Saturday, January 23, 2010

बड़ी बेसब्री से इंतजार किया करते थे हम बुधवार का

एक समय था जब हमें लगता था कि कैसे जल्दी से जल्दी बुधवार आ जाये और जब बुधवार आ जाता था तो फिर बेसब्री के साथ इंतजार हो जाता था रात्रि के आठ बजने का। हमारा खयाल है कि सिर्फ हमें ही नहीं बल्कि आप को भी ऐसा लगता रहा होगा। हम बात कर रहे हैं अपने समय की सर्वाधिक लोकप्रिय रेडियो कार्यक्रम "बिनाका गीतमाला" की जिसके भारत के करोड़ों लोग दीवाने थे।

बिनाका गीतमाला रेडियो पर प्रसारित होने वाला भारतीय फिल्मों के गीतों पर आधारित प्रथम काउंट डाउन (count down) कार्यक्रम था जिसकी जो कि सन् 1952 से शुरू होकर सन् 1994 तक चली। एक समय में बिनाका गीतमाला इतना अधिक लोकप्रिय था कि लोग इसे सुनने के लिये अपने जरूरी से जरूरी काम को भी टाल दिया करते थे। भारत के करोड़ों लोग इस प्रोग्राम के दीवाने थे।

बिनाका गीतमाला का प्रसारण "सीलोन ब्रॉडकास्टिंग कार्पोरेशन", जिसे कि रेडियो सीलोन के नाम से जाना जाता था और जो बाद में "श्रीलंका ब्रॉडकास्टिंग कार्पोरेशन" हो गया, से प्रत्येक बुधवार की रात्रि 8 बजे हुआ करता था। आरम्भ में यह प्रोग्राम आधे घंटे का हुआ करता था किन्तु बाद में इसकी लोकप्रियता को ध्यान में रख कर इसे एक घंटे का कर दिया गया था। संगीत के इस अत्यन्त लोकप्रिय कार्यक्रम में लोकप्रियता के आधार पर भारतीय फिल्मों के गीतों को सुनवाया जाता था और इसे विख्यात उद्घोषक अमीन सयानी अपनी मनमोहक अंदाज एवं आवाज के साथ प्रस्तुत किया करते थे। भारतीय फिल्मों की मेलॉडियस संगीत और अमीन सयानी की कर्णप्रिय आवाज पूरे एक घंटे तक श्रोताओं को भाव विभोर कर के रेडियो से चिपका के रख दिया करती थी।

बिनाका गीतमाला में गीतों को उनकी लोकप्रियता के क्रम के अनुसार सुनवाया जाता था। चयन किये गये सोलह गानों में सबसे कम लोकप्रिय गाना सबसे पहले और सबसे अधिक लोकप्रिय गाना सबसे अंत में बजा करता था। कार्यक्रम का आरम्भ शानदार बिगुल बजने के साथ हुआ करता था। गानों के रेकॉर्ड की बिक्री गानों की लोकप्रियता का पैमाना हुआ करता था।

बाद में बिनाका गीतमाला के नाम को दो बार बदला गया। पहली बार इसका नाम बदल कर सिबाका गीतमाला किया गया और दूसरी बार कोलगेट गीतमाला। कालान्तर में सिबाका गीतमाला को सिबाका संगीतमाला के नाम से विविध भारती से भी प्रसारित किया गया।

बिनाका गीतमाला के आरम्भ होने के 39 वर्षों के बाद टेलीविजन पर फिल्मी गीतों के काउंट डाउन (count down) कार्यक्रम सुपरहिट मुकाबला शुरू हो गया जिसके कारण इस इस कार्यक्रम का प्रभाव कम होने लगा। लोकप्रियता कम हो जाने पर कार्यक्रम के 42वें वर्ष में इसे बंद कर दिया गया।

नीचे प्रस्तुत है बिनाका गीतमाला के अनुसार वर्षवार सर्वाधिक लोकप्रिय गीतों की सूचीः

