टिप्पणियाँ पाना भला किसे अच्छा नहीं लगता? ऊपर-ऊपर से भले ही हम कहें कि हम टिप्पणियों की परवाह नहीं करते पर जब हम अपने भीतर झाँकते हैं तो लगता है कि हमें भी टिप्पणियाँ पाने में खुशी होती है। हिन्दी ब्लोगिंग में टिप्पणियों के महत्व को इतना बढ़ा-चढ़ा दिया गया है कि प्रतीत होने लगा है कि हिन्दी ब्लोगिंग का मुख्य उद्देश्य मात्र टिप्पणी पाना ही है। हिन्दी ब्लोगरों के प्राण टिप्पणियों में ही बसते हैं। अधिकतर ब्लोगर जिन्हें टिप्पणियाँ नहीं मिलतीं या कम टिप्पणियाँ मिलती हैं, स्वयं को अधमरा सा महसूस करने लगते हैं क्योंकि नामी-गिरामी, बड़े तथा नंबर एक ब्लोगर वे ही माने जाते हैं जिनके पोस्टों में टिप्पणियों के अंबार लगे रहते हैं।
यदि आपने अच्छी पोस्ट लिखी है तो हो सकता है कि दो-चार टिप्पणियाँ बिना किसी प्रयास के मिल जायें किन्तु ढेर सारी टिप्पणियाँ बिना तिकड़म के मिलना मुश्किल ही नहीं असम्भव है। अब ये तिकड़म क्या होते हैं यह मत पूछियेगा। यदि पूछेंगे तो भी आपको जवाब नहीं मिलने वाला क्योंकि सभी के अपने-अपने तिकड़म होते हैं जो कि उनके बिजनेस सीक्रेट्स होते हैं। अक्सर छोटे-मोटे तिकड़म तो हम भी भिड़ाते हैं पर कल हमने अपने पोस्ट "वैदिक कर्मकाण्ड के सोलह संस्कार" के लिये कुछ भी तिकड़म जानबूझ कर नहीं भिड़ाया क्योंकि हम जानना चाहते थे कि क्या ऐसे भी कुछ लोग हैं जो सोलह संस्कारों को जानने की रुचि रखते हैं। नतीजा यह हुआ कि पोस्ट पूरी तरह से पिट गई। पसन्द के नाम पर शून्य रहा वह पोस्ट पर सौभाग्य से चार टिप्पणियाँ मिल गईं। किन्तु हम जानते हैं कि हमारे इस पोस्ट की उम्र मात्र चौबीस घंटे ना होकर बहुत लंबी है और ऐसे पाठक, जिन्हें सोलह संस्कारों के विषय में जानने की रुचि होगी, हमेशा सर्च इंजन से खोज कर आते रहेंगे हमारे इस पोस्ट में।
कभी-कभी संयोग से बिना तकड़म भिड़ाये भी अच्छी-खासी टिप्पणियाँ मिल जाती हैं क्योंकि हिन्दी ब्लोगिंग भी हिन्दी फिल्मों जैसा है जहाँ पर अच्छी फिल्में पिट जाती हैं और "जै संतोषी माँ" जैसी फिल्में सालों तक बॉक्स आफिस में हिट बनी रह जाती हैं। किन्तु ऐसा बार-बार नहीं बल्कि कभी-कभार ही होता है।
विषय आधारित ब्लोग्स को या तो टिप्पणियाँ मिलती ही नहीं हैं या फिर नहीं के बराबर मिलती हैं, शायद यही कारण है कि हिन्दी में विषय आधारित ब्लोग बनाने का चलन नहीं के बराबर है। हम तो सोचते थे कि ब्लोगिंग का उद्देश्य समाज, भाषा साहित्य आदि की सेवा करते हुए स्वयं का भी कल्याण करना है और इसीलिये हमने "संक्षिप्त वाल्मीकि रामायण" जैसा विषय आधारित ब्लोग बनाया था। किन्तु आजकर जिस प्रकार से टिप्पणियाँ पाने के लिये के लिये घमासान मचा हुआ है उसे देखकर लगता है कि हमारी सोच बिल्कुल गलत है और ब्लोगिंग का उद्देश्य महज टिप्पणियाँ बटोर कर आत्म-तुष्टि पाना ही है। "संक्षिप्त वाल्मीकि रामायण" अब अपनी समाप्ति की ओर है। इसके समाप्त होने पर हमने तुलसीकृत "रामचरितमानस" की पर ब्लोग बनाने का निश्चय किया था किन्तु अब इस विषय में सोचना पड़ेगा।
पुनश्चः कभी कभी हिन्दी ब्लोगिंग की दशा देखकर इतनी निराशा छा जाती है कि नकारात्मक बातें सूझने लगती हैं किन्तु रंजन जी की टिप्पणी ने मुझे संबल प्रदान किया है और मैं "रामचरितमानस" पर ब्लोग अवश्य बनाऊँगा।
24 comments:
इसके समाप्त होने पर हमने तुलसीकृत "रामचरितमानस" की पर ब्लोग बनाने का निश्चय किया था किन्तु अब इस विषय में सोचना पड़ेगा...
