Wednesday, January 11, 2012

स्वामी विवेकानन्द के द्वारा दिये गए सन्देश


"भाइयों और बहनों, लंबी रात्रि अपनी अन्तिम अवस्था में पहुँच चुकी है। दुःख और उदासी समाप्त हो रहे हैं। हमारा देश एक पवित्र देश है। मातृभूमि शनैः-शनैः जाग रही है। चहुँ ओर प्रवाहित होने वाली स्वच्छ समीर को धन्यवाद। मातृभूमि को कोई हमसे दूर नहीं कर सकता।"

"क्या आप मातृभूमि के लिए सर्वस्व न्यौछावर करने के लिए तैयार हैं? यदि हाँ, तो आप गरीबी और उपेक्षा से छुटकारा पा सकते हैं। क्या आप जानते हैं कि लाखों की संख्या में हमारे देशवासी दुःख तथा भूख से पीड़ित हैं? क्या उनके दुःख को आप अनुभव कर सकते हैं? क्या आप उनके आँसू पोछना चाहते हैं?"

"क्या आपमें बाधाओं, भले ही वे कितनी भी विकट हों, से लड़ने का साहस है? क्या आपमें अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए, भले ही आपके अपने इसके विरुद्ध हों, दृढ़ निश्चय है? आप एक स्वतन्त्र व्यक्ति तभी बन सकते हैं जब आपमें भरपूर आत्मविश्वास हो। आपको सशक्त बनना है। अध्ययन तथा आध्यात्म के द्वारा आपको अपनी बुद्धि विकसित करनी है। तभी आपकी विजय होगी।"

"अमेरिका और इंग्लैंड जाने के पूर्व मैं अपनी मातृभूमि को प्रेम करता था। वापस आने के बाद मुझे मातृभूमि का एक एक धूलिकण पवित्र प्रतीत हो रहा है।"

मूल अंग्रेजी सन्देशः

"Brothers and sisters, the long night is at last drawing to a close. Miseries and sorrows are disappearing. Ours is a sacred country. She is gradually waking up, thanks to the fresh breeze all around. Her might no one can overcome."

"Are you prepared for all sacrifices for the sake of our motherland? If you are, then you can rid the land of poverty and ignorance. Do you know that millions of our countrymen are starving and miserable? Do you feel for them? Do you so much as shed a tear for them?"

"Have you the courage to face any hurdles, however formidable? Have you the determination to pursue your goal, even if those near and dear to you oppose you? You can be free men only if you have confidence in yourselves. You should develop a strong physique. You should shape your mind through study and mediation. Only then will victory be yours."

"I loved my motherland dearly before I went to America and England. After my return, every particle of the dust of this land seems sacred to me."

3 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

आभार ...

चला बिहारी ब्लॉगर बनने said...

एक ऐतिहासिक पल..आपने पुनः जीवंत कर दिया!!

Rahul Singh said...

छत्‍तीसगढ़ में स्‍वामीजी, तब नरेन्‍द्र के प्रवास पर सुंदर और कर्णप्रिय गीत यहां http://rakeshjeora.blogspot.com/2012/01/blog-post_11.html हैं.