वर्षगीतफिल्मसंगीतकारगीतकारगायक/गायिका
1953ये जिन्दगी उसी की हैअनारकलीसी रामचंदराजेन्द कृष्णलता मंगेषकर
1954जायें तो जायें कहाँटैक्सी ड्राइव्हरसचिनदेव बर्मनसाहिर लुधियानवीतलत महमूद/लता मंगेषकर
1955मेरा जूता है जापानीश्री 420शंकर जयकिशनशैलेन्द्रमुकेश
1956ऐ दिल है मुश्किल जीना यहाँसीआईडीओ पी नैयरमजरूह सुल्तानपुरीमोहम्मद रफी, गीतादत्त
1957जरा सामने तो आओ छलियेजनम जनम के फेरेएस एन त्रिपाठीभरत व्यासमोहम्मद रफी, लता मंगेषकर
1958है अपना दिल तो आवारासोलहवाँ सालसचिनदेव बर्मनमजरूह सुल्तानपुरीहेमन्त कुमार
1959हाल कैसा है जनाब काचलती का नाम गाड़ीसचिनदेव बर्मनमजरूह सुल्तानपुरीहेमन्त कुमार, आशा भोसले
1960जिंदगी भर नहीं भूलेगी वो बरसात की रातबरसात की रातरोशनसाहिर लुधियानवीमोहम्मद रफी, लता मंगेषकर
1961तेरी प्यारी प्यारी सूरत को
ससुरालशंकर जयकिशनहसरत जयपुरीमोहम्मद रफी
1962एहसान तेरा होगा मुझपरजंगलीशंकर जयकिशनहसरत जयपुरीमोहम्मद रफी/लता मंगेषकर
1963जो वादा किया वो निभाना पड़ेगाताजमहलरोशनसाहिर लुधियानवीमोहम्मद रफी, लता मंगेषकर
1964मेरे मन की गंगासंगमशंकर जयकिशनशैलेन्द्रमुकेश, वैजयन्तीमाला
1965जिस दिल में सा था प्यार तेरासहेलीकल्याणजी आनन्दजीइन्दीवरमुकेश/लता मंगेषकर
1966बहारों फूल बरसाओसूरजशंकर जयकिशनहसरत जयपुरीमोहम्मद रफी
1967सावन का महीना पवन करे सोरमिलनलक्ष्मीकान्त प्यारेलालआनन्द बख्शीमुकेश, लता मंगेषकर
1968दिल विल प्यार व्यारशागिर्दलक्ष्मीकान्त प्यारेलालआनन्द बख्शीलता मंगेषकर
1969कैसे रहूँ चुपइन्तेकामलक्ष्मीकान्त प्यारेलालराजेन्द्र कृष्णलता मंगेषकर
1970बिंदिया चमकेगीदो रास्तेलक्ष्मीकान्त प्यारेलालआनन्द बख्शीलता मंगेषकर
1971जिंदगी एक सफर है सुहानाअंदाजशंकर जयकिशनहसरत जयपुरीकिशोर कुमार/आशा भोसले
1972दम मारो दमहरे रामा हरे कृष्णाराहुलदेव बर्मनआनन्द बख्शीआशा भोसले
1973यारी है ईमान मेरा यार मेरी जिंदगीजंजीरकल्याणजी आनन्दजीगुलशन बावरामन्ना डे
1974मेरा जीवन कोरा कागज कोरा ही रह गयाकोरा कागजकल्याणजी आनन्दजीएम जी हश्मतकिशोर कुमार
1975बाकी कुछ बचा तो मँहगाई मार गईरोटी कपड़ा और मकानलक्ष्मीकान्त प्यारेलालवर्मा मलिकलता मंगेषकर, मुकेश, जानीबाबू, नरेन्द्र
1976कभी कभी मेरे दिल में खयाल आता हैकभी कभीखैयामसाहिर लुधियानवीमुकेश
1977हुस्न हाजिर है मुहब्बत की सजा पाने कोलैला मजनूँमदन मोहनसाहिर लुधियानवीलता मंगेषकर
1978अँखियों के झरोखे से मैंने देखा जोअँखियों के झरोखे सेरवीन्द्र जैनरवीन्द्र जैनहेमलता
1979खइके पान बनारस वालाडॉनकल्याणजी आनन्द जीअंजानकिशोर कुमार
1980डफली वाले डफली बजासरगमलक्ष्मीकान्त प्यारेलालआनन्द बख्शीलता मंगेषकर, मोहम्मद रफी
1981मेरे अँगने में तुम्हारा क्या काम हैलावारिसकल्याणजी आनन्दजीअंजानअमिताभ बच्चन, अलका याग्निक
1982अंग्रेजी में कहते हैंखुद्दारराजेश रोशनमजरूह सुल्तानपुरीकिशोर कुमार, लता मंगेषकर
1983शायद मेरी शादी का खयालसौतनउषा खन्नासावन कुमारकिशोर कुमार, लता मंगेषकर
1984तू मेरा हीरो हैहीरोलक्ष्मीकान्त प्यारेलालआनन्द बख्शीअनुराधा पौढ़वाल, मनहर उधास
1985सुन सायबा सुनराम तेरी गंगा मैलीरवीन्द्र जैनरवीन्द्र जैनलता मंगेषकर
1986यशोदा का नन्दलालासंजोगलक्ष्मीकान्त प्यारेलालअंजानलता मंगेषकर
1987चिट्ठी आई हैनामलक्ष्मीकान्त प्यारेलालआनन्द बख्शीपंकज उधास
1988पापा कहते हैंकयामत से कयामत तकआनन्द मिलिन्दमजरूह सुल्तानपुरीअलका याग्निक, उदित नारायण
1989माय नेम इज लखनराम लखनलक्ष्मीकान्त प्यारेलालआनन्द बख्शीमोहम्मद अज़ीज़
1990गोरी है कलाइयाँआज का अर्जुनभप्पी लहरीअंजानलता मंगेषकर, शब्बीर कुमार
1991देखा है पहली बारसाजननदीम-श्रवणसमीरअलका याग्निक, एस पी बालसुब्रमनियम
1992मैने प्यार तुम्हीं से किया हैफूल और काँटेनदीम-श्रवणसमीरकुमार सानू, अनुराधा पौढ़वाल
1993चोली के पीछेखलनायाकलक्ष्मीकान्त प्यारेलालआनन्द बख्शीअलका याग्निक, इला अरुण

