Monday, February 22, 2010

बेवकूफ ब्लोगर अब टिप्पणी पर भी पोस्ट निकालने लग गये हैं

"नमस्कार लिख्खाड़ानन्द जी!"

"नमस्काऽर! आइये आइये टिप्पण्यानन्द जी!"

"क्या बात है लिख्खाड़ानन्द जी, कुछ परेशान से लग रहे हैं?"

"क्या बतायें टिप्पण्यानन्द जी, बहुत दुःखी हैं भाई हम तो। अजब-अजब लोग आ गये हैं हिन्दी ब्लोगिंग में। हम तो समय निकाल कर उनके ब्लोग में जाकर टिप्पणी करते हैं पर उनको टिप्पणी पर भी ऐतराज हो जाता है। और लोग तो खुश होते हैं कि हमने याने कि उस्ताद जी ने टिप्पणी की है उनके पोस्ट में जाकर, हम चाहे जो भी टिप्पणी करें सामने वाला पढ़ता तक नहीं है बल्कि हमारी टिप्पणी पाकर खुद को सम्मानित समझता है। पर ऐसे लोगों को क्या कहें जो टिप्पणी का अर्थ निकालना चाहते हैं। भई टिप्पणी तो शान होती है पोस्ट की! उसका भी कुछ अर्थ होता है क्या? हमारे टिप्पणी करने का एहसान मानना तो दूर उल्टे हमारी उस टिप्पणी पर भी पोस्ट निकाल लेते हैं कि ऐसी टिप्पणी क्यों किया तुमने? हमारी टिप्पणी ही उनको चिपक जाती है और उसी पर पोस्ट तान देते हैं। अब कहाँ तक हम सफाई दें उनको? सफाई देते भी हैं तो उस सफाई पर भी एक पोस्ट लिख देंगे। लोग तो अधिक से अधिक टिप्पणी पाने के लिये तरसते हैं और ये ऐसे बेवकूफ हैं कि कहते हैं टिप्पणी में क्या धरा है? पाठक बढ़ाओ। अब आप ही बताइये कि दूसरे ब्लोगर पाठक नहीं होते क्या? पर इनकी उल्टी खोपड़ी तो उन्हें ही पाठक समझती है जो ब्लोगर न होकर केवल पाठक ही हों। ऐसे पाठकों से क्या भला होना है हिन्दी का? ये तो सिर्फ पढ़ना जानते हैं लिखना कहाँ जानते हैं कि पढ़ने के बाद कम से कम एक टिप्पणी ही लिख सकें। भाई ब्लोग तो होता है ब्लोगरों के लिये! तुम हमें टिपियाओ हम तुम्हें टिपयायेंगे। पाठकों का क्या लेना देना है उससे?

"चिट्ठा चर्चाओं की बाढ़ आ रही है सो अलग परेशानी है। आप ही बताइये कोई औचित्य है इतनी सारी चिट्ठा चर्चाओं की? ऐसा लगता है कि लोगों के पास अब चर्चा लिखने के सिवाय कोई काम ही नहीं रह गया है। पहले तो सिर्फ हमारे ही लोगों का चिट्ठा चर्चा हुआ करता था और हमारे ही लोगों का संकलक भी। हम लोगों का ही राज चला करता था। अधिक से अधिक बैकलिंक्स हमें और हमारे लोगों को ही मिला करते थे और हमारे संकलक के टॉप लिस्ट में हम और हमारे साथी ही हुआ करते थे। अब इतने सारे चिट्ठा चर्चा आ जाने से बैकलिंक्स दूसरों को भी मिलने लग गये हैं।"

"पर आप वाले संकलक में तो अभी भी आप और आपके लोगों का ही वर्चस्व है।"

"अरे होगा कैसे नहीं भला? बेवकूफ नहीं हैं हम! हमने फॉर्मूला ही ऐसा बनाया है कि हम लोगों का ही वर्चस्व रहे। हमारे फार्मूले में हमने अपने और अपने लोगों का पूरा पूरा ध्यान रखा है। क्या किसी की मजाल है कि हमारे टॉप लिस्ट में आ जाये? लाख सिर पटक ले, दिन में पचासों पोस्ट लिख ले, लाख बैकलिंक्स पा ले पर हमारे टॉप लिस्ट में वही रहेगा जिसे हम चाहेंगे। हाँ एक दो बाहरी लोगों को भी टॉप लिस्ट में लेना पड़ा है क्योंकि उन्होंने पक्षपात वाला राग अलापना शुरू कर दिया था। वैसे उनको टॉप लिस्ट में शामिल करना एक प्रकार से अच्छा ही हुआ। एक तो उनका मुँह भी बंद हो गया और दूसरे हमारी निष्पक्षता का सन्देश भी प्रसारित हो गया।"

"तो फिर अब क्या परेशानी है आपको?"

