आज के ग्लैमर के जमाने में "गुरु पूर्णिमा" का महत्व ही भला क्या रह गया है। अधिकतर लोगों को तो यह भी पता नहीं होगा कि गुरु पूर्णिमा कब है क्योंकि आज के लोग अंग्रेजी तारीख को जानते हैं तिथि को नहीं। वैसे भी गुरु-शिष्य परम्परा आज रह ही कहाँ गया है? वह तो प्राचीनकाल में हुआ करती थी जब शिष्य को गुरु के आश्रम में जाकर विद्याअध्ययन करना पड़ता था। आज तो विद्यार्थी पब्लिक स्कूलों में पढ़ाई करते हैं जहाँ गुरूजी नहीं 'सर जी' और 'मैडम जी' हुआ करते हैं। गुरूजी नामक शब्द ही शेष रह गया है आज, वास्तव में गुरूजी तो किसी जमाने से ही दिवंगत हो चुके हैं, शायद इसीलिये कहा गया हैः
गुरूजी गुरू जी चाम चटिया गुरूजी मर गये उठा खटिया...
गुरु ज्ञान दिया करते थे इसीलिये उन्हें सर्वोच्च स्थान दिया गया था, उनका स्थान ब्रह्मा, विष्णु, महेश यहाँ तक कि परमात्मा से भी ऊपर थाः
गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः।
गुरुः साक्षातपरंब्रह्म, तस्मै श्री गुरुवे नमः॥
और
गुरु गोविन्द दोऊ खड़े काके लागूं पाय।
बलिहारीगुरु आपकी गोविन्द दियो मिलाय।।
किन्तु सर जी और मैडम जी शिक्षण और प्रशिक्षण देते हैं जो विद्यार्थी को यंत्रवत बनाते हैं। उनके शिक्षण और प्रशिक्षण का ही प्रभाव है कि आज आदमी मशीन के जैसे कार्य करता है धन कमाने के लिये। और धन कमाने के साथ ही साथ वह बीपी, डायबिटीज, हाइपरटेंशन आदि बीमारी भी कमा लेता है। किसी ने सही ही कहा है किः
"Education makes machines which act like men and produces men who act like machines."
अर्थात् शिक्षा ऐसे यंत्र बनाती है जो मनुष्यवत कार्य करते हैं और ऐसे मनुष्यों का निर्माण करती है जो यंत्रवत कार्य करते हैं।
शायद कबीरदास जी ने भी इसी अर्थ में कहा रहा होगाः
जाको गुरु है आंधरा, चेला खरा निरंध।
अंधे अंधा ठेलिया, दोनो कूप पड़ंत॥
चलते-चलते
कबिरा ते नर अन्ध है, गुरु को कहते और।
हरि रूठे गुरु ठौर है, गुरु रूठे नहि ठौर॥
गुरु कुम्हार सिख कुंभ है, गढ़ि- गढ़ि काढय खोट।
अन्तर हाथ-सहार दय, बाहर- बाहर चोट॥
सब धरती कागद करूं, लेखनि सब बन राय।
सात समुद की मसि करूं गुरु गुन लिखा न जाए॥
यह तन विष की बेलरी, गुरु अमृत की खान।
शीश दिये जो गुरु मिले, तो भी सस्ता जान॥
8 comments:
जय हो, जय हो ..............आज तो आपने आत्मा तृप्त कर दी ! जय हो महाराज जय हो !
जाको गुरु है आंधरा, चेला खरा निरंध।
अंधे अंधा ठेलिया, दोनो कूप पड़ंत॥
सहमत है जी आप से.
धन्यवाद
गुरु का बहुत महत्व है आध्यात्मिक विकास में।
"गुरूजी नामक शब्द ही शेष रह गया है आज, वास्तव में गुरूजी तो किसी जमाने से ही दिवंगत हो चुके हैं." ekdam correct.
बंदउ गुरू पद पदुम परागा ...........
इसका नुकसान तो इस पीढ़ी को उठाना ही होगा ।
गुरुजी गुरुजी संदुक मा
गुरुजी ल मारो बंदुक मा॥
जय हो गुरुदेव
कलयुगी चेला के जोहार ग्रहण करो
एक बेहद उम्दा पोस्ट के लिए आपको बहुत बहुत बधाइयाँ और शुभकामनाएं!
आपकी चर्चा ब्लाग4वार्ता पर है यहां भी आएं!
Post a Comment