अब आप पूछेंगे कि मैं ऐसा क्यों कह रहा हूँ? भाई अभी अभी हमने एक लेख पढ़ा है ऐसा ही। शीर्षक में मुसलमानों से प्रश्न किया गया है कि एक से अधिक पत्नी रखने की अनुमति क्यों है? अब क्या कहें, इस शीर्षक ने हमारा ध्यान खींच लिया। सोचा चलो इस विषय में कुछ जानकारी बढ़ेगी। फिर जब बॉडी में पहुँचे तो पता चला कि मुसलमान इस प्रश्न का उत्तर दे ही नहीं पाते क्योंकि उन्हें खुद ही पता नहीं है। फिर विद्वान लेखक ने बताया कि कुरआन में निर्देश दिया है कि सिर्फ एक ही शादी करो। अब हमने खुद से प्रश्न किया कि इतना पढ़ कर हम क्या समझे? तीन शादी की अनुमति है या सिर्फ़ एक शादी की? बहुत सोचा पर कोई भी उत्तर नहीं सूझा, ठीक वैसे ही जैसे कि लेखक के अनुसार मुसलमान नहीं बता सकते कि तीन शादियों की अनुमति क्यों है।
अब आगे पढ़ा तो पता चला कि दशरथ और कृष्ण की कई बीबियाँ थीं। हम फिर एक बार चकराये कि आखिर ये मामला क्या है। बात तो मुसलमानों की शादी की हो रही थी अब मुसलमानों के बीच दशरथ और कृष्ण कहाँ से घुस आए? कुछ और आगे जाने पर पता चला कि लेख में ईसाई, पादरी, यहूदी, वेद, रामायण, गीता, तलगुद, बाइबिल आदि का भी पदार्पण हो गया है। (मन में एक शंका भी उठी कि कहीं इन सभी की कोई साजिश तो नही है तीन शादी की अनुमति के पीछे?) इन सभी के आगमन के पश्चात् भी अभी तक पता नहीं चल पाया कि आखिर तीन शादियों की इज़ाज़त क्यों है?
खैर साहब, अब हम और आगे बढ़े तो यह पता चला कि कुरआन के अनुसार "बहु-विवाह कोई आदेश नहीं बल्कि एक अपवाद है।" अब फिर हम कनफ्यूजिया गए। लेख के शीर्षक से तो लगता है कि यह तो पता है कि तीन शादियों की अनुमति है पर क्यों है यह नहीं पता। पर यहाँ तक पढ़ने पर पता चला कि अनुमति तो है ही नहीं। अब बताइए कि हम क्या समझें?
अब कहाँ तक बताएँ साहब, लेख तो ज्ञान का विशुद्ध खजाना था क्योंकि उसमें अलग अलग देशों में स्त्री पुरुषों का अनुपात, किस देश में कितने विवाहित हैं और कितने अविवाहित और भी बहुत सारी ऐसी ही बातों की जानकारी दी गई थी। फिर अन्त में बताया गया था कि औरत के सम्मान और उसकी रक्षा के लिये अनुमति दी गई है। अब तो साहब दिमाग भन्ना गया। भला कैसे नहीं भन्नायेगा, कुछ ही देर पहले तो इसी लेख में पढ़ा था कि कुरआन सिर्फ एक ही शादी की अनुमति देता है और अब आखरी में फिर पढ़ रहे हैं कि इस्लाम एक से अधिक शादी की अनुमति देता है।
याने कि इस्लाम तो तीन शादी कि इजाजत देता है पर कुरआन सिर्फ़ एक ही शादी कि अनुमति देता है।
भाई मैं तो कुछ समझ नहीं पाया, यदि आप लोगों में से किसी को समझ में आ पाये तो हमें भी समझाने की कृपा करना। पर यह अनुरोध आप लोगों से ही है उस लेखक से नहीं क्योंकि यदि कहीं वह समझाने आ जायेगा तब तो मैं पूरा पागल हो जाउँगा।
खैर इतना तो समझ में आ गया कि पढ़ कर समझ में आ जाए तो वो कोई लेख नहीं होता। लेख उसी को कहते हैं जिसका शीर्षक कुछ कहे, बॉडी कुछ और कहे, शीर्षक पढ़ कर विषय कुछ लगे, बॉडी बॉडी पढ़ कर कुछ और। याने कि सब कुछ एकदम गड्ड मड्ड और गोल गोल हो। भला वो लेख भी कोई लेख है जिसे पढ़ने वाला समझ ले? लिखना ही है तो ऐसा लिखो कि पढ़ने वाला सिर धुनने लगे।
चलते चलते
एक एजेंट (कोई प्रचारक मत समझ लेना भाई) एक सज्जन के पास फिर आ धमका। वो उस सज्जन के पास पहले इतने बार आ चुका था कि उन्हें उसकी सूरत देखते ही खुन्दक आ जाती थी। पिछली बार यह कह कर उसे भगाया था कि अब तू मेरे पास फिर कभी मत आना।
तो इस बार उस एजेंट के आते ही चीख पड़े, "तू फिर आ गया लसूढ़े।"
एजेंट भी तैश में आ गया और बोला, "शर्म आनी चाहिए आपको जो मुझे लसूढ़ा कह रहे हैं। आज तक कितने ही लोगों ने मुझे गरियाया है, धकियाया है, यहाँ तक कि धक्के दे कर बाहर भी फिंकवा दिया है पर किसी ने भी लसूढ़ा नहीं कहा। आपको मुझसे माफी मांगना चाहिए।"
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आज ही का एक और लेख - ब्लोगवाणी से अनुरोध
13 comments:
अवधिया जी, छोड़ना नहीं, इन मलेच्छो को ! हा-हा-हा-हा सराहनीय प्रयास और मेरा पूरा समर्थन !! एक बात और कहूँ कि वह इस टोपिक को कम से कम दस बार पोस्ट कर चुका पिछले ३ महीने में ! पता नहीं क्या साबित करवाना चाहते है, जबकि असलियत हर कोई जानता है !
