कोई नया ब्लोगर आया और शुरू हो गया धूम-धाम के साथ उसका स्वागत्। दौड़-दौड़ कर पुराने ब्लोगर्स आने लग जाते हैं टिप्पणी कर के उसका स्वागत करने के लिये। उसने क्या लिखा है यह पढ़ें या न पढ़ें किन्तु स्वागत जरूर करेंगे। क्यों ना करें भाई स्वागत्? आखिर नये ब्लोगर के आने से ब्लोगर कुनबा में सदस्य तो बढ़ेगा ही, एक और टिप्पणीकर्ता मिलेगा ही। उसके लेखन से भाषा, समाज, देश का कुछ हित हो रहा है या नहीं इससे हमें भला क्या मतलब है? हमें तो मतलब है सिर्फ उसका स्वागत् करने से।
खैर नये ब्लोगर की स्वागत् की यह प्रथा तो बहुत पहले से ही चली आ रही है पर अब एक नई प्रथा ने जन्म लिया है जाने वाले ब्लोगर को विदाई देने का।
अच्छी प्रथा है! विदाई के रूप में मगरमच्छ के आँसू भी बहा लिये और मन ही मन खुश भी हो लिये कि चलो एक प्रतिद्वन्दी से तो जान छूटी, नाक में दम कर रखा था साले ने? हमसे आगे निकल जाना चाहता था ब्लोगरी में।
25 comments:
चलो एक प्रतिद्वन्दी से तो जान छूटी, नाक में दम कर रखा था साले ने?
सही कहा है।
भीम पु्त्र घटोत्कच
ललित जी का फैसला समझ नहीं पाया मगर आपका ही एक पुराना लेख याद आ रहा है कि लोग आते क्यों है और जाते क्यों है ? आते चुपचाप है और जाते बैंड-बाजे के साथ है ! भाई अवधिया साहब हम तो आपको ही फोलूव कर रहे है कि हम कहीं नहीं जायेंगे :)
और डटा हुआ है तो टिप्पणी दो, टिप्पणी लो।
विदाई के रूप में मगरमच्छ के आँसू भी बहा लिये और मन ही मन खुश भी हो लिये कि चलो एक प्रतिद्वन्दी से तो जान छूटी, नाक में दम कर रखा था साले ने? ....
सीधी...खरी एवं निष्पक्ष बात
अवधिया जी,
व्यस्तता की वजह से जाने वाले ब्लॉगरों की बात अलग है, लेकिन यदि दिल टूटने की वजह से, अथवा "आहत"(?) होने की वजह से ब्लॉगिंग जगत से जाते हैं तो निश्चित ही वे ब्लॉगिंग का सही मकसद नहीं समझ पाये हैं और "कोमल चमड़ी" के हैं। ब्लॉगिंग में टिके रहने की सबसे पहली दो शर्ते हैं -
1) जो मेरे मन में आयेगा मैं लिखूंगा, जिसे जो उखाड़ना हो उखाड़ ले…
2) किसी के कुछ कहने, टिप्पणी करने, गाली बकने की वजह से मैं इधर से जाने वाला नहीं, और यदि गया भी तो तमाम गालियाँ, लानतें, उलाहने… मय ब्याज के वापस करके ही जाऊंगा…
जो व्यक्ति ब्लॉग जगत में इन दो नियमों का पालन करने की क्षमता रखेगा, वही टिकेगा। वरना भारतीय मेंढक तो टाँग खींचने में कोई कसर बाकी नहीं रखेंगे… (आशा है कि ललित भाई अपनी गलतफ़हमियाँ दूर करेंगे, तथा मेरी यह सलाह नवोदित ब्लॉगर गाँठ बाँध लेंगे)… :)
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नोट - किसी को यह सलाह पसन्द नहीं आई हो तो उसे जो उखाड़ना हो उखाड़ ले… :) :) :) (आगे 20 स्माईली और जोड़ें)…
@ घटोत्कच
नाक तो दमदार ही होनी चाहिए
बेदम होने से क्या मिलेगा
SAHI HE
NICE
http://kavyawani.blogspot.com/
SHEKHAR KUMAWAT
सुरेश जी से सहमत!!
