Tuesday, May 4, 2010

नापसन्द बटन याने कि बन्दर के हाथ में उस्तरा

कितना लिखें इस नापसन्द के बारे में? अब तो इस विषय में लिखने के लिये हमारी लेखनी भी सकुचाती है। वैसे भी नापसन्द के विषय में बहुत से लोगों के विचार पोस्ट और टिप्पणियों के माध्यम से आ ही चुके हैं। इतना होने के बावजूद भी हमें इस विषय में लिखना ही पड़ रहा है क्योंकि यह नापसन्द बटन कुछ विघ्नसन्तोषियों के लिये वरदान सिद्ध हो रहा है।

भले ही ब्लोगवाणी ने नापसन्द बटन को इसके सदुपयोग के लिये बनाया होगा किन्तु इस बटन का सदुपयोग तो आज तक कहीं नजर नहीं आया, दिखाई देता है तो सिर्फ इसके दुरुपयोग ही दुरुपयोग। डॉ. श्रीमती अजित गुप्ता, पं.डी.के.शर्मा"वत्स", प्रशान्त प्रियदर्शी जैसे और भी कई अन्य ब्लोगर्स, जो बगैर किसी के निन्दाचारी किये सामान्य पोस्टें लिखते हैं, के पोस्टों पर भी नापसन्द के चटके लग चुके हैं। और तो और ब्लोगर्स के जन्मदिन दर्शाने वाले ब्लोग पर प्रायः ही नापसन्द का चटका पाया जाता है, पता नहीं किन लोगों को ब्लोगर्स के जन्मदिन भी नापसन्द हैं?

कल तो हमारा पोस्ट "क्या आपने कभी आलू, प्याज, टमाटर के विज्ञापन देखे हैं?" ब्लोगवाणी में प्रकाशित होते ही फटाफट दो नापसन्द के चटके लग गये उस पर जबकि हमने उस पोस्ट में ऐसी कोई बात नहीं लिखी थी जिसे कोई भला आदमी नापसन्द कर पाये। ऐसा लगा हमें कि ये नापसन्दीलाल लोग इन्तिजार करते हुए बैठे थे कि कब हमारा पोस्ट प्रकाशित हो और हम उस पर नापसन्द का चटका लगायें। वैसे इन लोगों के नापसन्द करने से हमें कोई फर्क नहीं पड़ता क्योंकि हम तो नापसन्द के इन चटकों से निरुत्साहित होने से रहे, उलटे हम और उत्साहित हो कर दस बीस और पोस्ट लिख दें और कहें कि करो नापसन्द जितना कर सकते हो। तुम जितना नापसन्द करोगे उससे दुगुना हम पोस्ट लिख देंगे।

हमारे विचार से तो कुल मिला कर यही कहा जा सकता है कि खुन्नस रखने वालों के लिये नापसन्द का यह बटन "बन्दर के हाथों उस्तरा" ही साबित हो रहा है।

23 comments:

Yashwant Mehta "Yash" said...

अब तो इस विषय में लिखने के लिये हमारी लेखनी भी सकुचाती है। वैसे भी नापसन्द के विषय में बहुत से लोगों के विचार पोस्ट और टिप्पणियों के माध्यम से आ ही चुके हैं।
फिर भी एक पोस्ट लिख ही डाली......ha ha ha
जाने दीजिये नापसन्दी लालो को......आप बस लिखते रहिये

Khushdeep Sehgal said...

बन्दर के हाथों उस्तरा...

अवधिया जी, अब मैं आगे की बात बताता हूं...नापसंद करने के बाद ये विघ्नसंतोषी खुशी से लाल हो जाते हैं, मुंह से नहीं कहीं और से...शायद इन्हीं जैसों के लिए किसी ने खूब कहा है...

खुदा की देखो ये कैसी खुदाई,
बंदरों की बैक पर लिपिस्टिक लगाई...

जय हिंद...

शिवम् मिश्रा said...

बकायेदा अल्कयेदा के हाथ में atom bomb कहिये साहब !!

अन्तर सोहिल said...

