Monday, September 13, 2010

देवपूजा ठानी मैं, नमाज हूँ भुलानी, हूँ तो मुगलानी, हिंदुआनी बन रहूँगी मैं... मुस्लिम कवियों की हिन्दी रचनाएँ

यहाँ पर हम चर्चा कर रहे हैं मुस्लिम कवियों की हिन्दी रचनाओं की। अनेक मुस्लिम कवियों का हिन्दी के सा था अटूट प्रेम रहा है जिसने बहुत सी रसमय काव्यों को जन्म दिया।

पहले हम जिक्र करेंगे मुस्लिम कवियों की भक्ति रचनाओं की और उसके बाद उनकी अन्य हिन्दी रचनाओं की। भक्ति एक विशुद्ध भावना है जिसने अनेक मुस्लिम कवियों को प्रभावित किया है। बाबा फरीद कहते हैं

कागा सब तन खाइयो, मेरा चुन-चुन मांस।
दो नैना मत खाइयो, मोहि पिया मिलन की आस॥


उपरोक्त दोहे में पिया मिलन का अर्थ है भगवान से मिलन!

बादशाह औरंगजेब की भतीजी ताज़ बेगम, जो कि ताज़बीबी के नाम से रचनाएँ लिखती थी, ने श्री कृष्ण जी का बड़ा ही मनमोहक वर्णन इस प्रकार से किया हैः

छैल जो छबीला, सब रंग में रंगीला
बड़ा चित्त का अड़ीला, कहूँ देवतों से न्यारा है।
माल गले सोहै, नाक-मोती सेत जो है कान,
कुण्डल मन मोहै, लाल मुकुट सिर धारा है।
दुष्टजन मारे, सब संत जो उबारे ताज,
चित्त में निहारे प्रन, प्रीति करन वारा है।
नन्दजू का प्यारा, जिन कंस को पछारा,
वह वृन्दावन वारा, कृष्ण साहेब हमारा है॥
सुनो दिल जानी, मेरे दिल की कहानी तुम,
दस्त ही बिकानी, बदनामी भी सहूँगी मैं।
देवपूजा ठानी मैं, नमाज हूँ भुलानी,
तजे कलमा-कुरान साड़े गुननि गहूँगी मैं॥
नन्द के कुमार, कुरबान तेरी सुरत पै,
हूँ तो मुगलानी, हिंदुआनी बन रहूँगी मैं॥


कबीर साहब तो भक्त कवि थे ही पर उनके पुत्र कमाल साहब ने भी भक्ति रचनाएँ लिखी हैं, वे कहते हैं

राम नाम भज निस दिन बंदे और मरम पाखण्डा,
बाहिर के पट दे मेरे प्यारे, पिंड देख बह्माण्डा ।
अजर-अमर अविनाशी साहिब, नर देही क्यों आया।
इतनी समझ-बूझ नहीं मूरख, आय-जाय सो माया।


रसखान तो अपने अगले जन्म में भी श्रीचरणों के प्रति अनुरक्ति की कामना करते हैं

मानुस हों तो वही रसखान, बसौं बृज गोकुल गांव के ग्वारन।
जो पसु हौं तो कहां बस मेरौ, चरौं नित नन्द की धेनु मंझारन।
पाहन हौं तो वही गिरि को, जो धरयो कर छत्र पुरंदर धारन।
जो खग हौं तो बसेरौ करों, नित कालिंदी कूल कदंब की डारन॥


और कारे बेग तो श्री कृष्ण पर इस प्रकार से दावा जताते हैं

एहौं रनधीर बलभद्र जी के वीर अब,
हरौ मेरी पीर क्या, हमारी बेर-बार की

हिंदुन के नाथ हो तो हमारा कुछ दावा नहीं,
जगत के नाथ हो तो मेरी सुध लिजिए


अब बात करते हैं मुस्लिम कवियों की अन्य हिन्दी रचनाओं की। मीर तकी मीर को भला कौन नहीं जानता होगा, उनकी निम्न रचना तो सुविख्यात हैः