1) जो मेरे मन में आयेगा मैं लिखूंगा, जिसे जो उखाड़ना हो उखाड़ ले…
2) किसी के कुछ कहने, टिप्पणी करने, गाली बकने की वजह से मैं इधर से जाने वाला नहीं, और यदि गया भी तो तमाम गालियाँ, लानतें, उलाहने… मय ब्याज के वापस करके ही जाऊंगा…
जो व्यक्ति ब्लॉग जगत में इन दो नियमों का पालन करने की क्षमता रखेगा, वही टिकेगा।
@ हम भी सुरेश जी के इन दोनों नियमो में १००% विश्वास रखने वाले है |
suresh ne keh diyaa baaki kyaa rahaa ???!!!!!!!!!!!!!
बहुत ही सही चल रहा है ब्लॉगिन्ग का काम।
"उसके लेखन से भाषा, समाज, देश का कुछ हित हो रहा है या नहीं इससे हमें भला क्या मतलब है? हमें तो मतलब है सिर्फ उसका स्वागत् करने से।"
"1) जो मेरे मन में आयेगा मैं लिखूंगा, जिसे जो उखाड़ना हो उखाड़ ले…
2) किसी के कुछ कहने, टिप्पणी करने, गाली बकने की वजह से मैं इधर से जाने वाला नहीं, और यदि गया भी तो तमाम गालियाँ, लानतें, उलाहने… मय ब्याज के वापस करके ही जाऊंगा…"
और ब्लोग जगत मे नवागन्तुको की बात तो छोड़ दीजिए, वरिष्ठ ऊपर लिखी बातें लिखें, सब जायज है। यदि इन सब बातों से छुटकारा पाना हो तो ब्लोग तकनीक के जनक को सलाह दी जावे कि लेखन के लिये कुछ मान्दण्ड हो और वह मानदण्ड प्रबुद्ध वर्ग द्वारा तैय्यार कर भेजा जावे। यहाँ ज्यादातर "पल भर के लिये कोई टिप्पणी भेज दे झूठी ही सही" की लालसा लिये होते हैं। किसी का स्वागत हुआ, एक्स्चेन्ज आँफ़र शुरू। फिर कौन देखता है पढ़कर।
nice
हम तो आये ही इसलिए थे कि हमारे मन की बात लिखनी है और पूरी लिखेंगे....जिसको उखाङना हो.....मैं तो लिखूंगा मेरी मर्जी
इस बार आपके विचारों से सहमत नहीं। आप मेरे ब्लॉग पर टिप्पणी करेंगे इस लिए यहां नहीं आता। आपके आलेख को पढना अच्छा लगता है इस लिए आता हूँ। शायद ही पिछले दो-चार महीने में आपने ... मेरे ब्लॉग पर टिप्पणी की हो।
......
घर कोई मेहमान आए तो उसे सिर्फ़ इस लिए गले मिलते हैं कि वह गिफ़्ट लेकर आया है?!
नवागन्तुक के स्वागत में कृपया स्वार्थ न देखें।
अवधिया जी,
बात तो ठीक है किन्तु प्रतिक्रियाओं में यह गलफहमी सामने आ रही है कि
विदाई के रूप में मगरमच्छ के आँसू भी बहा लिये और मन ही मन खुश भी हो लिये कि चलो एक प्रतिद्वन्दी से तो जान छूटी, नाक में दम कर रखा था साले ने?
