Thursday, November 10, 2011

शरद् ऋतु का अनुपम शारदीय आनन्द


मेघरहित नील-धवल स्फटिक-सा निर्मल अम्बर, श्वेत-धवल कास सुमन का वस्त्र धारण किए पंक-रहित धरा, भाँति-भाँति के पुष्पो से पल्लवित मधुकर-गुंजित उपवन एवं वाटिकाएँ, शान्त वेग से प्रवाहित कल कल नाद करती सरिताएँ, कमल तथा कुमुद से शोभित तड़ाग, चहुँ ओर शीतल-मंद-बयार का प्रवाह, अमृत की वर्षा करती चन्द्र-किरण शरद् ऋतु के आगमन का द्योतक हैं।

हिन्दू पंचांग के अनुसार आश्विन तथा कार्तिक माह को शरद् ऋतु की संज्ञा दी गई है। शरद् ऋतु आते तक वृष्टि का अन्त हो चुका होता है। मौसम मनोरम हो जाता है। दिवस सामान्य होते हैं तो रात्रि में शीतलता व्याप्त रहती है। यद्यपि शरद् की शुरवात आश्विन माह के आरम्भ से हो जाती है किन्तु शरद् के सौन्दर्य का आभास शरद् पूर्णिमा अर्थात् क्वार माह की पूर्णिमा से ही शुरू होता है।

शरद ऋतु ने वाल्मीकि, कालिदास तथा तुलसीदास जैसे महान काव्यकारों के रस-लोलुप मन को मुग्ध-मोहित किया है। वाल्मीकि रामायण के किष्किन्धा काण्ड में महर्षि वाल्मीकि लिखते हैं -

रात्रि: शशांकोदित सौम्य वस्त्रा, तारागणोन्मीलित चारू नेत्रा।
ज्योत्स्नांशुक प्रावरणा विभाति, नारीव शुक्लांशुक संवृतांगी।।


चन्द्र की सौम्य एवं धवल ज्योत्सना से सुशोभित रात्रि किसी श्रवेत वस्त्र धारण किए हुए सुन्दरी के समान प्रतीत हो रही है। उदित चन्द्र इसका मुख तथा तारागण इसके उन्मीलित नेत्र हैं।

ऋतु संहार में कवि कालिदास कहते हैं -

काशांसुका विचक्रपद्म मनोज्ञ वस्त्र, सोन्मादहंसरव नूपुर नादरम्या।
आपक्वशालि रूचिरानतगात्रयष्टि : प्राप्ताशरन्नवधूरिव रूप रम्या।।


कास के श्वेत पुष्पों के वस्त्र से धारण किए हुए नव-वधू के समना शोभायमना शरद-नायिका का मुख कमल-पुष्पों से निर्मित है। उन्मादित राजहंस की मधुर ध्वनि ही, इसकी नूपुर-ध्वनि है। पके हुए बालियों से नत धान के पौधों के जैसे तरंगायित इसकी देह-यष्टि किसका मन नहीं मोहती?

रामचरित मानस में तुलसीदास जी राम के मुख से कहलवाते हैं -

बरषा बिगत सरद ऋतु आई। लछिमन देखहु परम सुहाई॥
फूलें कास सकल महि छाई। जनु बरषाँ कृत प्रगट बुढ़ाई॥


हे लक्ष्मण! वर्षा व्यती हो चुकी और शरद ऋतु का आगमन हो चुका है। सम्पूर्ण धरणी कास के फूलों से आच्छादित है।मानो (कास के सफेद बालों के रूप में) वर्षा ऋतु ने अपनी वृद्धावस्था को प्रकट कर दिया हो।

तुलसीदास जी तो शरद का प्रभाव पक्षियों पर भी बताते हुए कहते हैं  -

जानि सरद ऋतु खंजन आए। पाइ समय जिमि सुकृत सुहाए॥


जिस प्रकार से समय पाकर सुकृत (सुन्दर कार्य) अपने आप आ जाते हैं उसी प्रकार से शरद् ऋतु जानकर खंजन पक्षी आ गए हैं।

शरद् ऋतु को भारतीय संस्कृति में धार्मिक रूप से भी अत्यन्त महत्वपूर्ण माना गया है। आश्विन माह में माता दुर्गा ने महिषासुर का, भगवान श्री राम ने रावण तथा कुम्भकर्ण का, भगवान श्री कृष्ण ने नरकासुर का और कार्तिक पूर्णिमा के दिन भगवान शिव ने त्रिपुरासुर का वध किया था। यही कारण है कि आश्विन एवं कार्तिक दोनों ही माह पवित्र महीने माने गए हैं। इन दोनों माह में हिन्दू त्यौहारों की भरमार होती है यथा नवरात्रि, दशहरा दीपावली, देव प्रबोधनी एकादशी आदि।

5 comments:

Arvind Mishra said...

Beautiful description of arrival of Sharad Ritu ie Winter .....thanks for sharing it !
(Google transliteration is not working :( )

Arvind Mishra said...

ये पेंटिंग किसकी है? -कास और खंजन की -बिलकुल वास्तविक और मोहित करती हुयी .....
और पाई समय जिमी सुकृति सुहाई का जो अर्थबोध मुझे होता है वह है -
जैसे समय आने पर ही अच्छे कार्य (भले ही वे जब भी किये गए हों) सुशोभित होते हैं!

प्रवीण पाण्डेय said...

शरद ऋतु का आगमन एक नशा सा लेकर आता है वातावरण में।

Unknown said...

@ Arvind Mishra

"पाई समय जिमी सुकृति... " और भी अच्छा अर्थ बताने के लिए धन्यवाद अरविन्द जी!

यद्यपि फोटोशॉप की अधिक जानकरी मुझे नहीं है फिर भी जितनी जानकारी मुझे है उसी के हिसाब से मैंने ही तीन चार चित्रों को, जो कि नेट में उपलब्ध थे, आनन फानन में जोड़ दिया। मैंने तो सोचा भी नहीं था कि यह चित्र किसी को पसंद भी आएगी। चित्र की प्रशंसा के लिए पुनः धन्यवाद!

दीपक बाबा said...

शरद ऋतू ...


और


बसंत बहार...

बाकी
बाकि सब... दुखिया संसार.