Thursday, December 24, 2009

मर जाने के बाद आदमी की कद्र बढ़ जाती है

कितनी ही बार देखने को मिलता है कि जब तक आदमी जीवित रहता है, उसे कोई पूछने वाला नहीं होगा किन्तु उसके मर जाने के बाद अचानक उसकी कद्र बढ़ जाती है। हिन्दी के प्रसिद्ध कथाकार एवं उपन्यासकार प्रेमचन्द जी जीवन भर गरीबी झेलते रहे किन्तु उनकी मृत्यु के बाद उनकी रचनाओं ने उनकी सन्तान को धनकुबेर बना दिया क्योंकि प्रेमचन्द जी की रचनाओं के प्रकाशन का एकाधिकार केवल उनकी प्रकाशन संस्का "हंस प्रकाशन" के पास ही था। उल्लेखनीय है कि सन् 1930 में प्रेमचंद जी ने हंस प्रकाशन आरम्भ करके "हंस" पत्रिका का प्रकाशन शुरू किया था जिसकी आर्थिक व्यवस्था के लिये उन्हें बहुत संघर्ष करना पड़ता था। किन्तु सन् में उनके स्वर्गवास हो जाने के बाद उसी हंस प्रकाशन ने जोरदार कमाई करना शुरू कर दिया।

अक्सर दिवंगत प्रतिभाएँ दूसरों की कमाई का साधन बन जाती हैं। दिवंगत फिल्म संगीतकारों, गीतकारों और कलाकारों के ट्रीटीज बना कर गुलशन कुमार के टी. सीरीज ने खूब कमाई की।

कमाल अमरोही की प्रसिद्ध फिल्म पाकीज़ा सन् 1972 में रिलीज़ हुई थी। पाकीज़ा में मीना कुमारी ने लाजवाब अभिनय किया था। फिल्म को टाकीजों में दिखाया गया पर लोगों ने उसे पसंद नहीं किया और हफ्ते भर में ही उतर गई। कुछ ही दिनों के बाद मीना कुमारी का स्वर्गवास हो गया। उनकी मृत्यु के पश्चात पाकीज़ा का प्रदर्शन फिर से एक बार टाकीजों मे किया गया। इस बार उसी फिल्म को लोगों ने खूब पसंद किया और उसे आशातीत सफलता मिली। मीना कुमारी की बात चली है तो याद आया कि गुलजार की फिल्म मेरे अपने, जिसमें मीना कुमारी की यादगार भूमिका थी, पूरी बन चुकी थी पर फिल्म की डबिंग के पहले ही मीना कुमारी का स्वर्गवास हो गया। फिल्म में मीना कुमारी की आवाज की डबिंग उसके डुप्लीकेट से कराई गई।

पाकीज़ा के जैसे ही प्रख्यात गीतकार शैलेन्द्र की फिल्म तीसरी कसम (1966) के साथ भी हुआ। तीसरी कसम फ्लॉप हो गई। इस बात का शैलेन्द्र को इतना सदमा लगा कि उनका स्वर्गवास ही हो गया। शैलेन्द्र के स्वर्गवास के बाद तीसरी कसम का पुनः प्रदर्शन हुआ और इस बार फिल्म को सफलता मिली। शैलेन्द्र अपनी सफलता स्वयं नहीं देख पाये।

कितना अच्छा हो यदि लोगों को उनके जीवन में ही उनकी प्रतिभा का प्रतिदान मिल पाये!

13 comments:

निर्झर'नीर said...

कितनी ही बार देखने को मिलता है कि जब तक आदमी जीवित रहता है, उसे कोई पूछने वाला नहीं होगा किन्तु उसके मर जाने के बाद अचानक उसकी कद्र बढ़ जाती है। हिन्दी के प्रसिद्ध कथाकार एवं उपन्यासकार प्रेमचन्द जी जीवन भर गरीबी झेलते रहे किन्तु उनकी मृत्यु के बाद उनकी रचनाओं ने उनकी सन्तान को धनकुबेर बना दिया


title dekh kar yun laga kisine mere vicharo ko shabd de diye hai ...

yakinan aapne yatharth ko pristut kiya hai ..bandhaii or shukria

Khushdeep Sehgal said...

अवधिया जी,
यही इस बेदर्द ज़माने की रीत है...अगर ऐसा न होता तो गुरुदत्त को जीते जी वो सम्मान नहीं मिल जाता जिसके वो हकदार थे...अभी हाल में माइकल जैक्सन को ही देख लीजिए...कर्ज में डूबा होने की वजह से ड्रग्स में दिन रात घुले जा रहा था...मौत के बाद एक ही झटके में सारा कर्ज दूर हो गया...घर वालों पर छप्पर फाड़ कर पैसे की बरसात होने लगी...

जय हिंद...

निर्मला कपिला said...

सही बात है जीते जी ऐसे आदमी रोटी के लिये भी मुहताज़ रहते हैं मगर मरने पर उनकी कीमर लाखों करोडों हो जाती है। अपनी मेहनत का सम्मान ज़िन्दा रहते नहीं पा सकते। धन्यवाद

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

खैर, मैं तो यह मानता हूँ अवधिया साहब, कि इंसान की अपनी जो महानता है, अपने जो गुण है, जिनकी वजह से उसने समाज में अपनी अलग पहचान बनाई है, वही उसके लिए काफी है, वह लोगो के सम्मान का मुहताज नहीं रहता !

ब्लॉ.ललित शर्मा said...

जीयत को मिला नही भर पेट अनाज
मरने के बाद उनका समझ रहे काज

जय हो अवधिया जी। बधाई हो

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

Bilkul sahi kaha aapne.

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2009 के श्रेष्ठ ब्लागर्स सम्मान!
अंग्रेज़ी का तिलिस्म तोड़ने की माया।

संजय बेंगाणी said...

बात तो सही कही. वास्तव में ऐसा होता है. दुनिया की भी अजब रीत है.

डॉ टी एस दराल said...

अवधिया जी, रोज़मर्रा की जिंदगी में भी ऐसे कितने ही किस्से सुनने में आते हैं। जहाँ जीते जी कोई कदर नहीं, मरने के बाद लोग क्रिया कर्म , अनुष्ठान और दान पुण्य में लाखों खर्च कर देते हैं, क्योंकि ये भी एक स्टेटस सिम्बल होता है।
ऐसा ही है इंसान।

Gyan Dutt Pandey said...

अब भैया ब्लॉग हिट कराने के लिये मरूंगा तो नहीं! :)

राज भाटिय़ा said...

भाई अपने भी इरादे ज्ञानदत्त जी से मिलते जुलते है:)

M VERMA said...

सही है मरना जरूरी है जिन्दा रहने के लिये.

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" said...

बात तो आपकी सही है लेकिन हो सकता है कि शायद इसमें भी कुछ इन्सान के भाग्य का फेर हो.......

Udan Tashtari said...

सो तो है!