प्रभा प्रशान्त से कह रही थी, "भैया, इस बार मैं राखी में सिर्फ आपको बुलाउँगी, प्रकाश भैया को नहीं?"
और जब प्रशान्त अपने छोटे भाई प्रकाश से मिला तो प्रकाश कहने लगा, "भैया इस बार मैं राखी में प्रभा बहन के घर, अगर वो बुलाएगी भी तो भी, नहीं जाउँगा।"
एक समय था जब प्रशान्त, प्रकाश और प्रभा के बीच आपस में इतना प्यार था कि एक दूसरे के बिना रह नहीं पाते थे। पर आज उनके रिश्तों में दरार आ गया है।
सही बात तो यह है कि आज कमोबेश हर परिवार में आपसी रिश्तों में दरार देखने को मिल जाता है। भाई-भाई, भाई-बहन, बाप-बेटे जो कभी एक-दूसरे पर जान छिड़कते थे के बीच वैमनस्य की गहरी खाई खुदी हुई दिखाई देती है।
क्यों होता है ऐसा?
क्यों आता है रिश्तों में दरार?
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Wednesday, August 25, 2010
Monday, May 3, 2010
अदा जी का यह सहयोग बहुत मायने रखता है
अभी अभी हमें honestyprojectrealdemocracy वाले श्री जय कुमार झा का मेल मिला है। उनके मेल के इस स्क्रीनशॉट को पढ़कर आप स्वयं जान जायेंगे कि अदा जी ने हमारे मेट्रीमॉनी साइट "बन्धन" के प्रचार प्रसार के लिये अदा जी ने स्वेच्छा से हमें सहयोग दिया हैः
अदा जी का यह सहयोग हमारे लिये बहुत मायने रखता है क्योंकि इससे हमारा बहुत ही अधिक उत्साहवर्धन हुआ है।
आप सभी से हमें "बन्धन" के निर्माण के लिये बहुत बहुत बधाइयाँ मिली हैं जिसके लिये हम आपका तहेदिल से शुक्रिया अदा करते हैं और आप लोगों से अपेक्षा रखते हैं कि आप अपने समस्त परिचितों को "बन्धन" का सदस्य बनवा कर अवश्य ही हमें सहयोग प्रदान करेंगे। "बन्धन" को अपना लक्ष्य प्राप्त करने के सदस्यों की अधिक से अधिक संख्या की आवश्यकता है।
और यह तो आप मानेंगे ही कि "बन्धन" के अधिक से अधिक सदस्य बनवाना एक महान सामाजिक एवं पुण्य का कार्य होगा। तो देर किस बात की है? अभी ही अपने परिचितों को "बन्धन" का सदस्य बनवाना शुरू कर दीजिये। हम आपके इस सहयोग के लिये सदैव आभारी रहेंगे।
Friday, April 30, 2010
हमने बनाया मैट्रिमॉनी कम कम्युनिटी साइट .. अब जरूरत है आप सबके सहयोग की
शादी विवाह हेतु उपयुक्त रिश्ता खोजना शुरू से ही दुष्कर कार्य रहा है। यद्यपि इंटरनेट में अनेक वैवाहिक साइट उपलब्ध हैं जो इस दुष्कर कार्य को सहज बनाने का कार्य कर रही हैं किन्तु इन साइट्स को फीस के रूप में अपनी गाढ़ी कमाई की मोटी रकम देनी पड़ती है। इसी बात को ध्यान में रखते हुए बहुत दिनों से हमारे मन में एक विचार चल रहा था कि क्यों न एक मैट्रिमॉनी साइट बनाया जाये जिसकी सेवा मुफ्त में उपलब्ध हों और समाजसेवा का कार्य भी सम्पन्न हो। हर्ष की बात है कि हमने "बन्धन" नामक एक मैट्रिमॉनी कम कम्युनिटी साइट बना लिया है जिसमें समस्त सेवाएँ मुफ्त में उपलब्ध हैं।
"बन्धन" में प्रोफाइल इस प्रकार से बनाया जाता है कि सदस्य का गोत्र, जाति, राशि आदि के साथ साथ अन्य मूल जानकारी, शारीरिक गठन, शैक्षणिक योग्यताएँ, आजीविका विषयक योग्यताएँ आदि सभी कुछ ज्ञात हो जाये और रिश्ते तय करने में पूरी पूरी आसानी रहे।
"बन्धन" न केवल उपयुक्त रिश्ते सुझाने का कार्य करेगा बल्कि यह समुदाय विकास करने का कार्य भी करेगा क्योंकि इसमें तत्काल एवं आफलाइन संदेश भेजने, फोटो तथा व्हीडियो गैलरी तैयार करने, ब्लोगिंग करने आदि की सुविधाएँ भी उपलब्ध हैं। निकट भविष्य में चैट तथा फोरम की सुविधाएँ भी उपलब्ध करा दी जायेंगी।
अब हमें जरूरत है आप सभी के सहयोग की क्योंकि "बन्धन" साइट के सभी क्रिया कलापों की जाँच परख करना जरूरी है जो कि सदस्यों के अभाव में नहीं हो सकता। अतः आप सभी से अनुरोध है कि आप "बन्धन" के मुफ्त सदस्य बनकर अन्य परिचितों को भी सदस्य बनवा कर हमें सहयोग प्रदान करें।
"बन्धन" हमारा ही नहीं बल्कि आप सभी का अपना साइट है और हमें विश्वास है कि "बन्धन" से आप सभी को सामाजिक लाभ अवश्य ही होगा।
