बिनाका गीतमाला रेडियो पर प्रसारित होने वाला भारतीय फिल्मों के गीतों पर आधारित प्रथम काउंट डाउन (count down) कार्यक्रम था जिसकी जो कि सन् 1952 से शुरू होकर सन् 1994 तक चली। एक समय में बिनाका गीतमाला इतना अधिक लोकप्रिय था कि लोग इसे सुनने के लिये अपने जरूरी से जरूरी काम को भी टाल दिया करते थे। भारत के करोड़ों लोग इस प्रोग्राम के दीवाने थे।
बिनाका गीतमाला का प्रसारण "सीलोन ब्रॉडकास्टिंग कार्पोरेशन", जिसे कि रेडियो सीलोन के नाम से जाना जाता था और जो बाद में "श्रीलंका ब्रॉडकास्टिंग कार्पोरेशन" हो गया, से प्रत्येक बुधवार की रात्रि 8 बजे हुआ करता था। आरम्भ में यह प्रोग्राम आधे घंटे का हुआ करता था किन्तु बाद में इसकी लोकप्रियता को ध्यान में रख कर इसे एक घंटे का कर दिया गया था। संगीत के इस अत्यन्त लोकप्रिय कार्यक्रम में लोकप्रियता के आधार पर भारतीय फिल्मों के गीतों को सुनवाया जाता था और इसे विख्यात उद्घोषक अमीन सयानी अपनी मनमोहक अंदाज एवं आवाज के साथ प्रस्तुत किया करते थे। भारतीय फिल्मों की मेलॉडियस संगीत और अमीन सयानी की कर्णप्रिय आवाज पूरे एक घंटे तक श्रोताओं को भाव विभोर कर के रेडियो से चिपका के रख दिया करती थी।
बिनाका गीतमाला में गीतों को उनकी लोकप्रियता के क्रम के अनुसार सुनवाया जाता था। चयन किये गये सोलह गानों में सबसे कम लोकप्रिय गाना सबसे पहले और सबसे अधिक लोकप्रिय गाना सबसे अंत में बजा करता था। कार्यक्रम का आरम्भ शानदार बिगुल बजने के साथ हुआ करता था। गानों के रेकॉर्ड की बिक्री गानों की लोकप्रियता का पैमाना हुआ करता था।
बाद में बिनाका गीतमाला के नाम को दो बार बदला गया। पहली बार इसका नाम बदल कर सिबाका गीतमाला किया गया और दूसरी बार कोलगेट गीतमाला। कालान्तर में सिबाका गीतमाला को सिबाका संगीतमाला के नाम से विविध भारती से भी प्रसारित किया गया।
बिनाका गीतमाला के आरम्भ होने के 39 वर्षों के बाद टेलीविजन पर फिल्मी गीतों के काउंट डाउन (count down) कार्यक्रम सुपरहिट मुकाबला शुरू हो गया जिसके कारण इस इस कार्यक्रम का प्रभाव कम होने लगा। लोकप्रियता कम हो जाने पर कार्यक्रम के 42वें वर्ष में इसे बंद कर दिया गया।
नीचे प्रस्तुत है बिनाका गीतमाला के अनुसार वर्षवार सर्वाधिक लोकप्रिय गीतों की सूचीः
वर्ष | गीत | फिल्म | संगीतकार | गीतकार | गायक/गायिका |
1953 | ये जिन्दगी उसी की है | अनारकली | सी रामचंद | राजेन्द कृष्ण | लता मंगेषकर |
1954 | जायें तो जायें कहाँ | टैक्सी ड्राइव्हर | सचिनदेव बर्मन | साहिर लुधियानवी | तलत महमूद/लता मंगेषकर |
1955 | मेरा जूता है जापानी | श्री 420 | शंकर जयकिशन | शैलेन्द्र | मुकेश |
1956 | ऐ दिल है मुश्किल जीना यहाँ | सीआईडी | ओ पी नैयर | मजरूह सुल्तानपुरी | मोहम्मद रफी, गीतादत्त |
