सभी पोस्टों को पढ़ना तो बहुत मुश्किल क्या असम्भव है क्योंकि मेरी कुछ रुचियाँ हैं और जिन पोस्टों के विषय मेरी रुचि के नहीं होते उन्हें प्रायः मैं नहीं ही पढ़ पाता। फिर भी रोज ही बहुत सारे पोस्टों को पढ़ता हूँ मैं किन्तु टिप्पणी कुछ ही पोस्टों में करता हूँ।
मैं उन्हीं पोस्टों में टिप्पणी करता हूँ जिन्हें पढ़कर प्रतिक्रयास्वरूप मेरे मन में भी कुछ विचार उठते हैं। जिन पोस्टों को पढ़कर मेरे भीतर यदि कुछ भी प्रतिक्रिया न हो तो मैं उन पोस्टों में जबरन टिप्पणी करना व्यर्थ समझता हूँ। यदि मेरे किसी पोस्ट को पढ़कर किसी पाठक के मन में कुछ विचार न उठे तो मैं उस पाठक से किसी भी प्रकार की टिप्पणी की अपेक्षा नहीं रखता।
कुछ ब्लोगर्स ऐसे भी हैं जिनकी लिखने की शैली मुझे शुरू से ही प्रभावित करती रही है। ऐसे ब्लोगर्स से मैं स्वयं को भावनात्मक रूप से जुड़ा हुआ महसूस करता हूँ और जहाँ तक हो सके उनके पोस्ट पर टिप्पणी के रूप में अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करने का प्रयास करता हूँ।
विवाद उत्पन्न करने के उद्देश्य से लिखे गये पोस्टों पर टिप्पणी करने से मैं भरसक बचने की कोशिश करता हूँ।
मैं नये ब्लोगरों के पोस्टों पर प्रोत्साहन देने के लिये टिप्पणी महत्व को समझता हूँ किन्तु यह भी मानता हूँ कि यदि वे नेट में हिन्दी को अच्छी सामग्री दे पा रहे हैं तभी वे टिप्पणी पाने के योग्य हैं अन्यथा नहीं।
मेरे विचार से टिप्पणियाँ पोस्ट को पढ़ने के प्रतिक्रियास्वरूप मन में उठे विचार हैं न कि एक दूसरे की पीठ थपथपाने की कोई चीज। यदि किसी पोस्ट, चाहे वह पुराने ब्लोगर की हो या नये की, में अच्छी सामग्री मिलती है तो उस पोस्ट को टिप्पणी पाने से कोई भी नहीं रोक सकता।
मेरा मानना यह भी है कि जहाँ सटीक टिप्पणियाँ प्रोत्साहित करती है वहीं पोस्ट के विषय से हटकर तथा समझ में न आने वाली टिप्पणियाँ पढ़ कर दिमाग खराब हो जाता है।
24 comments:
बात सही, तार्किक है।
सहमत।
एकदम सही, ब्लोग्गर यदि सार्वजनिक मंच पर आया है तो पाठक का फर्ज बनता है की यदि उसे उसके लेखन में रूचि अथवा कोई बार बुरी लगी तो इससे उसे अवगत कराये !
अवधिया जी,
टिप्पणी के बारे में जो भी कहा जाए लेकिन ये तो तय है कि हर ब्लॉगर को अपने लिखे पर प्रतिक्रिया मिलने में असीम संतोष मिलता है...ज़रूरी नहीं कि आप हर पोस्ट पर टिप्पणी करे...लेकिन जहां भी करें वो टिप्पणी उस पोस्ट की पूरक या उसे विस्तार देने वाली हो...कुछ तथ्य अगर पोस्ट में छूट रहे हों तो आप उसे टिप्पणी के ज़रिए देकर पोस्ट का रूप और निखार सकते हैं...और सेंस ऑफ ह्यूमर का सटीक उपयोग किया जाए तो
पोस्ट लिखने वाले और दूसरे पढ़ने वालों के चेहरे पर मुस्कान भी लायी जा सकती है...यानि सोने पे सुहागा...
जय हिंद...
पूर्णरुपेन सहमती है आपकी इस बात से
प्रणाम
सहम्त है जी आप की बात से
जिन पोस्टों को पढ़कर मेरे भीतर यदि कुछ भी प्रतिक्रिया न हो तो मैं उन पोस्टों में जबरन टिप्पणी करना व्यर्थ समझता हूँ।
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आपने हमारे व्यर्थ लेखन का अहसास कराया। धन्यवाद।
ज्ञानदत्त जी,
मैंने तो आपके लेखन को "व्यर्थ लेखन" की संज्ञा नहीं दी है, ऐसा तो आप स्वयं ही समझ रहे हैं। मैंने यह भी कहीं नहीं लिखा है कि यदि किसी पोस्ट को पढ़कर मेरे मन में कुछ विचार न उठे तो वह व्यर्थ लेखन है। खैर, अधिकार है आपको कि किसी भी बात का कुछ भी अर्थ लगायें।
ऐसा भी नहीं है कि मैंने कभी आपके किसी पोस्ट पर टिप्पणी ही न की हो और टिप्पणी इसीलिये की कि पोस्ट मेरी रुचि का था तथा उसे पढ़कर मेरे मन में कुछ न कुछ प्रतिक्रियात्मक विचार उठे।
टिप्पणी विषय को आगे बढ़ाने वाली या जानकारी में वृद्धी करने वाली या पुरक जानकारी देने वाली हो, इस बात को ध्यान में रख कर टिप्पणी करने का प्रयास करता हूँ. खामखां की टिप्पणी अपने को पसन्द नहीं.