तो देर किस बात की है? यहाँ क्लिक कर के तत्काल "बन्धन" में मुफ्त रजिस्ट्रेशन करा लीजिये और हमें सहयोग प्रदान कर समाजसेवा का पुण्यलाभ भी प्राप्त कीजिये।
चलते-चलते
"बन्धन" में फिलहाल एकमात्र सदस्य याने कि हम ही हैं। हमें यहाँ सदस्य के रूप में देखकर कहीं यह ना सोच लीजियेगा कि हम स्वयं के लिये कोई रिश्ता देख रहे हैं और हमारी श्रीमती जी को खबर कर दें (बहुत डरते हैं हम उनसे)। भाई साइट को टेस्ट करने के लिये हमारा प्रथम सदस्य बनना निहायत जरूरी था।
"बन्धन" में प्रोफाइल इस प्रकार से बनाया जाता है कि सदस्य का गोत्र, जाति, राशि आदि के साथ साथ अन्य मूल जानकारी, शारीरिक गठन, शैक्षणिक योग्यताएँ, आजीविका विषयक योग्यताएँ आदि सभी कुछ ज्ञात हो जाये और रिश्ते तय करने में पूरी पूरी आसानी रहे।
"बन्धन" न केवल उपयुक्त रिश्ते सुझाने का कार्य करेगा बल्कि यह समुदाय विकास करने का कार्य भी करेगा क्योंकि इसमें तत्काल एवं आफलाइन संदेश भेजने, फोटो तथा व्हीडियो गैलरी तैयार करने, ब्लोगिंग करने आदि की सुविधाएँ भी उपलब्ध हैं। निकट भविष्य में चैट तथा फोरम की सुविधाएँ भी उपलब्ध करा दी जायेंगी।
अब हमें जरूरत है आप सभी के सहयोग की क्योंकि "बन्धन" साइट के सभी क्रिया कलापों की जाँच परख करना जरूरी है जो कि सदस्यों के अभाव में नहीं हो सकता। अतः आप सभी से अनुरोध है कि आप "बन्धन" के मुफ्त सदस्य बनकर अन्य परिचितों को भी सदस्य बनवा कर हमें सहयोग प्रदान करें।
"बन्धन" हमारा ही नहीं बल्कि आप सभी का अपना साइट है और हमें विश्वास है कि "बन्धन" से आप सभी को सामाजिक लाभ अवश्य ही होगा।
तो देर किस बात की है? यहाँ क्लिक कर के तत्काल "बन्धन" में मुफ्त रजिस्ट्रेशन करा लीजिये और हमें सहयोग प्रदान कर समाजसेवा का पुण्यलाभ भी प्राप्त कीजिये।
चलते-चलते
"बन्धन" में फिलहाल एकमात्र सदस्य याने कि हम ही हैं। हमें यहाँ सदस्य के रूप में देखकर कहीं यह ना सोच लीजियेगा कि हम स्वयं के लिये कोई रिश्ता देख रहे हैं और हमारी श्रीमती जी को खबर कर दें (बहुत डरते हैं हम उनसे)। भाई साइट को टेस्ट करने के लिये हमारा प्रथम सदस्य बनना निहायत जरूरी था।
Monday, December 14, 2009
आय एम ओके यू आर ओके ... याने मैं भी खुश तू भी खुश
व्यवहार विज्ञान से सम्बन्धित एक ऐसा लेख जो आपके जीवन को खुशियों से भर सकता है ....हिन्दी ब्लोग जगत में कुछ समय पहले एक ऐसी स्थिति आ गई थी कि कुछ ब्लोगर्स अन्य ब्लोगर्स से नाखुश थे और अन्य ब्लोगर्स उन कुछ ब्लोगर्स से। मतलब यह कि आय एम नॉट ओके यू आर नॉट ओके याने कि मैं भी नाखुश आप भी नाखुश। कितना अच्छा लगता है जब सभी लोग खुश रहें, आय एम ओके यू आर ओके ... याने मैं भी खुश आप भी खुश।
जीवन है तो रिश्ते हैं और रिश्ते हैं तो खुशी और नाखुशी भी हैं। जब दो लोग होते हैं तो दोनों के बीच कोई ना कोई सम्बन्ध भी होता है। यह सम्बन्ध कुछ भी हो सकता है, बाप-बेटे का, पति-पत्नी का, प्रेमी-प्रेमिका का, भाई-भाई का, भाई-बहन का, मित्र-मित्र का, अफसर-कर्मचारी का, मालिक-नौकर का, दुकानदार-ग्राहक का याने कि कुछ भी सम्बन्ध! और इन सम्बन्धों के कारण हमारे जीवन में निम्न चार प्रकार की स्थितियों में से कोई न कोई एक बनती हैः
मैं खुश तू खुश (I'm OK, You're OK)
मैं खुश तू नाखुश (I'm OK, You're not OK)
मैं नाखुश तू खुश (I'm not OK, You're OK)
मैं नाखुश तू नाखुश (I'm not OK, You're not OK)

उपरोक्त स्थितियों में पहली स्थिति सबसे अच्छी स्थिति है और चौथी सबसे खराब।
पहली स्थिति इतनी अधिक अच्छी स्थिति है कि इसे आदर्श की संज्ञा दी जा सकती है। जिस प्रकार से मनुष्य के जीवन में आदर्श स्थिति कभी कभार ही आ पाती है उसी प्रकार से सबसे खराब स्थिति भी कभी-कभी ही आती है। किन्तु दूसरी तथा तीसरी स्थिति जीवनपर्यन्त बनी रहती है।
क्यों बनती हैं ये स्थितियाँ?