आदरणीय नमस्कार
क्या नापसन्द करने से लेखक को कोई नुक्सान भी होता है? मैं ब्लागवाणी पर दो-चार बार ही गया हूं। मुझे इस बारे में ज्यादा जानकारी नही है। कृप्या यह भी बतायें कि ब्लागवाणी से मुझे जो पासवर्ड मिला है, उसका कहां और क्या प्रयोग होगा?

प्रणाम

Yashwant Mehta "Yash" said...

सूत्रों से प्राप्त सुचना के अनुसार ताऊ का गधा रामप्यारे उर्फ़ प्यारे, नापसन्दी लालो की खबर लेने निकला हैं..........

Anonymous said...

मुझे याद नहीं किसने लिखा था किन्तु मैं उस सुझाव से सहमत हूँ कि यह पसंद-नापसंद करने वाला बटन ब्लॉग पोस्ट पर होना चाहिए, ब्लॉगवाणी पर नहीं।

बेशक उस पसंद-नापसंद की संख्या को ब्लॉगवाणी पर प्रदर्शित किया जाए।

हालांकि इसकी परवाह मुझे नहीं है क्योंकि (ब्लॉगवाणी की) नापसंदगी का तो रिकॉर्ड है मेरी पोस्ट पर। वह भी तब, जब मेरे किसी ब्लॉग पर यह बटन नहीं :-)

बी एस पाबला

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

अवधिया साहब , बुरा मत मानियेगा एक बात पूछनी है ( बैकग्राउंड में वो इ-मेल आपको याद होगा ) ! कुछ दिनों से देख रहा हूँ कि आप अनेक भाई-बंधों ने इस पर कई पोस्ट लिख डाली मगर किसी ने अभी तक यह नहीं बताया कि इसका उसपर जिसकी नेगेटिव मार्किंग हुई है अथवा उसके लेख पर क्या बुरा प्रभाव इससे पड़ने वाला है ? कोई हमें ये भी तो बताये कि इसके इम्पेक्ट क्या है ?

Unknown said...

@ पी.सी.गोदियाल

जिस लेख पर निगेटिव्ह मार्किंग होती है उस पर बहुत प्रभाव पड़ता है गोदियाल जी। आप पोस्ट क्यों लिखते हैं? इसलिये ना कि आपके पोस्ट को अधिक से अधिक लोग पढ़ें और आपके विचारों को जानें। किन्तु लोग जानेंगे कैसे आपके पोस्ट के विषय में? हिन्दी में तो सर्च करने का भी चलन अभी नहीं के बराबर है। अधिकतर लोग, भले ही वे ब्लोगर्स क्यों ना हों, आपके पोस्ट के विषय में ब्लोगवाणी और चिट्ठाजगत जैसे एग्रीगेटर के माध्यम से ही जानते हैं। यदि आपके पोस्ट को ब्लोगवाणी के हॉट लिस्ट में स्थान मिल जाता है तो सामान्य से चौगुने लोग आपके पोस्ट में आते हैं क्योंकि आपका पोस्ट एग्रीगेटर में चाहे कितने ही पेज पीछे क्यों ना चला जाये, हॉट लिस्ट में पहले पेज पर ही दिखाई देता है। जहाँ पसन्द किसी पोस्ट को हॉटलिस्ट में ऊपर की ओर चढ़ाता है वहीं नापसन्द उसे नीचे ढकेलते जाता है और अनेक बार तो हॉटलिस्ट में आने से ही रोक देता है और आपके पोस्ट में आने वाले लोगों की संख्या कम हो जाती है।

विवाद फैलाने वाले, घृणा पैदा करने वाले या पूर्वाग्रह से प्रभावित पोस्टों को नापसन्द करना बेशक जायज है किन्तु सिर्फ ब्लोगर के प्रति दुराग्रह रखकर ही किसी के पोस्ट को नापसन्द किया जाये यह कहाँ तक उचित है? क्या अपने किसी साथी ब्लोगर के जन्मदिन की जानकारी नापसन्द करने के योग्य हो सकती है? किन्तु ऐसी जानकारी को भी नापसन्द किया जा रहा है, वह भी मात्र जानकारी देने वाले ब्लोगर के प्रति दुराग्रह के कारण?

