Friday, March 26, 2010

सपनों के बारे में कुछ विस्मयकारी तथ्य ... अंधे भी सपने देखते हैं

अंधे भी सपने देखते हैं

आपको जानकर आश्चर्य होगा कि अंधे लोग भी सपने देखते हैं। वे लोग, जो जन्म से अंधे नहीं होते, अपने सपनों में चित्र, प्रतिबिंब, छाया आदि देख सकते हैं किन्तु जन्मांध लोग आंख को छोड़ कर अन्य इंद्रियों के क्रियाकलाप से सम्बन्धित विषयों जैसे कि ध्वनि, गंध, स्पर्श आदि से सम्बद्ध सपने देखते हैं। वास्तव में आदमी सपनों में अपने चेतन तथा अचेतन में उभरी कल्पनाओं को साकार होते देखता है।

लोग 90% सपनों को भूल जाते हैं

जागने के 5 मिनट के भीतर ही आदमी अपने द्वारा देखे गये आधे सपनों को भूल जाता है और 10 मिनट के भीतर 90% सपनों को।

प्रत्येक व्यक्ति सपने देखता है

अन्वेषणों से यह सिद्ध हो चुका है कि प्रत्येक व्यक्ति सपने देखता है (कुछ चरम मनोवैज्ञानिक रोगों के प्रकरण वाले व्यक्ति इसके अपवाद हो सकते हैं)। पुरषों और महिलाओं के द्वारा देखे गये सपने अलग अलग प्रकार के होते हैं और उन पर उनकी भौतिक प्रतिक्रियाएँ भी अलग अलग होती हैं। जहाँ पुरूषों का झुकाव अधिकतर अन्य परुषों से सम्बन्धित सपने देखने में होता है वहीं महिलाओं का झुकाव अधिकतर अन्य महिलाएँ तथा अन्य परुषों दोनों से सम्बन्धित सपने देखने में होता है।

सपने मनोविकृति से बचाव करते हैं

मनोवैज्ञनिक परीक्षणों के दौरान कुछ विद्यार्थियों को सपने देखते समय जगा दिया गया और कुछ देर के बाद उन्हें अपनी नींद पूरी करने के लिये फिर से सोने दिया गया। इस परीक्षण के परिणाम से पता चला कि सपने के पूरे न हो पाने की वजह से वे विद्यार्थी ध्यान केन्द्रित करने में असमर्थता, चिड़चिड़ापन जैसी मनोविकृतियों के अस्थाई रूप से शिकार हो गये। इससे सिद्ध होता है कि सपने मानसिक विकृतियों से बचाव करते हैं।

सपने में हम उन्हें ही देखते हैं जिन्हें हम जानते हैं

हमें ऐसा लगता है कि सपनों में हम बहुत से अपरिचित चेहरों को देखते हैं किन्तु आपको यह जान कर आश्चर्य होगा कि उन सारे चेहरों को हमने अपने जीवन में कभी न कभी देखा होता है किन्तु भूल चुके होते हैं। हो सकता है कि जिस व्यक्ति को बचपन में कभी आपने रिक्शा चलाते हुये देखा हो वही व्यक्ति कल आपके सपने में ड़रावना रूप ले कर हत्यारे के रूप में आया हो। जीवन में हम हजारों-लाखों लोगों को देखते हैं और भूल जाते हैं इसलिये हमारे सपनों में आने वाले चरित्रों में कभी कमी नहीं आती।

सभी लोग रंगीन सपने नहीं देख सकते

अन्वेषणों से सिद्ध हो चुका है कि 12% लोग सिर्फ श्वेत-श्याम रंगों में ही सपने देखते हैं, वे कभी रंगीन सपने देख ही नहीं सकते। प्रायः लोगों का झुकाव स्कूल जाने, स्वयं का पीछा किये जाने, किसी स्थान में टहलने, कार्यालय में देर से जाने, किसी जीवित व्यक्ति की मृत्यु, दांत टूटने, परीक्षा में फेल हो जाने, आसमान में उड़ने जैसे सामान्य प्रसंगों के सपने देखने में होता है। इस बात की जानकारी अभी तक नहीं हो पाई है कि रंगीन सपनों का प्रभाव अधिक होता है या श्वेत-श्याम सपनों का।

