Thursday, January 3, 2008

छत्तीसगढ़िया सबले बढ़िया

(स्व. श्री हरिप्रसाद अवधिया रचित छत्तीसगढ़ी कविता)

छत्तीसगढ़िया सबले बढ़िया
अड़बढ़िया खेती करथँयँ,
झटपटइया कूकुर मन के सेती
चुरमुरा के लांघन मरथँयँ।

छत्तीसगढ़िया सबले बढ़िया
हाँ तौ अब एक-जुट हो जावव;
लहू पिवइया कूकुर मन ला
छत्तीसगढ़ ले मार भगावव।

छत्तीसगढ़ी मां विद्या सीखव
जनम-भूमि ला मूड़ नवावव,
छत्तीसगढ़ महतारी ला भइया
हँस-हँस के बलिदान चढ़ावव।

वीर नारायन सिंह रहिन हँयँ,
मरहा-खुरहा के सुनवइया;
उनखर वीरता ला अपनावव,
तुम हौ बघवा अस गरजइया।

शर्मा सुन्दर लाल बनव तुम,
अत्याचारी ला थर्रा दव;
नवा जागरन के मंतर से,
दुश्मन ला बोइर-अस झर्रा दव।

सिंघ सरिख जिनगी भर गरजिन,
त्यागी ठाकुर प्यारेलाल;
पनप न पाइन ठाकुर साहब,
झेलिन पर के टेड़गा चाल।

खूबचन्द तो खूब रहिन हँयँ,
छत्तीसगढ़ भ्रातृ संघ के प्रान;
उर प्रेरक अँयँ ये नेता मन,
धरत रहव ये सब झन के ध्यान।

महानदी शिवरीनारायण,
राजिम सिरपुर भोरमदेव;
चाँपाझर खल्लारी बस्तर,
बमलाई के पूजा कर लेव।

छत्तीसगढ़ के सीमा ला जानव,
चार दिसा मां देवी चार;
हमर सक्ति के रच्छा करथँयँ,
माई के जस अपरम्पार।

रतनपूर मां महामाया हय अउ
डोंगरगढ़ मां बमलाई;
बस्तर मां दन्तेस्वरि देवी,
सम्बलपुर मां समलाई।

अइसन छत्तीसगढ़ के हम छत्तीसगढ़िया,
तेखरे सेती छत्तीसगढ़िया सबले बढ़िया

हिन्दी सार

छत्तीसगढ़िया सब से अच्छे होते हैं, खूब खेती करते हैं लेकिन झपटने वाले कुत्तों (नेताओं) के कारण भूखे ही मरते हैं।

तो अच्छे छत्तीसगढ़ियों एक जुट हो जाओ और खून पीने वाले कुत्तों को छत्तीसगढ़ से मार भगाओ।

छत्तीसगढ़ी में विद्या सीखो, जन्म-भूमि के प्रति सिर झुकाओ, हँस-हँस छत्तीसगढ़ माता को बलिदान चढ़ाओ।

निर्बल लोगों की बात सुनने वाले वीर नारायण सिंह थे, उनकी वीरता को अपना कर शेर जैसे दहाड़ो।

तुम सुन्दरलाल शर्मा बनो और अत्याचारियों को थर्रा दो; नव-जागरण के मन्त्र से दुश्मनों को बेर जैसे टपका दो।

त्यागी ठाकुर प्यारेलाल सिंह जिंदगी भर सिंह के समान गरजते रहे पर दूसरों की टेढ़ी चाल के कारण पनप न पाये।

छत्तीसगढ़ भ्रातृ संघ के प्राण खूबचन्द जी तो खूब थे। ये सब हमारे प्रेरक नेता रहे हैं, इन्हीं का ध्यान धरते रहो।

महानदी, शिवरीनारायण, राजिम, सिरपुर, भोरमदेव, चाँपाझर, खल्लारी, बस्तर जैसे पावन स्थलों और बमलाई माता की पूजा करो।

छत्तीसगढ़ की सीमा को जानो, यहाँ चारों दिशाओं में चार देवियाँ हैं जो हमारी शक्ति की रक्षा करते हैं, इन माताओं का यश अपरम्पार है।

रतनपुर में महामाया देवी हैं, डोंगरगढ़ में बमलाई देवी हैं, बस्तर में दन्तेश्वरी देवी हैं और सम्बलपुर में समलाई देवी हैं।

ऐसे महान छत्तीसगढ़ के हम छत्तीसगढ़िया हैं और इसीलिये हम सबसे अच्छे हैं।

(रचना तिथिः 29-11-1980)

3 comments:

रवि रतलामी said...

हव भइया, छत्तीसगढ़िया, सबले बढ़िया.
बासी खाथे, अमारी के चटनी खाथे अऊ रहिथे बढ़िया सुघरा.

Pankaj Oudhia said...

यह कविता तो पहले ही सार्थक थी। अब और सार्थक लगती है। पता नही कब हमारी नयी पीढी स्वयम को छत्तीसगढी कहलाने मे गर्व का अनुभव करेंगी? यदि सम्भव हो तो इसका हिन्दी अनुवाद भी प्रस्तुत करे या सार समझाये ताकि देश के दूसरे भागो के लोग भी इसे समझ सके।

आपको बहुत दिनो बाद देख रहा हूँ। आशा है इस वर्ष आप नियमित रूप से लिखते रहेंगे।

Sanjeet Tripathi said...

सबले बढ़िया छत्तीसगढ़िया!! सही बात कहे हे सियान मन हा!!