(स्व. श्री हरिप्रसाद अवधिया रचित कविता)
नेता बोला अपने कुत्ते से,
"ऐ श्वान बता-
क्या तू मुझसे बढ़ कर पूँछ हिलाता है?
मैं दुम-हीन भले ही हूँ पर,
मेरा टेढ़ा मन दुम कहलाता है।
"कान खोल कर सुन ले कुत्ता,
तू क्या गुर्रायेगा जितना मैं गुर्राता हूँ!
तू क्या जाने पीना और पिलाना,
मैं पीता और पिलाता हूँ।
"तेरी टेढ़ी पूँछ किसी दिन
सीधी भी हो सकती है,
पर मेरे मन की पूछ सदा
टेढ़ी की टेढ़ी ही रहती है।
"ऐ कुत्ता, तू ही क्या-
जन जन मेरा दास बना है,
तुझको तो मैं भोजन देता हूँ
पर जाने क्या क्या मेरा ग्रास बना है।
"मेरे सम्मुख छुटभैया नेता
बिन दुम के पूँछ हिलाते हैं,
हम भी अपने से ऊँचे नेता को
चमचा बन खूब रिझाते हैं।
"वर्ष पाँचवें में मैं
महा नम्र बन जाता हूँ,
नाच नाच कर भीख माँगता,
वोट बहुत पा जाता हूँ।
"फिर तो चांदी काट काट कर
प्रति पल अकड़ दिखाता हूँ,
मेरा मुँह बनता पूँछ तुम्हारी
झूम नशे में इठलालता हूँ।"
सुनता रहा श्वान सब कुछ
फिर धीरे से ली अंगड़ाई,
बोला, "कान खोल कर सुन ले,
ऐ मेरे नेता भाई।
"तू नेता है, मैं कुत्ता हूँ,
पर ईमान सदा ही रखता हूँ,
मस्त जीव हूँ निश्चिन्त हमेशा
तुम जैसों को ही परखता हूँ,
नहीं काटता मैं तुमको भाई,
वरना मैं मैं मर जाऊँगा,
जितना जहर भरा है तुममें,
उतना कहाँ मैं पाऊँगा।"
(रचना तिथिः गुरुवार 05-12-1981)
15 comments:
नहीं काटता मैं तुमको भाई,
वरना मैं मैं मर जाऊँगा,
कटु सच्चाई है, कुत्ते का काटा तो बच भी जाये पर ....
एक सच्ची तस्वीर पेश कर दी है....बढिया रचना।
नहीं काटता मैं तुमको भाई,
वरना मैं मैं मर जाऊँगा,
जितना जहर भरा है तुममें,
उतना कहाँ मैं पाऊँगा।"
समाज को काटता कटाक्ष।
बहुत तीखा व्यंग ....
इससे बेहतरीन कटाक्ष नही हो सकता…………एक कटु सच्चाई है।
कल (2/8/2010) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर अवगत कराइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com
एक सदाचारी प्राणी से सबको सीख लेनी चाहिए ।
बढ़िया लगा कुत्ता पुराण ।
Bahut teekha par sachhi ukti...
Netagiri par gahari sateek chot...
भई वाह , सुन्दर रचना.
एक सटीक रचना !
बोला, "कान खोल कर सुन ले,
ऐ मेरे नेता भाई।
"तू नेता है, मैं कुत्ता हूँ,
अजी आप तो कुत्ते को बेइज्जत कर रहे है, किसी नेता का भाई बता कर, क्योकि जो गुण कुते मै है उन मे एक भी गुण इन कमीने नेताओ मै नही... अच्छा होता किसी सुयर से इन नेताओ का मुकाबला करते, जो जहां से खाते है वही हग भी देते है.
धन्यवाद इस सुंदर ओर व्यंग से भरी कविता के लिये
हरेक नेता में होता है एक कुत्ता ,
हाय एक भी कुत्ते में नहीं होता नेता ....
jhamajham.
कटु सच्चाई है, कुत्ते का काटा तो बच भी जाये पर ....?????????????????
बहुत सटीक कटाक्ष.
बहुत सुन्दर रचना.
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