1957 | जरा सामने तो आओ छलिये | जनम जनम के फेरे | एस एन त्रिपाठी | भरत व्यास | मोहम्मद रफी, लता मंगेषकर |
1958 | है अपना दिल तो आवारा | सोलहवाँ साल | सचिनदेव बर्मन | मजरूह सुल्तानपुरी | हेमन्त कुमार |
1959 | हाल कैसा है जनाब का | चलती का नाम गाड़ी | सचिनदेव बर्मन | मजरूह सुल्तानपुरी | हेमन्त कुमार, आशा भोसले |
1960 | जिंदगी भर नहीं भूलेगी वो बरसात की रात | बरसात की रात | रोशन | साहिर लुधियानवी | मोहम्मद रफी, लता मंगेषकर |
1961 | तेरी प्यारी प्यारी सूरत को | ससुराल | शंकर जयकिशन | हसरत जयपुरी | मोहम्मद रफी |
1962 | एहसान तेरा होगा मुझपर | जंगली | शंकर जयकिशन | हसरत जयपुरी | मोहम्मद रफी/लता मंगेषकर |
1963 | जो वादा किया वो निभाना पड़ेगा | ताजमहल | रोशन | साहिर लुधियानवी | मोहम्मद रफी, लता मंगेषकर |
1964 | मेरे मन की गंगा | संगम | शंकर जयकिशन | शैलेन्द्र | मुकेश, वैजयन्तीमाला |
1965 | जिस दिल में सा था प्यार तेरा | सहेली | कल्याणजी आनन्दजी | इन्दीवर | मुकेश/लता मंगेषकर |
1966 | बहारों फूल बरसाओ | सूरज | शंकर जयकिशन | हसरत जयपुरी | मोहम्मद रफी |
1967 | सावन का महीना पवन करे सोर | मिलन | लक्ष्मीकान्त प्यारेलाल | आनन्द बख्शी | मुकेश, लता मंगेषकर |
1968 | दिल विल प्यार व्यार | शागिर्द | लक्ष्मीकान्त प्यारेलाल | आनन्द बख्शी | लता मंगेषकर |
1969 | कैसे रहूँ चुप | इन्तेकाम | लक्ष्मीकान्त प्यारेलाल | राजेन्द्र कृष्ण | लता मंगेषकर |
1970 | बिंदिया चमकेगी | दो रास्ते | लक्ष्मीकान्त प्यारेलाल | आनन्द बख्शी | लता मंगेषकर |
1971 | जिंदगी एक सफर है सुहाना | अंदाज | शंकर जयकिशन | हसरत जयपुरी | किशोर कुमार/आशा भोसले |
1972 | दम मारो दम | हरे रामा हरे कृष्णा | राहुलदेव बर्मन | आनन्द बख्शी | आशा भोसले |
1973 | यारी है ईमान मेरा यार मेरी जिंदगी | जंजीर | कल्याणजी आनन्दजी | गुलशन बावरा | मन्ना डे |
1974 | मेरा जीवन कोरा कागज कोरा ही रह गया | कोरा कागज | कल्याणजी आनन्दजी | एम जी हश्मत | किशोर कुमार |
1975 | बाकी कुछ बचा तो मँहगाई मार गई | रोटी कपड़ा और मकान | लक्ष्मीकान्त प्यारेलाल | वर्मा मलिक | लता मंगेषकर, मुकेश, जानीबाबू, नरेन्द्र |
1976 | कभी कभी मेरे दिल में खयाल आता है | कभी कभी | खैयाम | साहिर लुधियानवी | मुकेश |
1977 | हुस्न हाजिर है मुहब्बत की सजा पाने को | लैला मजनूँ | मदन मोहन | साहिर लुधियानवी | लता मंगेषकर |
1978 | अँखियों के झरोखे से मैंने देखा जो | अँखियों के झरोखे से | रवीन्द्र जैन | रवीन्द्र जैन | हेमलता |
1979 | खइके पान बनारस वाला | डॉन | कल्याणजी आनन्द जी | अंजान | किशोर कुमार |
1980 | डफली वाले डफली बजा | सरगम | लक्ष्मीकान्त प्यारेलाल | आनन्द बख्शी | लता मंगेषकर, मोहम्मद रफी |
1981 | मेरे अँगने में तुम्हारा क्या काम है | लावारिस | कल्याणजी आनन्दजी | अंजान | अमिताभ बच्चन, अलका याग्निक |