पत्ता-पत्ता बूटा-बूटा हाल हमारा जाने है
जाने न जाने गुल ही न जाने, बाग़ तो सारा जाने है …


मीर का निम्न दोहा अतिशयोक्ति अलंकार का एक अनुपम उदाहरण हैः

बिरह आग तन में लगी जरन लगे सब गात।
नारी छूअत बैद के परे फफोला हाथ॥


अब जरा अमीर खुसरो के इन दोहों का आनन्द लीजिएः

खुसरो दरिया प्रेम का, उल्टी वा की धार।
जो उतरा सो डूब गया, जो डूबा सो पार॥

खुसरो रैन सुहाग की, जागी पी के संग।
तन मेरो मन पियो को, दोउ भए एक रंग॥


अबुल हसन यमीनुद्दीन ख़ुसरो देहलवी ने तो अपनी निम्न रचना में एक पंक्ति फारसी और दूसरी पंक्ति हिन्दी की लिखकर एक अनूठा प्रयोग ही कर डालाः

ज़ेहाल-ए-मिस्कीं मकुन तग़ाफ़ुल
दुराये नैना बनाये बतियाँ
कि ताब-ए-हिज्राँ न दारम ऐ जाँ
न लेहु काहे लगाये छतियाँ
चूँ शम्म-ए-सोज़ाँ, चूँ ज़र्रा हैराँ
हमेशा गिरियाँ, ब-इश्क़ आँ माह
न नींद नैना, न अंग चैना
न आप ही आवें, न भेजें पतियाँ
यकायक अज़ दिल ब-सद फ़रेबम
बवुर्द-ए-चशमश क़रार-ओ-तस्कीं
किसे पड़ी है जो जा सुनाये
प्यारे पी को हमारी बतियाँ
शबान-ए-हिज्राँ दराज़ चूँ ज़ुल्फ़
वरोज़-ए-वसलश चूँ उम्र कोताह
सखी पिया को जो मैं न देखूँ
तो कैसे काटूँ अँधेरी रतियाँ

8 comments:

मनोज कुमार said...

बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
शैशव, “मनोज” पर, आचार्य परशुराम राय की कविता पढिए!

Amit Sharma said...

तभी तो भारतेंदु बाबू ने कहा था ................
"इन मुसलमान हरिजनन पे कोटिन हिन्दुन वारिये"

arvind said...

bahut badhiya post sirji.....pata nahi kyon mere computer per aapka post display nahi ho raha thaa. isiliye follow karte hue bhi kabhi comments nahi kar paayaa..iske liye aapse maafi mangta hun...

अजित गुप्ता का कोना said...

बिरह आग तन में लगी जरन लगे सब गात।
नारी छूअत बैद के परे फफोला हाथ॥
हमें तो यह दोहा गजब का लगा। आपने बहुत ही रुचिकर पोस्‍ट लगायी है, बधाई।

उम्मतें said...

आप एक सन्देश देने के लिए इन्हें मुस्लिम कवि कहें तो चलेगा वर्ना मेरे लिए ये सभी हिन्दी के महान कवि हैं और दूसरे कवियों की तरह से !

जिनकी मातृभाषा / प्रिय भाषा जो हो वो उसमें रचे तो रचनाकार की पहचान में धार्मिक लेबिल क्यों लगाया जाये ?

निर्मला कपिला said...

सुन्दर प्रस्तुती। धन्यवाद।

प्रवीण पाण्डेय said...

ज्ञानमयी प्रस्तुति।

Rahul Singh said...

मैं छत्‍तीसगढ़ के जनाबों अकबर खां, बाबू खां, दाउद खां, शेर अली, फिर्रू खां, रहीम खां जैसे कितनों को याद करने लगा. मेरी अब तक पढ़ी आपकी पोस्‍ट में नंबर 1 की पोस्‍ट.