Wednesday, August 4, 2010

मैं धार्मिक हूँ

(स्व. श्री हरिप्रसाद अवधिया रचित कविता)

मैं धार्मिक हूँ, मैं मार्मिक हूँ,
मत्था टेका करता हूँ,
उग्र कभी बन जाता हूँ तब,
शस्त्र इकट्ठा करता हूँ।

पूजा-घर में हथियारों को,
फूल समझ रख देता हूँ,
रक्त चढ़ा कर गुरु-चरणों में,
नित्य भजन कर लेता हूँ।

ईश्वर का भी सरदार बना,
अकड़ दिखाया करता हूँ,
निरपराध निर्दोषों को मैं,
मार गिराया करता हूँ।

कभी किसी से डरा न करता,
बस सेना से दबता हूँ,
नाम धर्म का ले ले कर मैं,
बिना विचारे लड़ता हूँ।

धर्मात्मा और महात्मा हूँ,
जल्लादों से भी हूँ मैं बढ़ कर,
जल के बदले मदिरा पीता,
झूमा करता हूँ बढ़-चढ़ कर।

(रचना तिथिः शनिवार 14-09-1984)

13 comments:

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

धार्मिक के साथ मार्मिक होते ही सच्चा इंसान बन जाता है ..बहुत भावपूर्ण रचना

प्रवीण पाण्डेय said...

इस धार्मिकता को नमन। सुन्दर पंक्तियाँ।

ब्लॉ.ललित शर्मा said...

बहुत सुंदर कविता है हरिप्रसाद जी की
पढवाने के लिए आभार

जोहार ले

सुज्ञ said...

अज्ञानपूर्ण धार्मिकता की सच्चाई!!
स्व हरिप्रसाद जी की रचना सामयिक है।
पढवाने के लिए आभार

Dr. Zakir Ali Rajnish said...


आज की धार्मिकता का कच्चा चिट्ठा।

…………..
अद्भुत रहस्य: स्टोनहेंज।
चेल्सी की शादी में गिरिजेश भाई के न पहुँच पाने का दु:ख..।

राज भाटिय़ा said...

धर्मात्मा और महात्मा हूँ,
जल्लादों से भी हूँ मैं बढ़ कर,
जल के बदले मदिरा पीता,
झूमा करता हूँ बढ़-चढ़ कर।
नही हमे नही बनना ऎसा... आज बहुत से लोग ऎसे ही धार्मिक तो है.... आज के हालात पर हरिप्रसाद जी की सुंदर रचना, धन्यवाद

परमजीत सिहँ बाली said...

रचना के भाव बहुत सुन्दर है।बहुत बढिया प्रस्तुति।आभार।

कौशल तिवारी 'मयूख' said...

bahut achhcha

ताऊ रामपुरिया said...

बहुत गहन अभिव्यक्ति, शुभकामनाएं.

रामराम

girish pankaj said...

avadhiyaa ji apne samay ke bade kavya-hastakshar thay. yah kavitaa unke ''kabeeree'' tevar ke nikat hai. aaj bhi samayik hai. dhanyvaad, ki aapne apne pitaji ke shreshtha lekhan ko samane lane ka upakram shuroo kiyaa hai.

Shah Nawaz said...

behtreen rachna.... log kab samjhenge?

Dev K Jha said...

बहुत सुन्दर..... वाह वाह

Udan Tashtari said...

हरिप्रसाद जी को पढवाने के लिए आभार.