जो खुद ही गोल गोल घूमा हुआ हो,उसका लिखा भी तो गोल गोल ही होगा न...
esa bhi hota hai...
वाह क्या बात है जी , मान गये लेकिन लसूडो से दुरी ही भली
हा हा हा.....अवधिया जी, चले थे जानकारी बढाने। मेरे ख्याल से पोस्ट पढने के बाद तो जो पहले से पता है,वो भी दिमाग से निकल गया होगा:)
चलिये मान लिया कि दशरथ महाराज ने तीन शादियां की थीं और मुहम्मद साब ने भी चार
लेकिन आज के समय में जब दशरथ के वंशज कानूनन एक ही शादी कर सकते हैं तो मुहम्मद के वंशज (?) पर एक की बंदिश क्यों नहीं लागू होती?
एक बात और...
जब कुरआन सिर्फ एक शादी की अनुमति देता है तो फिर ये चार शादियां करके क्या कुरआन के मुखालिफ काम नहीं कर रहे हैं क्या?
क्या इनके लिये अपनी पवित्र किताब का कोई महत्व नहीं है?
आपका तो सिर्फ अपना सिर धुनने का मन करता है मेरा तो इन लसूढों को धुनने का मन करता है
:) बदनाम गलियों में झाँकने गये ही क्यों, गुरुदेव? :) और अब झाँक ही लिया है तो पता चल ही गया होगा कि उधर क्या "माल" रखा है… :)
इन मलिच्छों से दूर रहने में ही भलाई है, खुद तो कुछ पता नहीं है और अपने धर्मग्रन्थ को और बदनाम कर रहे हैं, उसका गलत मतलब निकालकर.
राम राम, राम ही बचाये इन लोगों से..।
स्वच्छ संदेश कभी समझ आए है भला?
भ्रमित लोग क्या समधान देगें?
वाह, बस यही प्रार्थना है ईश्वर से - अगले जनम लसूड़ा न बनायें और किसे लसूड़न से बिआह न हो! :)
शायद ये भी लेखन की कोई कला हो। जिसमें घुमाकर लोगों के कान फ़्यूज़ (कनफ़्यूज़)किए जाते हैं।
दीप्ति जी, ये लेखन कला नहीं मदारी कला है। साँप-नेवले की लड़ाई दिखाने की बात करके लोगों को बातों में उलझाये रखो और अन्त में साँप-नेवले की लड़ाई दिखाने के बदले ताबीज बेचना शुरू कर दो। :)
सलीम साहब के क्या कहने है...इंसान अच्छे है लेकिन कभी - कभी या कहें अकसर बेवकुफ़ियां कर जाते है....
कुरआन में चार बिवियां रखने की इजाज़त एक शर्त पर दी गयी है की आप उन चारों में इंसाफ़ करें...
जो एक को दिया है तो बाकी तीनों को बिल्कुल वैसा ही मिलना चाहिये....कोई फ़र्क ना हो...
एक चीज़ को बराबर और इंसाफ़ से बांट्ना चाहिये अगर नही बांट सकते हो तो तुम्हारे लिये एक ही बीवी बेहतर है.....
और आज के दौर में इतना इंसाफ़ कर पाना बहुत मुश्किल है बल्कि नामुमकिन है तो इस्लिये एक ही बेहतर है.....
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