आशा है कि आपको अपने प्रश्न का उत्तर मिल गया होगा।

राज भाटिय़ा said...

अन्तर सोहिल जी, मुझे समझ नही आया कि आप किस पास वर्ड (ब्लागवाणी से मुझे जो पासवर्ड मिला है,) की बात कर रहे है,ऎसा हमे तो कही नही मिला,शायद अवधिया जी ही बतलाये इस बारे कुछ.
अवधिया जी भाई साफ़ बात है नापसंद का चटका तो नापसंद लोग ही लगते है, जेसे चोर ही चोरी करता है, झुठा ही झुठ बोलता है... लेकिन अपून को तो कोई फ़र्क नही पडता जी...

honesty project democracy said...

हमें इन नापसंदियों का पता चल जाय तो हम इनके पोस्ट पर पसंद का चटका जरूर लगायेंगे / क्या पता इससे उनकी ब्रेनमेपिंग में कुछ सुधार हो जाय /

M VERMA said...

पाबला जी के ब्लाग पर जब मैने नापसन्द देखा था तब मुझे भी अच्छा नहीं लगा था और इस सन्दर्भ में मैने भी एक पोस्ट लगायी थी :
http://phool-kante.blogspot.com/2010/04/blog-post_11.html

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

अवधिया साहब, क्या करू मेरा एक्सप्रेस करने का ढंग ही इतना गंदा है कि लोग कुछ का कुछ अर्थ लगा देते है , जैसा कि पहले भी आपकी एक पोस्ट "गरीब और अमीर बच्चों के साथ-साथ पढने " से सम्बंधित पर हो चुका ! आपने जो जबाब दिया, मैं उससे पूर्णतया सहमत हूँ मगर मैं आपसे यह उम्मीद लगा रहा था कि आप जबाब देंगे कि जिस बन्दे की पोस्ट पर ज्यादा नेगेटिव मार्किंग होगी, ब्लोग्वानी उसे बंद कर देगी :) इसी लिए मैंने ब्रेकेट में पुरानी मेल , बैगानी जी - अवधियाजी- गोदियाल ) का सांकेतिक इशारा किया था !

ब्लॉ.ललित शर्मा said...

बहुत अच्छी पोस्ट ....

धन्यवाद

Udan Tashtari said...

लगता है कुछ लोगों की आदत हो गई है नापसंद करना. :)

दिनेशराय द्विवेदी said...

कुछ जन्तुओँ को मैला खाना अच्छा लगता है। हो सकता है वह उन के लिए वह पोष्टिक होता हो।

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" said...

अवधिया जी,जहाँ तक मैं समझ रहा हूँ कि ये नापसन्दी लाल भी हैं तो अपने लोगों में से ही...

फ़िरदौस ख़ान said...

बेहद प्रासंगिक पोस्ट है...
एक पसंद का चटका भी...

कडुवासच said...

...बेहद प्रभावशाली अभिव्यक्ति .... आप से सहमत !!!

शरद कोकास said...

हमने तो अभी तक यह बटन देखा ही नही है ।

Unknown said...

करने दो लोगों को जो करते हैं

आप अपने ध्येय के लिए लगे रहिये

सब ठीक हो जाएगा

ZEAL said...

करने दो लोगों को जो करते हैं

आप अपने ध्येय के लिए लगे रहिये

I agree with Albela ji.

Do your duty reward is not thy concern.

देवेन्द्र पाण्डेय said...

नापसंद का चटका लगाने की क्या आवश्यकता है? पसंद नहीं है तो लिख दो पसंद नहीं है..क्यों पसंद नहीं है लिख दो तो और भी अच्छा, न आता हो, तो भी कोई बात नहीं..पसंद आना कोई ज़रूरी है क्या!
मगर यह क्या कि तुम इतनी मेहनत से पढ़ो, प्रतिकिया दो और हम तुम्हें जान भी ना पायें!
...गन्दी बात है.

संजय बेंगाणी said...

लोग खूश हो कर पसन्द पर चटका लगाते है, कुछ खुश होने के लिए ना पसन्द पर चटका लगाते है...