आज हिन्दी में बहुत सारी कविताएँ लिखी जा रही हैं। एक से बढ़कर एक कवि हैं आज हिन्दी के। हमारे हिन्दी ब्लोगजगत में भी कवि मित्रों की कमी नहीं है। सुन्दर सुन्दर भाव होते हैं उनकी कविताओं में इसीलिये वे पठनीय भी होती हैं। किन्तु अलंकारयुक्त छंदबद्ध रचनाएँ लुप्तप्राय होते जा रही हैं। बहुत ही क्षोभ होता है यह देखकर। गति, यति और लय तो कविता के प्राण हैं किन्तु आज की कविताओं में इन्हीं का अभाव दिखता है।
क्यों आज के कवि छंदबद्ध कविताएँ नहीं लिखते?
क्या हिन्दी में छंदबद्ध कविताएँ लिखनी खत्म हो जायेंगी?
14 comments:
सच कहा है आपने। सुविधाभोगी कवितायें लिखी जा रही....लोग बस गद्य की चंद पंक्तियों को ऊपर-नीचे लिख कर कवि हो जाना चाहते हैं।
ठीक फरमाया अवधिया साहब आपने ! इसका मुख्य कारण मैं समझता हूँ यह है कि हिन्दी व्याकरण की अधिक जानकारी न होना ! क्योंकि अधिकाश पठन-पाठन आज अंगरेजी में होता है ! मैं भी यह कमजोरी महसूस करता हूँ !
sahi kaha hai aapne, aajkal kavita lekhana ek khel ban gayaa hai.
अवधिया जी,
क्या कहूं, अपुन तो इस मामले में ढपोरशंख हैं...लेकिन कविता हो या गद्य, जो भी अच्छा लगता है, दिल को छूता है, उसकी फिल्मी गानों के ज़रिए तारीफ़ ज़रूर कर देते हैं...
जय हिंद...
आपका प्रश्न पढकरकोई बात अंदर ऐसी चुभ गई है कि उसकी टीस अभी तक महसूस कर रहा हूं। अब तो हमें भी लगता है कि सुविधा परस्त ज़माने में मात्राऒं की गिनती से लोग बचना चाहते हैं। गद्य की तरह फ़टाफ़ट कविताएं लिखना चाहते हैं लोग। पर ऐसी कविताएं कितने लोगों की ज़ुबान पर चढती हैं और कितने दिनों तक चढी रहती हैं!!
पहले की कविताओं में मात्राओं की गिनती भी छंद के अनुसार आती थी।
प्रणाम
sahi farmaya aapne...ab to jo dil ko bha jaye vo kavita hai.
नहीं होंगी अवधिया जी; आज भी छंदबद्ध कवितायें लिखी जा रही हैं. छंद जैसी शास्त्रीयता से परे छंदअबद्ध कवितायें भी लिखी जा रही हैं. लिखी जाती रहेंगी; जो भी हो शब्दों में कविता का मूल स्वरूप 'लिरिक' जब तक उपस्थित रहेगी सभी कवितायें हृदय में ग्रहृय होंगीं.
ग्रहृय = ग्राह्य
अवधिया जी, यदि आप कुछ टिप्स दें तो हम भी प्रयास कर सकते हैं, छंद में कविता लिखने का।
वर्ना हम तो खाली पढ़ ही पाते हैं।
अगर हमारे कवि लोग लिखना बन्द कर दे तो, लेकिन कवि क्यो बन्द करेगे लिखना?
आप को गणतंत्र दिवस की मंगलमय कामना
अलंकारयुक्त छंदबद्ध रचनाएँ लुप्तप्राय होते जा रही है... सही कहा आपने ....इसका कारण सिर्फ व्याकरण से दूर होना है.... बहुत अच्छी लगी यह पोस्ट...
प्रेम के गीत लिख व्याकरण पर न जा
मन की पीड़ा समझ आचरण पर न जा
देख मेरा मन कोई गीता से कम नही
खोलकर पृष्ठ पढ आवारण पर न जा,
यह कविता है जो मुक्त है बंधनों से (मुक्तक)
जब तक गुरु शिष्य परम्परा कायम रहेगी तब तक छंद मे आबद्ध रचनाएं मिलती रहेगी, छंद विद्या गुरु के चरणों मे बैठकर ही मिलती है कई वर्षों की तपस्या के बाद्। अस्तु
गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभ कामनाएं
गौतम राजरिशी aur संजीव तिवारी dono se sahamat
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