9 comments:

निर्मला कपिला said...

हम भी सुना करते थे बिनाका गीत माला मगर आपने तो पूरा व्योरा रखा है आभार्

रंजू भाटिया said...

बहुत छोटे थे तब पर सुनते थे घर में चलता रहता था ...आपने तो पूरे रंग में फिर से पेश कर दिया इसको ..शुक्रिया

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

पुराने यादे तजा करने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद अवधिया साहब ,

आज के इस युग में जब याद करता हूँ कि सन १९७८-८० तक हम हर साल २ या २ बैंड से ऊपर के रेडियो को रखने के लिए पोस्ट ऑफिस में लाइसेंस फीस जमा करवाने जाते थे तो आज बड़ा अजीब सा लगता है ! क्या वक्त था सचमुच !!

डॉ महेश सिन्हा said...

वृहत जानकारी

उस जमाने में घर में रेडियो पर गाना सुनने की मनाही थी तो चुपके चुपके लो वॉल्यूम में स्पीकर से कान लगा के सुना करते थे :)

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

बहुत अच्छी जानकारी..... आपने बचपन याद दिला दिया....

राज भाटिय़ा said...

जी हम भी बहुत ध्यान से सुनते थे इस प्रोगराम को, अगर पापा मना कर देते तो उस दिन उदास रहते थे, लेकिन पिता जी के आगे बोलने की हिम्मत नही होती थी.
आप ने इस बिनाका गीत माला के साथ साथ ओर भी बहुत कुछ यद दिला दिया.
धन्यवाद

डॉ टी एस दराल said...

वाह अवधिया जी, बचपन की याद दिला दी।
सेवंटीज के गाने आज भी गाने और सुनने में कितना मज़ा आता है।

मनोज कुमार said...

ग़ज़ब का क्लेक्शन! वो दिन याद आ गए जब हमने शर्त लगाई थी कि मेरा जीवन कोरा काग़ज़ ही प्रथम पायदान पर आयेगा।

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" said...

अवधिया जी, मान गये कि आप तो जानकारी के भंडार हैं....आपने तो इस कार्यक्रम का इतिहास, भूगोल सब कुछ खोल के सामने रख दिया।