सपने किसी विषय के होते हैं और हम उन्हें किसी और विषय का समझते हैं

प्रायः सपनों को हम जिस विषय का समझते हैं वे उस विषय के नहीं होते। वास्तव में सपने सांकेतिक भाषा बोलते हैं। हमारा अचेतन मन उस सांकेतिक भाषा वाले सपने की तुलना किसी न किसी वस्तु से करने लगता है। यह तुलना ठीक उस प्रकार की होती है जैसे कोई कवि अपनी कविता में लिखे कि चीटियाँ अनवरत क्रियाशील रहती हैं अतः वे एक मशीन हैं।

सिगरेट तम्बाखू की लत छोड़ने वालों को अधिक भड़कीले सपने दिखाई देने लगते हैं

एक विस्मयकारी तथ्य यह भी है कि यदि व्यक्ति अपने लंबे समय से लगे सिगरेट तम्बाखू के लत को छोड़ दे तो उसे सामान्य से अधिक भड़कीले सपने दिखाई देने लगते हैं। असामान्य मनोविज्ञान से सम्बन्धित एक पत्रिका के अनुसार लत छोड़े हुये 33% लोग लत छोड़ने के 1 से 4 सप्ताह तक अपने लत को पूरा करने तथा किसी के द्वारा पकड़े जाने एवं स्वयं में अपराधबोध होने का सपना देखते हैं।

ये तो हुये सपनों के विषय में विस्मयकारी मनोवैज्ञानिक तथ्य किन्तु कुछ प्रचलित धारणाएँ भी हैं जो कि मनोवैज्ञानिक रूप से सिद्ध नहीं है जैसे कि सपनों में मिले संकेतों का अर्थ होना, भोर के सपनों का सत्य होना आदि।

6 comments:

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

बढ़िया जानकारी सपनो के बारे में अवधिया जी , एक बात कहूंगा लोग अक्सर कहते है कि सपने में अक्सर वही हमें दिखता है जो क्रिया-कलाप हम करते है अथवा हमारे आस पास घटित होता है ! यह सत्य भी है लेकिन कुछ बाते उसमे आश्चर्यजनक भी होती है ! जब मैं बिद्यार्थी था और स्कूटर तक चलना नहीं जानता था , उस समय मैंने सपने में कार चलाई थी ! कैसे वह सपना हुआ नहीं मालूम !

ब्लॉ.ललित शर्मा said...

बहुत बढिया सपनीली पोस्ट,
चलते हैं अब सपने देखने का समय हो गया।

जोहार ले

अजित गुप्ता का कोना said...

सपनों का विज्ञान तो अद्भुत है, पता नहीं हम रोज ही क्‍या उल-जलूल देखते हैं? कभी तो किसी का ना सर होता है और ना पैर। अभी विज्ञान को बहुत खोज करनी है इन सपनों पर।

वाणी गीत said...

मैं इस तर्क से सहमत नहीं हूँ कि सपने में हम वही देखते हैं जो कभी देखा हुआ हो ...बल्कि सपने में बहुत कुछ ऐसा देखते हैं जो कभी नहीं देखा हो ...कई बार बे सर पैर की अनहोनी घटनाएँ भी देखी जाती हैं ...!!

विवेक सिंह said...

वाणी जी की बात से सहमत हूँ । अच्छा विश्लेषण किया है लेखक ने ।

संगीता पुरी said...

सफलता या असफलता की चरम सीमा तक .. जहां तक हमारी कल्‍पना उडान भर सकती है .. वहां तक हम सपने देख सकते हैं .. पर इसमें बहुत रिसर्च होना बाकी है !!