान अर्थात् कहानी का उद्गम भारत को ही माना जाता है और भारत की कहानियों से ही प्रभावित होकर ग्रीस, रोम, अरब, फ़ारस, अफ्रीका आदि देशों में भी कहानी रचने का प्रचलन हुआ। ऐसी बात नहीं है कि विदेशी कहानियों से भारत प्रभावित ही नहीं हुआ, भारत में भी अनेक विदेशी कहानियों ने आकर अपने आपको भारतीय रूप ढाला है। कालान्तर में, भारत में अंग्रेजों के शासन हो जाने के कारण, भारत की कहानियाँ अंग्रेजी के शॉर्ट स्टोरीज़ से बहुत अधिक प्रभावित हुईं।

5 comments:

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

आपकी इस पोस्ट से बचपन में पढ़ी और सुनी कहानियाँ याद आ रही हैं ...चंदामामा मनपसंद पत्रिका हुआ करती थी ..

Rahul Singh said...

जैन और बौद्ध (जातक) परंपरा का भी जिक्र जरूरी है.

प्रवीण पाण्डेय said...

अभी भी रामायण महाभारत की कहानियाँ याद आती हैं।

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

मुझे तो अभी तक वे दिन याद हैं... बहुत अच्छा लगता है..

राज भाटिय़ा said...

बहुत बढिया बात कही जी आप ने धन्यवाद