यह वाक्यांश छत्तीसगढ़ के किसी ब्लॉगर की ओर इशारा कर रहा है
मैं यहाँ स्पष्ट करने की मंशा से आया हूँ कि ललित शर्मा प्रकरण में इस पोस्ट का छत्तीसगढ़ के किसी ब्लॉगर की ओर इशारा नहीं है बल्कि बात हो रही है सूदूर प्रदेश के किसी बुज़ुर्ग ब्लॉगर की
मनोज जी,
मेरा मन्तव्य कदापि यह नहीं है कि किसी का स्वागत् न करें, स्वागतेय का स्वागत् करें और अवश्य करें किन्तु स्वार्थवश नहीं बल्कि हृदय से। किन्तु मुझे लगता है कि हमारे ब्लोग जगत में प्रायः स्वार्थवश ही स्वागत् होता है (यह भी हो सकता है कि मेरी यह धारणा गलत हो)।
जान कर अच्छा लगा कि आप मुझे पढ़ने आते हैं! आपकी असहमति जानकर भी अच्छा लगा मुझे। मेरे प्रत्येक विचार से आपका सहमत होना न तो आवश्यक है और न ही सम्भव। "मुण्डे मुण्डे मतिर्भिन्ना"।
आशा है कि प्रेमभाव बनाये रखेंगे।
पाबला जी,
आपने बहुत सही स्पष्टीकरण किया है। स्पष्टीकरण के लिये बहुत बहुत धन्यवाद!
हा हा हा अवधिया जी ...नए ब्लोग्गर्स का स्वागत करने ...ये कौन करने लगा ..ये तो सबसे जरूरी है जो नहीं हो पा रहा है वैसे हमारे मुकाबले तो खूब हो रहा है ..अपनी शुरूआत में तो टिप्पणी आने के लिए बाकायदा मनौती माननी पडी थी ..समाचार बता रहे हैं कि इस साल गर्मी कुछ ज्यादा ही पड रही है .........वो बिल्कुल ठीक कह रहे हैं
अजय कुमार झा
पहिले हम भी परेशान हो गए थे...सोचने लगे थे मारो गोली...कौन खरीद के मुसीबत लेवे ....
लेकिन अब अवधिया भईया की बात पढ़कर लगा है कि डटें रहेंगे मैदान में....
थेथर बनके....
काम्पिटिशनवा में तो हइये हैं...
हाँ नहीं तो...
आते हैं लोग, जाते हैं लोग,
पानी के जैसे रेले,
आते हैं याद, जाने के बाद,
सिगनल हुआ के निकली,
देखो वो आ रही है,
देखो वो जा रही है,
गाड़ी बुला रही है,
सीटी बजा रही है,
चलना ही ज़िंदगी है,
हमको सिखा रही है,
गाड़ी बुला रही है...
जय हिंद...
bhai aisa hai ki jise likhna hai vo likhega hi kynki vo yaha sirf likhne hi aaya hai (to)....
baki log kuchh bhi kahte rahein kise kya fark padta hai,
ab jaise paabla jee ne upar comment me kaha,
mujhe nahi lagta koi sudur pradesh ka sudur blogger itna tension leta hoga kisi ek blogger ke nam se, yar sabke paas kam dhandha hai, kis ke paas itna time hoga ki ye sab faltu batein sochein....
jinke paas kaam dhandha nai hoga, 24 me se 48 ghante free honge vahi iin sab loche me padaa rahgea,.....pahle kam........kaam jaruri hai, blog to 2nd ya 3rd ya fir 4th ya fir na jane kaun se no pe aata hai...
jinke liye blog 1st ya 2nd no pe aata hai vo log mahan hi nahi balki ati mahan hai,.......
aur ve aise hi mahan bane rahein.....aur lage rahe inhi sab bato me........
apan to thaske se jo likhna hai likhenge, jise jo ukhadna hai ukhad le, suresh chiplunkar jee style me ;)
नये नये ब्लॉगर्स के लिये बहुत मह्त्व्पूर्ण और आव्श्यक जानकारी है इस पोस्ट में ।वे अव्श्य ही इस से लाभांवित होंगे और हिन्दी ब्लॉगिंग को सही दिशा की ओर ले जायेंगे ।
इस ट्यूटोरियल के लिये बहुत आभार आपका. वाकई यह मार्गदर्शक पोस्ट है.
रामराम.
बहुत ही सही चल रहा है ब्लॉगिन्ग का काम।
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