आज की आपाधापी में तो फाग सिर्फ होली के समय सिर्फ एक दो दिन ही गाये जाते हैं किन्तु पहले के दिनों में वसन्त पंचमी के दिन से ही फाग गाने की शुरुवात हो जाती थी जो कि रंग पंचमी तक चलती थी। याद आ गये वो दिन जब हम झांझ, मंजीरों, नगाड़ों आदि के ताल धमाल के साथ फाग गाया करते थे:
आज श्याम संग सब सखियन मिलि ब्रज में होली खेलै नाहमारे यहाँ गाये जाने वाले अधिकतर फाग 'चन्द्रसखी' के द्वारा रचे गये हैं जो कि कृष्ण भक्ति के भाव से ओत प्रोत हैं। एक उदाहरण देखियेः
हाँ प्यारे ललना ब्रज में होली खेलै ना
इत ते निकसी नवल राधिका उत ते कुँअर कन्हाई ना
हाँ प्यारे ललना उत ते कृष्ण कन्हाई ना
हिल मिल फाग परस्पर खेलैं शोभा बरनि ना जाई ना
आज श्याम संग सब सखियन मिलि ब्रज में होली खेलै ना
बाजत झांझ मृदंग ढोल डफ मंजीरा शहनाई ना
हाँ प्यारे ललना मंजीरा शहनाई ना
उड़त गुलाल लाल भये बादर केसर कीच मचाई नाआज श्याम संग सब सखियन मिलि ब्रज में होली खेलै ना
जाने दे जमुना पानी मोहन जाने दे जमुना पानीऐसे और भी फाग का संग्रह है हमारे पास जिन्हें हम होली तक के अपनी प्रविष्टियों में प्रस्तुत करने का प्रयास करेंगे।
मोऽहन जाने दे जमुना पानी
रोज के रोज भरौं जमुना जल
नित उठ साँझ-बिहानी
मोऽहन जाने दे जमुना पानी
चुनि-चुनि कंकर सैल चलावत
गगरी करत निसानी
मोऽहन जाने दे जमुना पानी
केहि कारन तुम रोकत टोकत
सोई मरम हम जानी
मोऽहन जाने दे जमुना पानी
हम तो मोहन तुम्हरी मोहनिया
नाहक झगरा ठानी
मोऽहन जाने दे जमुना पानी
ले चल मोहन कुंज गलिन में
हम राजा तुम रानी
मोऽहन जाने दे जमुना पानी
चन्द्रसखी भजु बालकृष्ण छवि
हरि के चरन चित लानी
मोऽहन जाने दे जमुना पानी
9 comments:
बहुत मनमोहिनी रचना....
बधाई....
वाह ,क्या कहने मनोरम मनमोहनी रचना
बढ़िया फागुनी फुहार, अवधिया साहब !
वाह बहुत सुन्दर धन्यवाद और बधाई
मनमोहिनी रचना । आभार ।
बीते समय की याद हो आई. गाँव में फाग गाए जाते थे....दूर दूर तक सुनाई देते थे....
वाह जी , मस्ती आ गई। बधाई।
maza aa gaya saheb !
निहाल कर दिया जी.............
शुक्रिया !
Post a Comment