1982 | अंग्रेजी में कहते हैं | खुद्दार | राजेश रोशन | मजरूह सुल्तानपुरी | किशोर कुमार, लता मंगेषकर |
1983 | शायद मेरी शादी का खयाल | सौतन | उषा खन्ना | सावन कुमार | किशोर कुमार, लता मंगेषकर |
1984 | तू मेरा हीरो है | हीरो | लक्ष्मीकान्त प्यारेलाल | आनन्द बख्शी | अनुराधा पौढ़वाल, मनहर उधास |
1985 | सुन सायबा सुन | राम तेरी गंगा मैली | रवीन्द्र जैन | रवीन्द्र जैन | लता मंगेषकर |
1986 | यशोदा का नन्दलाला | संजोग | लक्ष्मीकान्त प्यारेलाल | अंजान | लता मंगेषकर |
1987 | चिट्ठी आई है | नाम | लक्ष्मीकान्त प्यारेलाल | आनन्द बख्शी | पंकज उधास |
1988 | पापा कहते हैं | कयामत से कयामत तक | आनन्द मिलिन्द | मजरूह सुल्तानपुरी | अलका याग्निक, उदित नारायण |
1989 | माय नेम इज लखन | राम लखन | लक्ष्मीकान्त प्यारेलाल | आनन्द बख्शी | मोहम्मद अज़ीज़ |
1990 | गोरी है कलाइयाँ | आज का अर्जुन | भप्पी लहरी | अंजान | लता मंगेषकर, शब्बीर कुमार |
1991 | देखा है पहली बार | साजन | नदीम-श्रवण | समीर | अलका याग्निक, एस पी बालसुब्रमनियम |
1992 | मैने प्यार तुम्हीं से किया है | फूल और काँटे | नदीम-श्रवण | समीर | कुमार सानू, अनुराधा पौढ़वाल |
1993 | चोली के पीछे | खलनायाक | लक्ष्मीकान्त प्यारेलाल | आनन्द बख्शी | अलका याग्निक, इला अरुण |
9 comments:
हम भी सुना करते थे बिनाका गीत माला मगर आपने तो पूरा व्योरा रखा है आभार्
बहुत छोटे थे तब पर सुनते थे घर में चलता रहता था ...आपने तो पूरे रंग में फिर से पेश कर दिया इसको ..शुक्रिया
पुराने यादे तजा करने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद अवधिया साहब ,
आज के इस युग में जब याद करता हूँ कि सन १९७८-८० तक हम हर साल २ या २ बैंड से ऊपर के रेडियो को रखने के लिए पोस्ट ऑफिस में लाइसेंस फीस जमा करवाने जाते थे तो आज बड़ा अजीब सा लगता है ! क्या वक्त था सचमुच !!
वृहत जानकारी
उस जमाने में घर में रेडियो पर गाना सुनने की मनाही थी तो चुपके चुपके लो वॉल्यूम में स्पीकर से कान लगा के सुना करते थे :)
बहुत अच्छी जानकारी..... आपने बचपन याद दिला दिया....
जी हम भी बहुत ध्यान से सुनते थे इस प्रोगराम को, अगर पापा मना कर देते तो उस दिन उदास रहते थे, लेकिन पिता जी के आगे बोलने की हिम्मत नही होती थी.
आप ने इस बिनाका गीत माला के साथ साथ ओर भी बहुत कुछ यद दिला दिया.
धन्यवाद
वाह अवधिया जी, बचपन की याद दिला दी।
सेवंटीज के गाने आज भी गाने और सुनने में कितना मज़ा आता है।
ग़ज़ब का क्लेक्शन! वो दिन याद आ गए जब हमने शर्त लगाई थी कि मेरा जीवन कोरा काग़ज़ ही प्रथम पायदान पर आयेगा।
अवधिया जी, मान गये कि आप तो जानकारी के भंडार हैं....आपने तो इस कार्यक्रम का इतिहास, भूगोल सब कुछ खोल के सामने रख दिया।
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