आप भी?
आपकी बात से १०० % सहमत हूँ , मैंने अपने ब्लॉग के मार्फ़त हमेशा लोगो को नई नई जानकारी देने का प्रयास किया है ............पर जब जब मैंने कोई ऐसी पोस्ट लगाई है जिसमे किसी दुसरे ब्लॉगर का जिक्र हो...........या कोई विवादित मुद्दा हो तब ही टिप्पणियां ज्यादा आई है नहीं तो वही चुनिन्दा ४-६ |
@ रंजन
रंजन जी, "रामचरितमानस" पर ब्लोग तो मैं बनाऊँगा ही। पर कभी कभी हिन्दी ब्लोगिंग की दशा देखकर इतनी निराशा छा जाती है कि ऐसी बातें आ ही जाती हैं मन के भीतर।
आपका मुझपर इतना अधिक विश्वास है यह जानकर बड़ी प्रसन्नता हुई और विश्वास रखिये कि मैं आपके विश्वास का सम्मान करूँगा।
आप की बात काफी हद तक सही है....लेकिन आप अपना कार्य जारी रखे...पोस्ट पर अधिक टिप्पणीयों का यह मतलब नही है कि वह अधिक पढ़ी जाती है...रवि जी का "रचनाकार" देखें...टिप्पणीयां ना के बराबर आती हैं....लेकिन शायद यही ब्लॉग सब से ज्यादा पढ़ा जाता है.
खैर, ऐसा भी नहीं है अवधिया साहब , कुछ चीजे इंसान अपनी रोचकता के हिसाब से भी देखता पढता है ! औरों की तो मैं नहीं जानता मगर अपनी सच कहूँ तो उस विषय में रूचि है ही नहीं , उसकी एक वजह यह भी है कि इन पुराणों, प्राचीन ग्रंथो से यदि पूरे नही तो कुछ-कुछ हम लोग पहले से वाकिफ है , यह भे एक वजह हो सकती है ! सही कहता हूँ कि आपका ब्लॉग पर वह लेख मैंने सिर्फ एक ही पढ़ा था , जबकि आप उस विषय पर हर रोज लिखते है !
गोदियाल जी, आपका कथन बिल्कुल सत्य है कि आदमी अपनी रुचि के अनुसार ही पोस्ट पढ़ता है। राजनीति में रुचि ना होने के कारण मैं भी आपके बहुत से पोस्टों को नहीं पढ़ता। किन्तु आप मेरी बात को व्यक्तिगत रूप से ना लें, मैंने अपनी बात सामान्य रूप से कही है।
nice
... सत्य है !!
अरे अरे, आप ऐसा मत सोचिये. यह तो आप इतना उम्दा कार्य कर रहे हैं कि हमेशा ही काम आयेगा.
आप निश्चित ही रामचरित मानस वाला प्रोजेक्ट करियेगा. हम इन्तजार करेंगे.
आज टिप्पणी मिले न मिले, आने वाली पीढ़ियाँ हमेशा आभारी रहेंगी, विश्वास जानिये.
जहाँ तक मैं समझ पाया हूँ टिप्पणियाँ सिर्फ ब्लोगर ही करते है सर्च इंजन से आने वाले पाठक यदा कदा ही टिप्पणियाँ करते है उन्हें न तो टिप्पणीं के महत्त्व का पता होता और न ही वे इस बबाल में पड़ना चाहते |
हाँ ये पाठक अपनी रूचि का मसाला खोजते हुए आपके ब्लॉग पर पहुँचते है और आपके लिखे का पूरा मजा लेते है |
asaa he insan ko apna karm karna chhiye fal ki chinta nahi
wo bat alag he ki mujhe filhal fal chahiye kyun ki bhukh lagi he
or gar jana he
shukriya is post ke liye
mujhe viswas he me kuch sikh paunga is post se
tippani jo bhi kare sarth kare
अवधिया जी ,मुझे याद नही कि मैने कभी आपकी किसी पोस्ट पर टिप्पणी की या नही .....पर इसका मतलब ये नही है मै आपकी पोस्ट नही पढती....मुझे ये भी पता है कि बाली जी "साधना"नामक ब्लोग पर कबीर जी के श्लोक लिखते है ....मैने अपनी दादी के सानिध्य मे कई धार्मिक पुस्तके पढी थी ..जिनमे रामचरितमानस,शिवपुराण,गोपालसहत्रनाम,रामरक्शास्त्रोत्र ..प्रमुख थी ...पर कभी अपने बच्चों को नही पढवा सकी ...अगर आप जैसे लोग इन ग्रन्थॊं के बारे मे कुछ लिखते है तो क्या सिर्फ़ टिप्पणी के लिए ??? मुझे नही लगता.....आशा है आप रामचरितमानस के बाद भी ....जारी रखेंगे ....ताकि कोई-न कोई पढ सके,जो अपने बडो के सानिध्य से वन्चित रह गया हो......
