(छत्तीसगढ़ के जन-जीवन पर आधारित प्रथम आंचलिक उपन्यास)
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भोला ने जिस दिन श्यामवती के पास शराब फिर न पीने का विचार प्रकट किया था उसी दिन शाम को जब कारखाने से छुट्टी हुई तब उसे दरवाजे पर बुधराम मिल गया। उसने उल्लू की लकड़ी घुमाना शुरू किया। भोला को बेहद थकावट मालूम हो रही थी और उसे पिछले दिन की शाम दो-चार घूँट में ही थकावट मिट जाने की बात भी याद आई। वह श्यामा को दिया गया वचन भूल गया और बुधराम के साथ फिर उसी गन्दी दुनिया में पहुँच कर अपनी आत्मा में गन्दगी उड़ेल ली। फिर वही गुलछर्रे, वही तमाशा और वही पतन। आज भी बुधराम उसे उसके घर तक छोड़ आया। श्यामवती ने उसकी वही पिछले दिन वाली दशा देखी तो सिर पीट कर रह गई।
दिनों दिन भोला का पीना बढ़ता ही गया। श्यामा ने पहले कुछ दिनों तक तो समझाया पर अन्त में हार मान कर चुप हो गई। शराब के साथ अब वह जुआ भी खेलने लगा था। चोरी का दुर्गुण भी उसके जीवन में घुस आया था। इतना अवश्य था कि वह बाहर चोरी न कर घर की ही चीजें चोरी कर बेच देता और मिलने वाले पैसों को कलवार की भट्ठी में झोंक देता था। एक एक कर उसने श्यामवती के सभी गहने बेच डाले। श्यामा के जीवन में भी विचित्र परिवर्तन आ गया था। वह उदासीन रहती थी और चिड़चिड़ी भी हो गई थी। भोला को उत्तर देने में डरने वाली श्यामा अब उससे मुँह लड़ाती थी। भोला का उद्दण्ड साथी बुधराम अभी तक उसके घर कभी नहीं आया था।
इतवार का दिन था। भोला घर ही में था। श्यामा के पास बैठ कर बातें कर रहा था। बात ही बात में उसे श्यामवती ने बताया कि वह गर्भवती है। भोला को बेहद खुशी हुई और शराब की लत लग जाने के बाद भी उसकी सद्-वृति कुछ जाग उठी। उसे लगा कि सन्तान के कारण ही उसे शराब छोड़ देनी चाहिये पर वह तो गले तक पानी में डूब चुका था। सुन कर बोला, "चलो अच्छा है, तुम्हीं पूरी तरह से संभाल करना होने वाले बच्चे का।" भोला के स्वर में कातरता थी जिसे सुनकर श्यामवती को भी दुःख हुआ। बोली, " मैं क्यों, तुम तो हो।" भोला उदास हो गया। इतने में ही दरवाजा खटखटाया। द्वार खोल कर भोला ने देखा तो बुधराम था।
"आवो यार बुधराम, बैठो।" भोला ने उसका स्वागत करते हुये कहा। वह बैठ गया। श्यामवती भी पास ही बैठी थी। जब से बुधराम आया था तब से कभी सीधा और कभी कनखियों से श्यामवती को ही देख रहा था। उसकी हरकतें इतनी सफाई से हो रहीं थीं कि भोला कुछ नहीं भाँप सका पर श्यामा सब कुछ ताड़ गई। भोला कहने लगा, "हमारी श्यामा पढ़ी-लिखी है और मजे की बात बताता हूँ कि यह माँ बनने वाली है।" भोला ने सरलता में कह तो दिया पर सुन कर श्यामा का मुँह लज्जा से लाल हो गया।
"अच्छा, ऐसी बात है। तब तो हमें मिठाई खिलाना न भूलना। भाभी मैं तुमसे कह रहा हूँ।" कह कर बुधराम ने श्यामवती की ओर कुत्सित दृष्टि से देखा जिसे भोला नहीं देख पाया। श्यामवती की इच्छा हुई कि अभी इस आदमी को दो तमाचे मार कर घर से बाहर निकाल दे। उसका गुस्सा उबल रहा था। किन्तु उसने संयम से काम लिया और वह उठ कर दूसरे कमरे में चली गई। थोड़ी देर बाद जब बुधराम और भोला बाहर चले गये तब उसने सोचा कि वह बुधराम के बारे में भोला से साफ साफ कह देगी कि उसकी नीयत अच्छी नहीं है। पर दूसरे ही क्षण उसका विचार बदला कि मर्द शक्की होते हैं। ऐसा कहने से कहीं भोला उसी पर शक न करने लगे और वही आफत में पड़ जाय। अन्त में उसने निश्चय किया कि वह कुछ नहीं कहेगी।