ये स्थितियाँ बनती हैं हमारे अपने व्यवहार के कारण से। हमारे व्यवहार में जहाँ लचीलापन होता है वहीं कठोरता भी होती है। किस समय हमें किस प्रकार का व्यवहार करना है यदि हम जान लें तो हम इन स्थितियों पर नियन्त्रण भी कर सकते हैं।
हमारा व्यवहार बनता है हमारी सोच से। हम किस प्रकार से सोचकर कैसा व्यवहार करते हैं यह बताती है श्री थॉमस एन्थॉनी हैरिस (Thomas A हर्रिस) द्वारा लिखित अंग्रेजी पुस्तक I'm OK, You're OK जो कि बहुत ही लोकप्रिय है। यह पुस्तक व्यवहार विश्लेषण (Transactional Analysis) पर आधारित है। श्री हैरिस की पुस्तक इसी बात की व्याख्या करती है कि उपरोक्त व्यवहारिक स्थितियाँ क्यों बनती हैं। उनका सिद्धांत बताता है कि मनुष्य निम्न तीन प्रकार से सोच-विचार किया करता है:
बचकाने ढंग से (Child): इस प्रकार के सोच-विचार पर मनुष्य की आन्तरिक भावनाएँ तथा कल्पनाएँ हावी रहती है (dominated by feelings)। आकाश में उड़ने की सोचना इसका एक उदाहरण है।
पालक के ढंग से (Parent): यह वो सोच-विचार होता है जिसे कि मनुष्य ने बचपने में अपने पालकों से सीखा होता है (unfiltered; taken as truths)। 'सम्भल के स्कूल जाना', 'दायें बायें देखकर सड़क पार करना' आदि वाक्य बच्चों को कहना इस प्रकार के सोच के उदाहरण है।
वयस्क ढंग से (Adult): बुद्धिमत्तापूर्ण तथा तर्कसंगत सोच वयस्क ढंग का सोच होता है (reasoning, logical)। सोच-विचार करने का यही सबसे सही तरीका है।
हमारे सोच-विचार करने के ढंग के कारण ही हमारे व्यवहार बनते है। जब दो व्यक्ति वयस्क ढंग से सोच-विचार करके व्यवहार करते है तो ही दोनों की संतुष्टि प्रदान करने वाला व्यवहार होता है जो कि "मैं खुश तू भी खुश (I'm OK, You're OK)" वाली स्थिति होती है। जब दो व्यक्तियों में से एक वयस्क ढंग से सोच-विचार करके तथा दूसरा बचकाने अथवा पालक ढंग से सोच-विचार करके व्यवहार करते है तो "मैं खुश तू नाखुश (I'm OK, You're not OK)" या "मैं नाखुश तू खुश (I'm not OK, You're OK)" वाली स्थिति बनती है। किन्तु जब दो व्यक्ति बचकाने या पालक ढंग से सोच-विचार करके व्यवहार करते है तो "मैं नाखुश तू नाखुश (I'm not OK, You're not OK)" वाली स्थिति बनती है।
तो मित्रों! यदि अच्छी प्रकार से सोच-विचार करके दूसरों के साथ व्यवहार करें तो हमारे जीवन की खुशियों में अवश्य ही इजाफा हो सकता है।
वैसे यदि व्यवहार के मामले को छोड़ दें तो बचकानी और पालक सोच का अपना महत्व है और इनके बिना काम चलना मुश्किल हो। विज्ञान के अधिकतर आविष्कारों और खोजों का श्रेय बचकानी सोच को ही जाता है।
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