आज हम उसी टिप्पणी का स्नैपशॉट आपके समक्ष प्रस्तुत करने जा रहे हैं। अब आप यह पूछेंगे कि जब आपने उस टिप्पणी को प्रकाशित करने से रोक ही दिया था तो अब क्यों उसका स्नैपशॉट दिखा रहे हैं। तो भाई इसके दो कारण हैं:
पहला
टिप्पणी को प्रकाशित होने से रोक देने के बाद हमें लगा कि इसे रोक कर हमने कुछ भी गलत नहीं किया है क्योंकि ब्लोगिंग हमें ऐसा करने का पूर्ण अधिकार देता है किन्तु यह भी ध्यान में आया कि आखिर विचारों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता भी तो कोई चीज है। यह सोच कर हम कुछ ग्लानि अनुभव करने लगे।
दूसरा
हमें हमारे पाठकों को भी तो टिप्पणीकर्ता के अन्तःकरण, आचरण और नीयत के आकलन का अवसर देना चाहिए। आप देख भी लेंगे तो हमें भला क्या अन्तर पड़ना है क्योंकि हम तो मानते हैं
निंदक नियरे राखिए आँगन कुटी छवाय।
बिन पानी साबुन बिना निर्मल करै सुहाय॥
और
जो बड़ेन को लघु कहै नहिं रहीम घटि जाहि।
गिरिधर मुरलीधर कहे, कछु दुख मानत नाहि॥
अन्त में
क्षमा बड़न को चाहिए ....
तो आखिर में हमने उस टिप्पणी का स्नैपशॉट आप लोगों को दिखाने का निश्चय कर लिया, पर हाँ उसमें हिन्दी ब्लोगिंग के वातावरण को अशुद्ध करने वाले जो विज्ञापन थे उसको जरूर काले रंग से पोत दिया है।
तो यह है उस टिप्पणी का स्नैपशॉटः
(चित्र को बड़ा कर के देखने के लिए उस पर क्लिक करें)
अब जब अन्तःकरण की बात चली है यह बताना कुछ अनुचित नहीं होगा कि सलीम मियाँ ने आजकल हमें "चश्माधारी जोकर" के बदले "अवधिया जी" संबोधित करना शुरू कर दिया है जिससे ऐसा प्रतीत होता है कि या तो उनका अन्तःकरण कुछ कुछ शुद्ध हुआ है या फिर वैसा कुछ दिखावा करने लगे हैं। खैर जो भी हो, हमें क्या।
आज नवरात्रि पर्व के आरम्भ होने के अवसर पर माता की वन्दना के रूप में अपने पूज्य पिता जी की यह रचना भी समर्पित कर रहा हूँ
जय दुर्गे मैया
(स्व. श्री हरिप्रसाद अवधिया रचित कविता)
जय अम्बे मैया,
जय दुर्गे मैया,
जय काली,
जय खप्पर वाली।
वरदान यही दे दो माता,
शक्ति-भक्ति से भर जावें;
जीवन में कुछ कर पावें,
तुझको ही शीश झुकावें।
तू ही नाव खेवइया,
जय अम्बे मैया।
सिंह वाहिनी माता,
दुष्ट संहारिणि माता;
जो तेरे गुण गाता,
पल में भव तर जाता।
तू ही लाज रखैया,
जय अम्बे मैया।
महिषासुर मर्दिनि,
सुख-सम्पति वर्द्धिनि;
जगदम्बा तू न्यारी,
तेरी महिमा भारी।
तू ही कष्ट हरैया,
जय अम्बे मैया।
(रचना तिथिः 12-10-1980)
(उपरोक्त रचना इसी ब्लोग में पहले भी एक बार प्रकाशित कर चुका हूँ किन्तु प्रिय रचना होने के कारण मैंने इसे पुनःप्रकाशित किया।)
13 comments:
अवधिया जी,
मैं भी जानता हूँ कि फायदा नहीं कीचड में पत्थर फेंकने से, मगर मुखौटे पहने घूमने वालो को बेनकाब करना भी हमारा फर्ज बनता है , और मैं समझता हूँ कि आप एक बहुत ही महत्वपूर्ण भुमिका निभा रहे है इस काम में !