भाई रामचरितमानस पर काम शुरु कीजिए, हम आपके साथ हैं और टिपियाने वालों की काहे फ़िक्र करते हैं भाई।
आप अपने द्रिढ निश्चय पर कायम रहें। हमे भी कुछ ग्यान प्राप्त हो जायेगा। और रही बात टिप्पणी की, तो इस ब्लोग जगत मे इसकी लालसा से कोई अछूता नही होगा। मगर आप बने उठाथौ कोनो विषय ला भी हो। बने लागथे।
निर्मल हास्यानंद महाराज नें कहा है कि आज से जिनके भी ब्लॉग पर बीस से ज्यादा टिप्पणियां पाई जायेगी गुगल बाबा उसके ब्लॉग को बैन करने वाले हैं.
गुरूदेव मैनें पहले भी कहा है अब भी कहता हूं नेट में आपके द्वारा किया जा रहा हिन्दी सेवा का कार्य प्रशंसनीय हैं, तीसमारखॉं ब्लॉगर आज टिप्पणी भले पा जांए पर भविष्य में पाठक सर्च इंजन से ही आयेंगें और हा हा ही ही, चड्डी कच्छा खरीदने के लिए भी सलाह के लिए पोस्ट लगाने वाले स्टार ब्लॉगरों, शब्दों की तांगें तोडमरोड कर बनी कविता में आह वाह करने वाली टिप्पणियों से बहार चार दिनों के लिए ही होगा.
येल्लो कल्लो बात
हम बहुत विलंब से पहुंचे
आप इतना बढिया पोस्ट लिखे है फ़िर भी टिप्प्णी कम है। उपर शीर्षक देखकर ही लोग समझ लिए की आज अवधिया जी का टिप्पणी जुगाड़ फ़े्ल करना है।
हा हा हा
जोहार ले
सहमत है आप सब से जी
टिप्पणी करने से पहले उसका ध्ययन करना पड़ता है और समझ में आना भी जरूरी है. टिप्पणी करने से किसी विषय में कुछ लिखने की आदत बन जाती है जिससे कुछ न कुछ तो लेखन में सुधर होता ही है. पोस्ट ही नहीं टिप्पणी भी अच्छे लेखक की पहचान होती है.अतः ऐसा नहीं है कि सभी अधिक से अधिक टिप्पणी पाना चाहते हैं.
कल दिनभर नैट से दूरी के चलते हम तो आपकी कल वाली पोस्ट पढ ही नहीं पाए...आज आकर पहले तो उस पोस्ट को पढा...बहुत ही ज्ञानवर्धक पोस्ट लिखी आपने...हमने भी महसूस किया है कि यहाँ धीर गम्भीर ज्ञानआधारित लेखन की वो कद्र नहीं.. बजाय इनके लोग हल्के फुल्के, चटपटे लेखन में अधिक रूचि लेते हैं...बाकी तो सबकी अपनी रूचि की बात है.
ये दुनिया (टिप्पणियां) अगर मिल भी जाए तो क्या है...
जय हिंद...
आप की बात काफी हद तक सही है....लेकिन आप अपना कार्य जारी रखे...पोस्ट पर अधिक टिप्पणीयों का यह मतलब नही है कि वह अधिक पढ़ी जाती है
आप की बात काफी हद तक सही है....लेकिन आप अपना कार्य जारी रखे...पोस्ट पर अधिक टिप्पणीयों का यह मतलब नही है कि वह अधिक पढ़ी जाती है
अवधिया जी आप अपना काम जारी रखें हम पढ रहे हैं टिप्पणी कर रहे हैं जो भी ब्लागवाणी पर पोस्ट दिखती है। ापकी पोस्ट दिखे सही हम भागे चले आते हैं शुभकामनायें
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