हम ऑटो में बैठे तो उसमें लगे एफएम रेडियो से गाना सुनाई पड़ा "सुहानी रात ढल चुकी ..."।
हम खुश हो गये कि चलो पुराना गाना सुनने को मिलेगा। पर ज्योंही बोल खत्म हुआ कि "धकड़िक फकछक" "धकड़िक फकछक"। ये कौन सा ताल है भाई? और ये क्या? "ना जाने तुम कब आओगे" के बदले "ना जाने तुम कब आओगे"? ये "आओगे" से जाओगे" कैसे हो गया?
गम्भीर अर्थ लिये हुए गानों के साथ बेमेल ताल और बीच-बीच में कुछ भी समझ में न आने वाले अंग्रेजी बोल। ये हैं आज के रीमिक्स गाने। धकड़िक फकछक धकड़िक फकछक .... दम्म दम्म ...। ये हैं आज के ताल। हमें तो ऐसा लगता है कि कोई सर के ऊपर हथौड़ा मार रहा है। पर किया ही क्या जा सकता है? यही आज की पसंद है।
क्या ये रीमिक्स दूसरों की संपत्ति पर दिन दहाड़े डाका नहीं है? एक डाकू क्या करता है? केवल दूसरों की संपत्ति को लूट खसोट कर अपना करार देने के सिवाय? आज पुराने गानों का रीमिक्स बनाने वाला भी लुटेरों की श्रेणी में ही तो आता है। उसके भीतर इतनी कल्पनाशीलता तो होती ही नहीं है कि कोई नई यादगार धुन का निर्माण कर सके, हाँ, दूसरों के द्वारा परिश्रम करके बनाये गये सुरीले धुनों को विकृत अवश्य कर सकता है।
आपको जानकारी होगी कि पुराने लोकप्रिय गीतों की रचना का श्रेय किसी एक व्यक्ति ने कभी भी नहीं लिया क्योंकि वे गीत सामूहिक परिश्रम के परिणाम थे। आज भी यदि आप में से किसी के पास पुराने गीतों के रेकार्ड (लाख या प्लास्टिक का तवा) तो आप उस पर छपे हुये विवरण में पढ़ सकते हैं कि गायक/गायिका - अबस, संगीत निर्देशक - कखग, गीतकार - क्षत्रज्ञ आदि आदि इत्यादि। मेरे कहने का आशय यह है कि एक फिल्मी गीत की संरचना किसी व्यक्तिविशेष की नहीं होती।
फिर इतने लोगों के परिश्रम से बनी संरचना को मनमाने रूप में बदल देने का अधिकार किसी को कैसे मिल जाता है?
एक घटना याद आ रही है। प्रसिद्ध गीतकार शैलेन्द्र ने फिल्म श्री 420 के एक गीत में लिखा था -
"रातों दसों दिशाओं में कहेंगी अपनी कहानियाँ.........."
इसी पर संगीतकार जयकिशन और गीतकार शैलेन्द्र के बीच जोरदार तकरार हो गया था। जयकिशन का ऐतराज था कि दिशाएँ दस नहीं आठ होती हैं और शैलेन्द्र को शब्द बदलने के लिये दबाव डालने का प्रयास किया था। पर शैलेन्द्र अपने बोलों पर अड़े रहे। उन्होंने साफ साफ कह दिया कि तुम्हें धुन बनाने से मतलब होना चाहिये, गीत के बोलों से नहीं। गीत लिखना मेरा काम है और मैं जानता हूँ कि मुझे क्या लिखना है, यदि धुन बना सकते बनाओ अन्यथा किसी और से गीत लिखवा लो।
तात्पर्य यह कि वे गीतकार इतने स्वाभिमानी थे कि अपने लिखे गीत के एक शब्द में जरा भी परिवर्तन सहन नहीं कर पाते थे। (हमारे यहाँ पृथ्वी और आकाश को भी दिशा ही माना गया है और इस प्रकार से वास्तव में दस दिशायें ही होती हैं।)
हमारा प्रश्न यह है कि रीमिक्स बनाने वालों को गाने के ताल को बदलने के साथ ही साथ गीतकार के शब्दों को बदलने का अधिकार किसने दे दिया?
जिन गानों के रीमिक्स आज बन रहे हैं उनके गीतकार, संगीतकार, गायक, री-रेकार्डिंग तकनीशियन आदि में से प्रायः बहुतों का स्वर्गवास हो चुका है। क्या उनकी आत्मा इन रीमिक्स गानो को सुनकर रोती नहीं होंगी?
6 comments:
जय हो गुरुदेव
दि्शाएं द्स ही होती हैं
लेकिन दिशाहीन चौराहे पर ही खड़ा रहता है।
रिमिक्स ने इतनी चोरी की है कि चोरी
अब चौर्यकर्म होकर सम्मान जनक स्थान पा रही है।
जय हो
फ़िल्म इंडस्ट्री में ज्यादातर लोग आजकल पुराने माल पर ही हाथ साफ़ कर रहे है, नया रचनात्मक तो कुछ है ही नहीं उनके पास !
गुरूदेव ये फक्क फक्क का ये कहि के चमक गे रेंहेंव.
हा हा. ये एफएम हा तो मनोरंजन के नाम म गीत संगीत अउ हमर भाखा के कबाडा कर दे हे. जय हो साहेब, बंदगी.
पुराने गानों के साथ रिमिक्स के नाम पर सामूहिक बलात्कार हो रहा है और मज़े की बात ये है कि कोई रोकने-टोकने वाला नही है।
होगे हे अलकर गीत संगीत
होगे हे अलकर बोली
बन गे हे सिद्धांत इनखर सिरफ
अब इसने च नाच अउ गा के भैया
भरबो अपन झोली
काय करबे अवधिया जी
टुकुर टुकुर निहारत रह, अउ इसने एमा गोहारत रह
जय जोहार ......
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति ।
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