बहुत पहले जब उत्तराखंड अपने गाँव जाता था तो वहा की बस में चड़ने पर सामने एक नोट लिखा होता था कि
" आपका व्यवहार, आपकी भाषा ही आपका प्रथम परिचय है "
आपको तो मालूम ही है कि पहाडो का ड्राविंग सफ़र काफी जोखिम भरा और अनिश्चित होता है अतः बस की ड्राविंग सीट के ऊपर एक श्लोक और लिखा होता है " कोशिश करेंगे, वादा नहीं "
बहुत खूब, मैं आनंदित हुआ , लाभान्वित हुआ, ऐसे ही पागलपन दिखाते रहिये जब तक आप जैसे कोई नया पागल हमें ना मिल जाये, चिपलूनकर साहब बाद अब आपसे बडी उम्मीदे हैं,
उसकी वन्दना करो जिसने सारी सृष्टि बनायी, ना कि उसकी जिसने केवल हिन्दुस्तान बनाया,
वन्दे ईश्वरम
vande mataram !!!
अच्छी पोस्ट .नवरात्र पर्व पर हार्दिक शुभकामना .
अस्सी प्रतिशत भारत पागल है सा'ब. जो पूरी दुनिया में उधम मचाए हुए है, वे ही समझदार है.
शुक्र है यह नहीं कहते खुदा सिर्फ खुदा है वह ईश्वर नहीं हो सकता.
जब नमन केवल खुदा को ही करना होता है तो कभी दरबारों में बादशाह के आगे कमर तक झूक झूक कर क्या करते थे?
बहुत अच्छी पोस्ट है वन्दे मातरम जै भारत नवरात्र पर्व की शुभकामनायें
नवरात्रि की शुभकामनाएं अवधिया जी,वैसे संजय का सवाल भी बहुत कहता है।और मैं आप से पहले ही निवेदन कर चुका हूं कि आप बड़े है और क्षमा बड़न को चाहिये………।
जय अम्बे मां की।
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भाई कैरानवी,
हर चीज को यों न रौंदा करो अपने ऊँट की टापों के तले...
विरोध जताने और टिप्पणी देने का भी एक सलीका होता है, भाई काशिफ आरिफ से सीखो यह सलीका...
@ प्रवीन शाह जी - मैं आपके मशवरे से पहले ही काशिफ साहब से कमेंटस लिखने का तरीका, सीख रहा हूँ, उनको बार बार कमेंटस करता हूं ताकि वह मेरा मार्गदर्शन करते रहा करें, विश्वास ना हो तो उनको रात उनके लेख ''ज़कात किसको देनी चाहिये??'' पर कमेंटस किया है देख लें,
वेसे भी उनका या उन जैसों का साथ अधिक बना रहे इस लिये हमने शुरू किया है
hamarianjuman.blogspot.com
Direct link काशिफ आरिफ के साथ उमर कैरानवी - 'हमारी अन्जुमन ब्लाग'
अवधिया जी, पहले तो आपको नवरात्रि पर्व की हार्दिक शुभकामनाऎँ!!! माँ दुर्गे की इस अति सुन्दर आरती,वन्दना के लिए आपका धन्यवाद्!!
हो सकता है कि शायद माँ भवानी इन लोगों को सदबुद्धि प्रदान कर ही दे..{वैसे इसकी कोई संभावना दूर दूर तक भी दिखाई नहीं देती:)
वत्स जी, आपको भी नवरात्रि पर्व की हार्दिक शुभकामनाऎँ!
आपका कथन सत्य हैः
फूलहिं फलहिं न बेत जदपि गरल बरसहिं सुधा।
मूरख हृदय न चेत जो गुरु मिलहिं बिरंचि सम॥
यह तो बहुत घटिया टिप्पणी थी अपने आप को विद्वान् समझने वाले इस टिप्पणीकर्ता की विद्वता इससे आसानी से समझी जा सकती है
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