टिप्पणी करना व्यक्तिगत पसंद का मामला है। आपको कोई पोस्ट पसंद आई तो टिप्पणी किजिए। नही तो कोई बात नही।
एक हाना हे
तोर मन के मन पटेलिन
भाजी रांधस या भांटा
बिल्कुल सही कह रहे है। सहमत हूँ आप से.
बहुत सही कहा अवधिया जी।
टिपण्णी तो तभी करनी चाहिए जब आप को लेख या रचना पसंद आये।
लेकिन पारस्परिक संपर्क भी ज़रूरी है।
भैया जब टिप्पणी कारोबार बनी हो तब आपकी ये गूढ़ बात कौन समझेगा? हमने इसी कारण से टिप्पणी लेना बंद कर दिया है, आज के बाद.
आपका कथन सही है, जिसे पढ़ कर मन में भाव ही न आयें उस पर टिप्पणी कैसे करें और क्यों करें.
पिछले १ माह से टिप्पणी चर्चा पोस्ट चर्चा पे भारी पड रही है
आगे से अच्छे बुरे की ये पहचान कर ली हमने तो कि अबधिया जी ने टिप्पणी कर दी समझ लो रचना सार्थक नही तो .......
.... टिप्पणी एक तरह से दर्पण है जिसके माध्यम से पाठक अच्छाई-बुराई का बोध कराता है .... उपरोक्त लेख के माध्यम से आपने एक पाठक के मनोभावों को अभिव्यक्त किया है जो सराहनीय है!!!
इतना clearly अपना पक्ष रख रहे हैं, टिपण्णी कोर्ट में कोई केस-उस कर दिया है का?
जय बजरंग बलि!
अवधिया जी नमस्कार
टिपण्णी के बारे में श्री कुलदीप सहगल व
ललित भाई के विचारों से सहमत
और मैं जहाँ तक ब्लॉग में देख रहा हूँ
लोग ये टिपण्णी वैगरह के बारे में लिख लिख
कर अपना समय व्यर्थ जाया क्यों कर रहे हैं
ठीक है भाई टिपण्णी नहीं कर सकते या ब्लॉग के
लेख टिपण्णी के लायक नहीं है, कोई बात नहीं,
कोई फ़ोर्स तो करता नहीं
आपने अपनी बातो को बडे सहज ढंग रखा , बहुत अच्छा लगा। आभार
बहुत सटीक और सार्थक पोस्ट....
देरी से आने के लिए माफ़ी चाहता हूँ......
इस विषय में हम भी आपसे पूर्णत: सहमत हैं...यदि पोस्ट को पढने के बाद भी मन में कोई भाव ही उत्पन न हुए तो टिप्पणी करने का तो कोई औचित्य ही नहीं है।
अच्छा एवं सार्थक चिन्तन!
मैं तो इसे प्रोत्साहन ही मानता हूँ और इस तरह के आलेख पढ़कर अपनी सोच बदल भी नहीं पाता.
वैसे तो यह सारी सोच व्यक्तिगत है और टिपाणी करना या न करना व्यक्ति विशेष का निर्णय!
हमेशा स्वागत है!
बड़े सुलझे हुये विचार हैं!
आपका पोस्ट पढ़कर तो आनन्द आ गया!
इसे चर्चा मंच में भी स्थान मिला है!
http://charchamanch.blogspot.com/2010/01/blog-post_28.html
सहमत है आपकी बातो से .बहुत सही ढंग से आपने इस को लिखा है शुक्रिया
भईया,
बिलकुल सहमत हूँ आपकी बात से...प्रत्येक व्यक्ति हर विषय को नहीं समझ सकता है...इसलिए हर पोस्ट पर सार्थक टिपण्णी भी नहीं कर सकता है...बे-वजह बिना बात को समझे हुए टिपण्णी देने से बेहतर है टिपण्णी नहीं देना...
अब आप 'खिचड़ी खिचड़ी' कह रहे हैं और कोई उसे 'खा चिड़ी' समझ लेवे तो आप क्या करेंगे ??
बात को नहीं समझते हुए भी लोग-बाग़ टिपण्णी दे ही गए...हो गई न गड़बड़....:):)
आपने एक ज्वलंत मुद्दे को सही दिशा दी है...
आपका आभार..!!
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