श्यामवती की युवावस्था और साफ-सुथरे कपड़ों में बुधराम को एक नया आकर्षण दिखा। श्यामा उसकी आँखों में गड़ गई। वह मौके की ताक में रहने लगा और श्यामवती उससे बाल बाल बचने का प्रयत्न करती रही। भोला इस विषय में भोला ही रहा। बुधराम तो उसे बताने से रहा और श्यामवती इसलिये चुप रही क्योंकि वह उसके उग्र स्वभाव को अच्छी तरह से जानती थी। उसे पता था कि कुछ भी बताने पर वह उसे ही दोषी ठहरायेगा। समय बीतता गया और श्यामा के गर्भ के दिन पूरे हो गये। वह मजदूरों के लिये बने हुये जचकी अस्पताल में भर्ती कर दी गई जहाँ उसने एक मरे हुये लड़के को जन्म दिया। इससे वह इतनी दुःखी हुई कि उसके हृदय पर वह दुःख सदा के लिये अंकित हो गया। किन्तु उसने यह सोच कर संतोष का अनुभव किया कि शराबी की संतान जीती रहती तो उसे नरक ही तो भोगना पड़ता।
जचकी हुये छः महीने बीत चुके थे। श्यामवती की कमजोरी प्रायः दूर हो चुकी थी। वह एक पुस्तक पढ़ती हुई बैठी थी। भोला काम पर गया था। अचानक बुधराम आ पहुँचा। आते ही उसने श्यामवती को अपनी भुजाओं में कस लिया। वह परिस्थिति से सजग थी। उसने बलपूर्वक अपने आपक छुड़ाकर बुधराम को बड़े जोरों से ढकेला और चिल्लाने लगी। उसका चिल्लाना सुन कर परसादी की औरत दौड़ी आई। साथ ही दूसरी औरतें भी इकट्ठी हो गईं। बुधराम यह देख कर तेजी से भाग गया। सभी औरतें उसे गालियां देने लगीं तथा सबने मिल कर श्यामवती को धीरज बँधाया।
जचकी हुये छः महीने बीत चुके थे। श्यामवती की कमजोरी प्रायः दूर हो चुकी थी। वह एक पुस्तक पढ़ती हुई बैठी थी। भोला काम पर गया था। अचानक बुधराम आ पहुँचा। आते ही उसने श्यामवती को अपनी भुजाओं में कस लिया। वह परिस्थिति से सजग थी। उसने बलपूर्वक अपने आपक छुड़ाकर बुधराम को बड़े जोरों से ढकेला और चिल्लाने लगी। उसका चिल्लाना सुन कर परसादी की औरत दौड़ी आई। साथ ही दूसरी औरतें भी इकट्ठी हो गईं। बुधराम यह देख कर तेजी से भाग गया। सभी औरतें उसे गालियां देने लगीं तथा सबने मिल कर श्यामवती को धीरज बँधाया।
बात सब ओर फैल गई। भोला भी सुनकर जल्दी ही घर चला आया। बुधराम पर उसे इतना गहरा विश्वास था कि उसने मन ही मन सारा दोष श्यामवती के सिर पर मढ़ दिया और घर आते ही श्यामा की मरम्मत की तथा उसे घर से बाहर निकाल कर दरवाजा बन्द कर लिया। वह चिल्ला चिल्ला कर दरवाजा खोलने के लिये प्रार्थना करने लगी पर सब व्यर्थ हुआ। अन्त में परसादी की औरत उसे अपने घर ले गई। दो-चार दिनों में जब भोला का अकारण ही अविवेक से आया हुआ गुस्सा शान्त हुआ तब वह उसे घर लिवा ले गया। श्यामा ने जब उसे बुधराम के बारे में आदि से अन्त तक सभी बातें बताई तो वह बोला, "तुमने पहले क्यों नहीं बताया?"
"वाह, पहले बता कर और भी आफत मोल लेती? जब पूरी बस्ती को विश्वास हो गया कि मैं निर्दोष हूँ तब तो तुमने मुझे पीटा। पहले यदि बताती तो तुम अधिक शक न करते।" श्यामा का उत्तर सुन कर भोला चुप हो गया। थोड़ी देर बाद बोला, "तुम ठीक कहती हो। बुधराम से मेरी दोस्ती ही ऐसी थी कि मैं उसे दोष नहीं दे सकता था।"
दोनों की गृहस्थी की गाड़ी फिर चलने लगी। बुधराम ने उसी दिन टाटानगर छोड़ दिया पर भोला के हृदय में प्रतिहिंसा की आग धधकने लगी।
(क्रमशः)
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