Monday, February 21, 2011

राष्ट्रभाषा के उद्‍गार

(स्व. श्री हरिप्रसाद अवधिया रचित कविता)

मैं राष्ट्रभाषा हूँ -
इसी देश की राष्ट्रभाषा, भारत की राष्ट्रभाषा

संविधान-जनित, सीमित संविधान में,
अड़तिस वर्षों से रौंदी एक निराशा
मैं इसी देश की राष्ट्रभाषा।
तुलसी, सूर, कबीर, जायसी,
मीरा के भजनों की भाषा,
भारत की संस्कृति का स्पन्दन,
मैं इसी देश की राष्ट्रभाषा।

स्वाधीन देश की मैं परिभाषा-
पर पूछ रही हूँ जन जन से-
वर्तमान में किस हिन्दुस्तानी
की हूँ मैं अभिलाषा?
मैं इसी देश की राष्ट्रभाषा।

चले गये गौरांग देश से,
पर गौरांगी छोड़ गये
अंग्रेजी गौरांगी के चक्कर में,
भारत का मन मोड़ गये
मैं अंग्रेजी के शिविर की बन्दिनी
अपने ही घर में एक दुराशा
मैं इसी देश की राष्ट्रभाषा।

मान लिया अंग्रेजी के शब्द अनेकों,
राष्ट्रव्यापी बन रुके हुये हैं,
पर क्या शब्दों से भाषा निर्मित होती है?
तब क्यों अंग्रेजी के प्रति हम झुके हये हैं?
ले लो अंग्रेजी के शब्दों को-
और मिला दो मुझमें,
पर वाक्य-विन्यास रखो हिन्दी का,
तो, वो राष्ट्र! आयेगा गौरव तुझमें।

'वी हायस्ट नेशनल फ्लैग एण्ड सिंग
नेशनल सांग के बदले
अगर बोलो और लिखो कि
हम नेशनल फ्लैग फहराते-
और नेशनल एन्थीम गाते हैं-
तो भी मै ही होउँगी-
नये रूप में भारत की राष्ट्रभाषा
मैं इसी देश की राष्ट्रभाषा।

मैं हूँ राष्ट्रभाषा
मैं इसी देश की राष्ट्रभाषा।

(रचना तिथिः गुरुवार 15-08-1985)

6 comments:

arvind said...

gahare dard bayaan karate rastrabhaasha ke udgaar....sundar rachna...aabhaar.

Satish Chandra Satyarthi said...

राष्ट्रभाषा का दर्द न जाने कोय...

ramswarup said...

"राष्ट्र भाषा की तङफती आत्मा को श्रद्धान्जली .."
शुक्रिया अवध जी ..

Mithilesh dubey said...

बहुत ही उम्दा रचना , बधाई स्वीकार करें .
आइये हमारे साथ उत्तरप्रदेश ब्लॉगर्स असोसिएसन पर और अपनी आवाज़ को बुलंद करें .कृपया फालोवर बनकर उत्साह वर्धन कीजिये

राज भाटिय़ा said...

“मातृभाषा का अनादर मां के अनादर के बराबर है।”
महात्मा गांधी
ओर हम तो दुर बेठे भी इस मां को कभी नही भुले. धन्यवाद इस सुंदर लेख के लिये

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

हर चीज को राजनीतिबाजों ने खराब कर दिया है..