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उनके मोटरसायकल से ही हम लोग निकल पड़े राजिम के लिये जो कि अभनपुर से मात्र १७ कि.मी. दूरी पर है। राजिम मेला छत्तीसगढ़ का अत्यन्त प्राचीन और सबसे बड़ा मेला है जो कि माघ पूर्णिमा से लेकर महाशिवरात्रि तक चलता है। राजिम महानदी के तट पर स्थित है और यहाँ पर महानदी के साथ पैरी तथा सोंढुर नदियों का त्रिवेणी संगम होता है। इसीलिये राजिम को छत्तीसगढ़ के प्रयाग की संज्ञा दी गई है। महानदी छत्तीसगढ़ की सबसे बड़ी नदी है और प्राचीनकाल में इसे चित्रोत्पला के नाम से जाना जाता था।
ललित जी को फोटोग्राफी और ग्राफिक्स के क्षेत्र में महारथ हासिल है सो उन्होंने बड़े सुन्दर सुन्दर चित्र भी लिये वहाँ पर जिनमें से कुछ यहाँ पर प्रस्तुत कर रहा हूँ
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राजिम मेला जाने का एक सबसे बड़ा फायदा यह हुआ कि वहाँ पर हमें गीताप्रेस गोरखपुर के स्टॉल में वाल्मीकि रामायण द्वितीय भाग की प्रति, जो हमसे गुम हो गई थी, मिल गई और आज से हमने अपने "संक्षिप्त वाल्मीकि रामायण", जो कि बहुत दिनों से रुका हुआ था, में प्रविष्टियाँ पुनः आरम्भ कर दिया।
"संक्षिप्त वाल्मीकि रामायण" का अगला पोस्टः
15 comments:
मूंगफलियाँ।
चित्र वाकई बहुत सुंदर हैं. पहले चित्र में रेशम के कोये तो नहीं !
तस्वीर में हमें तो ये रेशम के किड़े लगे.
महाशिवरात्रि पर्व की हार्दिक शुभकामना...
शंकर जी की आई याद,
बम भोले के गूँजे नाद,
बोलो हर-हर, बम-बम..!
बोलो हर-हर, बम-बम..!!
सुन्दर रचना..मूँगफली!
महा-शिवरात्रि की शुभकामनाएँ!
रेशमी कोकून है अवधिया साहब !
रेशम का कोकून
हमें भी कुकून ही लग रहे हैं।
हट्स वाली तस्वीर बहुत सुन्दर लगी।
...मेला दर्शन कराने के लिये आभार!!!!
भईया,
बहुत खूबसूरत तसवीरें हैं सभी की सभी...ललित जी को धन्यवाद...
और वो तस्वीर रेशम के कूकून है...
आभार...
अदा जी ने बजा फरमाया चंद्रिकाछाबड़ा में इसे देखा था इसमें जो मूमफलियाँ निकलतीं हैं उनको रेशम उत्सर्जन की बीमारी है
अवधिया जी बाकी सब तो ठीक है लेकिन इस मेले को आपने राजिम कुम्भ, नकली या सरकारी कुम्भ,कुछ भी नही कहा।
वैसे हमें तो पता नहीं लेकिन जब बाकी लोग कह रहे हैं कि ये रेशम के कुकून हैं तो फिर वही होंगे...
हाँ तस्वीरों के बारे में कह सकते हैं कि बहुत अच्छी आई हैं....
राजिम कुंभ का बड़ा नाम सुना था...आपने घर बैठे दर्शन करा दिए...
शेरसिंह (ललित शर्मा भाई) की फटफटिया पर सवारी का भी अलग ही आनंद होगा...
जय हिंद...
@ Anil Pusadkar
अनिल जी, इस मेले को सरकारी बताना तो चाहता था पोस्ट में किन्तु जल्दी में भूल गया।
खुशदीप सहगल
खुशदीप जी, यह राजिम मेला है जिसे सरकारी तंत्र ने स्वार्थवश राजिम कुम्भ बना दिया है। क्या कभी कुम्भ मेला प्रतिवर्ष लगता है? हम तो बचपन से ही इसे राजिम मेला के नाम से जानते आ रहे हैं।
अन्त में मेरे सभी शुभेच्छु टिप्पणीकर्ताओं से यह कहूँगा कि आप लोगों ने सही पहचाना कि चित्र रेशम के कोये का ही है।
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