"अभी तो कोई परेशानी नहीं है पर बाद में तो हो सकती है ना! ये भी हो सकता है कि और भी कई संकलक आ जायें। अभी हमारे संकलक के अलावा जो दूसरा संकलक है उससे तो खैर कोई परेशानी नहीं है हमें क्योंकि वह बिल्कुल ही निष्पक्ष है और उसमें कोई टॉप लिस्ट भी नहीं है। पर यदि कोई हमारे फॉर्मूले जैसा ही दूसरा संकलक आ गया तो क्या होगा? उस संकलक के टॉप लिस्ट में दूसरे लोग होंगे तो हमारा क्या होगा?"

"तो क्या सोचा है आपने?"

"अरे अभी तक हम टॉप रहे हैं तो आगे भी हम ही टॉप रहेंगे। सर कुचल कर रख देंगे स्सालों का जो हमसे आगे निकलने की कोशिश करेंगे। अंग्रेजी में हिन्दी, हिन्दी में अंग्रेजी के उपसर्ग और प्रत्यय जोड़-जोड़ कर और हिन्दी की टाँगें तोड़ कर ऐसे-ऐसे शब्द बनायेंगे कि लोग खिंचते चले आयेंगे हमारे ब्लोग में! क्या समझ रखा है हमें। आपने देखा नहीं है क्या कि हमारा पोस्ट आते ही पसंद और टिप्पणियों का सिलसिला शुरू हो जाता है!"

"हाँ ये बात तो है! हमारी शुभकामनाएँ आपके साथ है कि आप सदा टॉप बने रहें। अच्छा तो चलते हैं अब हम। नमस्कार!"

"नमस्कार!"

24 comments:

M VERMA said...

तगड़ी चोट सही जगह पर
बहुत खूब

डॉ टी एस दराल said...

बहुत बढ़िया व्यंग लिखा है , अवधिया जी।
बिलकुल धारा प्रवाह।

अन्तर सोहिल said...

जय हो जय हो

कडुवासच said...

...हम तो समय निकाल कर उनके ब्लोग में जाकर टिप्पणी करते हैं पर उनको टिप्पणी पर भी ऐतराज हो जाता है...
...टिप्पणी करने का एहसान मानना तो दूर उल्टे हमारी उस टिप्पणी पर भी पोस्ट निकाल लेते हैं कि ऐसी टिप्पणी क्यों किया तुमने? ...
...अरे अभी तक हम टॉप रहे हैं तो आगे भी हम ही टॉप रहेंगे। सर कुचल कर रख देंगे स्सालों का जो हमसे आगे निकलने की कोशिश करेंगे .....
....जबरदस्त लेखन ... जोर का झटका धीरे से मारा है, बहुत बहुत बधाई !!!

ब्लॉ.ललित शर्मा said...

लि्क्खाड़ानंद तो एकदमे
खरी-खरी धांसु बोलते हैं जी।
बेहतरीन व्यंग्य है।

स्वप्न मञ्जूषा said...

भईया,
आपकी यही खासियत है ...आप जो कहते हैं सीधा कहते हैं...कोई लाग लपेट नहीं..
बेचारे, आइडिया, विषय, विधा से ही जब bankrupt हों तो करे तो क्या करें...टिप्पणी ही सही...
समझने वाले समझ गए हैं ...न समझे वो अनाड़ी हैं...
बहुत बढ़िया...

अजय कुमार झा said...

जाने क्या क्या कह गए आप इस पोस्ट में ...और यकीनन समझने वाले सब समझ ही रहे हैं ...इसका प्रभाव और परिणाम जो हो मगर संदेश स्पष्ट है ।
अजय कुमार झा

Anonymous said...

