Thursday, March 24, 2011

पिछले कई सालों से रेजगारी का चलन बंद

देश के अन्य स्थानों के विषय में तो मैं नहीं कह सकता किन्तु छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में पिछले कई सालों से 1, 2, 5, 10, 25 और 50 पैसे वाले सिक्कों का चलन बंद हो चुका है। आठ-दस साल की उम्र वाले रायपुर के बच्चे जानते तक नहीं कि चवन्नी, अठन्नी किस चिड़िया का नाम है, 1, 2, 5 और 10 पैसे की तो बात ही छोड़ दीजिए।


यदि आप किसी दुकानदार से अमूल का दूध पैकेट, जिसका MRP रु.13.50 है, खरीदने जाएँगे तो वह दुकानदार आपको दूध पैकेट रु.13.50 में न देकर रु.14.00 देगा याने कि वह आपसे रु.0.50 जबरन वसूल कर लेगा। यदि आप उससे इस विषय में कुछ भी कहेंगे तो वह या तो आपको साफ-साफ कहेगा कि दूध रु.14.00 में ही मिलेगा, लेना है तो लो नहीं तो मत लो, या फिर आपको टॉफी, माचिस जैसी कोई रु.0.50 मूल्य की वस्तु, जिसकी आपको बिल्कुल ही आवश्यकता नहीं है, थमा देगा। जरा सोचिए कि यदि वह दुकानदार दिन भर में 1000 पैकेट दूध रु.13.50 के बदले रु.14.00 में बेचता है तो उसे रु.500.00 मुफ्त में मिल जाते हैं, दूसरे शब्दों में वह लोगों की गाढ़ी मेहनत की कमाई से रु.500.00 लूट लेता है। यह तो सिर्फ दूध पैकेट का उदाहरण है, रोजमर्रा की बहुत सारी वस्तुएँ हैं जिनकी कीमत रुपयों के साथ पैसों में भी है और उन वस्तुओं के लिए उपभोक्ताओं को हमेशा अधिक कीमत चुकानी पड़ती है। बहस झंझट से हर आदमी बचना चाहता है इसलिये अधिकतर लोग खुदरा पैसों की चिन्ता नहीं करते और दुकानदार को वो खुदरा पैसे मुफ्त में मिल जाते हैं। बहस झंझट से हर आदमी बचना चाहता है इसलिये अधिकतर लोग खुदरा पैसों की चिन्ता नहीं करते और दुकानदार को वो खुदरा पैसे मुफ्त में मिल जाते हैं।

सन् 2004 में मैं परिवार के साथ पचमढ़ी भ्रमण के लिये गया था तो उस समय महाराष्ट्र में मुझे खरीदी के समय वापसी में चवन्नी, अठन्नी आदि खुदरा सिक्के मिले थे। आज भी वे सिक्के मेरे पास बेकार पड़े हैं क्योंकि वे छत्तीसगढ़ में नहीं चलते। अब उसे यदि चलाना है तो मुझे छत्तीसगढ़ से बाहर जाना होगा।

आश्चर्य की बात तो यह है कि यह लूट आज तक न तो शासन प्रशासन को दिखाई पड़ी और न ही कभी मीडिया ने इस पर आवाज उठाई।

और अब तो एक रुपये तथा दो रुपयों के सिक्के भी बाजार से गायब होते जा रहे हैं और उनके बदले में टॉफी जैसी कोई अवांछित वस्तु उपभोक्ताओं के हाथ में जबरन थमा दी जाती हैं।

6 comments:

Sawai Singh Rajpurohit said...

सही कहा है.

प्रवीण पाण्डेय said...

जब कोई 50 पैसे देता नहीं है, इनका चलन पूरा बन्द कर देना चाहिये।

Rahul Singh said...

चिल्‍हर, रेजगारी, खुल्‍ला या फुटकर छत्‍तीसगढ़ में तो चलन से बाहर ही हैं.

राज भाटिय़ा said...

भारत मे लोग भी इन छोटे पैसो की फ़िक्र नही करते, हमारे यहां एक पैसा भी हम वापिस लेते हे, अगर हम भुल जाये तो दुकान दार फीछे आता हे एक पैसा देने के लिये

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

अब तो रुपये पर भी संकट आ गया है..

ब्लॉ.ललित शर्मा said...

तीन पैसे को भूल रहे हो गुरुदेव
जब आप बैंक में थे तब पैसे को क्यों नहीं बदला?