अजब-अजब लोग आ गये हैं हिन्दी ब्लोगिंग में! सफाई देते भी हैं तो उस सफाई पर भी एक पोस्ट लिख देंगे!!

भाई ब्लोग तो होता है ब्लोगरों के लिये! तुम हमें टिपियाओ हम तुम्हें टिपयायेंगे। पाठकों का क्या लेना देना है उससे?

पहले तो सिर्फ हमारे ही लोगों का चिट्ठा चर्चा हुआ करता था और हमारे ही लोगों का संकलक भी। हम लोगों का ही राज चला करता था!!

उनका मुँह भी बंद हो गया और दूसरे हमारी निष्पक्षता का सन्देश भी प्रसारित हो गया!!

अंग्रेजी में हिन्दी, हिन्दी में अंग्रेजी के उपसर्ग और प्रत्यय जोड़-जोड़ कर और हिन्दी की टाँगें तोड़ कर ऐसे-ऐसे शब्द बनायेंगे कि...

सर कुचल कर रख देंगे स्सालों का जो हमसे आगे निकलने की कोशिश करेंगे


औरssss नहीं बस और और नहीं...

इतना बहुत है अवधिया जी :-)

बी एस पाबला

गगन शर्मा, कुछ अलग सा said...

सिर्फ एक शब्द "वाह"

Hindu Bulletin said...

एक शब्द मेरी तरफ़ से भी… "धांसू"… :)

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

बेवकूफ ब्लोगर अब टिप्पणी पर भी पोस्ट निकालने लग गये हैं .... बहुत सही शीर्षक के साथ.... सुंदर "धांसू" व्यंग्य.....

रानीविशाल said...

बहुत ही बढ़िया व्यंग...!!
सादर

कनिष्क कश्यप said...

excellent !
this was badly needed!..
we expect the next episode to be ...on (U know that) ..the RANKING and all those say points..something..we would love to go through..

राज भाटिय़ा said...

आवधिया जी बहुत सुंदर लिखा.अंग्रेजी में हिन्दी, हिन्दी में अंग्रेजी के उपसर्ग और प्रत्यय जोड़-जोड़ कर और हिन्दी की टाँगें तोड़ कर ऐसे-ऐसे शब्द बनायेंगे कि लोग खिंचते चले आयेंगे हमारे ब्लोग में! क्या समझ रखा है हमें। मजेदार झी
धन्यवाद

PD said...

अगर आप अंग्रेजी के ब्लॉग पढते होंगे तो आपको पता होगा ही कि हजारों ऐसे पन्ने नेट पर बिखरे पड़े हैं जिन पर एक भी कमेन्ट नहीं है.. मगर उस पोस्ट पर लाखों हिट्स हुए हैं, सिर्फ उसकी अच्छी गुणवत्ता के कारण..

हम मगर एक अदद टिपण्णी के लिए तरसते रहते हैं..

Unknown said...

avadhiya ji !

aapko laakh lakh badhai !

dil se...........

वीनस केसरी said...

वाट ए आइडिया सर जी - (सोरी:) अवधिया जी

राजीव तनेजा said...

बोले तो...'झकास'

Khushdeep Sehgal said...

अवधिया जी,
ये तो आज आपने सहवाग स्टाइल में ट्रिपल सेंचुरी ठोक डाली...रही टिप्पणियों की बात...

टिप्पणी से टिप्पणी मिलाते चलो...
टीआरपी की गंगा बहाते चलो...

जय हिंद...

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" said...

कमाल का व्यंग्य लिखा आपने...आप तो एक ही पोस्ट में कितनों को लपेट गये :)

वाणी गीत said...

@ अदा जी .
आप समझ गयी हैं...हमको भी समझा दीजिये ...:)

परमजीत सिहँ बाली said...

बहुत बढ़िया पोस्ट!!

rashmi ravija said...

बढ़िया व्यंग है...कम शब्दों में बड़ी बड़ी बातें कह डाली हैं..

Anil Pusadkar said...

तभी तो सभी कहते हैं,

छत्तीसगढिया सबसे बढिया।

और अवधिया जी भी सबसे बढिया।