Tuesday, September 14, 2010

हिन्दी दिवस मनाने के आडम्बर का क्या अर्थ है?

साल भर चाहे हिन्दी की चिन्दी होती रहे पर साल में कम से कम एक दिन के लिए तो उसकी पूछ हो ही जाती है याने कि प्रतिवर्ष 14 सितम्बर के दिन हिन्दी को, दिखावे के लिए ही सही, रानी बना दिया जाता है। हिन्दी दिवस मनाया जाता है, शासकीय कार्यालयों में हिन्दी से सम्बन्धित अनेक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं जिनमें बड़े-बड़े शासकीय अधिकारी अंग्रेजी मिश्रित हिन्दी में भाषण दिया करते हैं। भारत सरकार ने आखिर हिन्दी को "राजभाषा" का दर्जा जो दिया है!

न राज रहे न राजा, रह गई है तो सिर्फ राजभाषा। भारत एक राष्ट्र है न कि एक राज। जब राज ही नहीं है तो यह बात समझ से परे है कि भारत की संविधान सभा ने 14 सितम्बर,  1949 को हिन्दी को राजभाषा बनाने का फैसला किस आधार पर किया? इस प्रकार से तो राष्ट्रपिता के स्थान पर राजपिता होना चाहिए था। भारत के पास अपना राष्ट्रीय ध्वज है, राष्ट्रीय गान है, राष्ट्रीय प्रतीक चिह्न है .... नहीं है तो सिर्फ राष्ट्रभाषा नहीं है।

आखिर क्यों हो एक राष्ट्रभाषा? भारत में अनेक भाषाएँ और बोलियाँ है भाई! संविधान के अनुच्छेद 344 (1) और 351 के अनुसार उनमें से निम्न भाषाएँ मुख्य तौर पर बोली जाती हैं

अंग्रेजी, आसामी, बंगाली, बोडो, डोगरी, गुजराती, हिन्दी, कन्नड़, कश्मीरी, कोंकणी, मैथिली, मलयालम, मणिपुरी, मराठी, नेपाली, उड़िया, पंजाबी, संस्कृत, संथाली, सिंधी, तमिल, तेलुगु और उर्दू।

अब भारत शासन यदि हिन्दी को राष्ट्रभाषा का दर्जा दे देती तो शेष भाषाओं को क्या दोयम दर्जा देना नहीं होगा? तो निश्चय किया गया कि भारत में राष्ट्रभाषा न होकर राजभाषा होनी चाहिए! इस प्रकार से सभी सन्तुष्ट रहेंगे। भारत में तो तुष्टिकरण का शुरू से ही रवैया रहा है।

भारत में अधिकृत रूप से कोई भी भाषा राष्ट्रभाषा नहीं है किन्तु देखा जाए तो आज भी परोक्ष रूप से अंग्रेजी ही इस राष्ट्र की राष्ट्रभाषा है। शासकीय नियम के अनुसार हिन्दीभाषी क्षेत्र के कार्यालयों के नामपटल द्विभाषीय अर्थात् हिन्दी और अंग्रेजी में तथा अन्य क्षेत्रों में त्रिभाषीय अर्थात् क्षेत्रीय भाषा, हिन्दी और अंग्रेजी में होने चाहिए। याने कि क्षेत्र चाहे हिन्दीभाषी हो या अन्य, अंग्रेजी का वहाँ होना आवश्यक है। तो है कि नहीं परोक्ष रूप से भारत की राष्ट्रभाषा अंग्रेजी!

भारत का राष्ट्रीय शासन अपने संविधान के अनुच्छेद 343 के अनुसार संकल्प लेती है कि संघ की राजभाषा हिंदी रहेगी और उसके अनुच्छेद  351  के अनुसार हिंदी  भाषा का प्रसार,  वृद्धि करना और उसका विकास करना ताकि वह भारत की सामासिक संस्कृति  के सब तत्वों की अभिव्यक्ति का माध्यम हो सके, संघ का कर्तव्य है।
हिंदी के प्रसार एंव विकास की गति बढ़ाने के हेतु तथा संघ के विभिन्न राजकीय प्रयोजनों के लिए उत्तरोत्तर इसके प्रयोग हेतु भारत सरकार द्वारा एक अधिक गहन एवं व्यापक कार्यक्रम तैयार किया जाएगा और उसे कार्यान्वित किया जाएगा। (लिंक)

इस संकल्प को पूरा करने का कितना प्रयास किया गया और जा रहा है यह तो इसी बात से पता चल जाता है कि हमारे बच्चे आज हमसे पूछते हैं कि "चौंसठ" का मतलब "सिक्स्टी फोर" ही होता है ना? उन्हें "सिक्स्टी फोर" की समझ है, "चौंसठ" की नहीं। बच्चों की बात छोड़िए आज हममें से ही अधिकतर लोगों को यह भी नहीं पता है कि अनुस्वार, चन्द्रबिंदु और विसर्ग क्या होते हैं। हिन्दी के पूर्णविराम के स्थान पर अंग्रेजी के फुलस्टॉप का अधिकांशतः प्रयोग होने लगा है। अल्पविराम का प्रयोग तो यदा-कदा देखने को मिल जाता है किन्तु अर्धविराम का प्रयोग तो लुप्तप्राय हो गया है।

विडम्बना तो यह है कि परतन्त्रता में तो हिन्दी का विकास होता रहा किन्तु जब से देश स्वतन्त्र हुआ, हिन्दी का विकास ही रुक गया उल्टे उसकी दुर्गति होनी शुरू हो गई। स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद शासन की नीति तुष्टिकरण होने के कारण हिन्दी को राष्ट्रभाषा के स्थान पर "राजभाषा" बना दिया गया। विदेश से प्रभावित शिक्षानीति ने हिन्दी को गौण बना कर अग्रेजी के महत्व को ही बढ़ाया। हिन्दी की शिक्षा धीरे-धीरे मात्र औपचारिकता बनते चली गई। दिनों-दिन अंग्रेजी माध्यम वाले कान्वेंट स्कूलों के प्रति मोह बढ़ते चला गया और आज हालत यह है कि अधिकांशतः लोग हिन्दी की शिक्षा से ही वंचित हैं।

भाषा के प्रचार के लिए सिनेमा एक सशक्त माध्यम है किन्तु भारतीय सिनमा में हिन्दी फिल्मों की भाषा हिन्दी न होकर हिन्दुस्तानी, जो कि हिन्दी और उर्दू की खिचड़ी है, रही। और इसका प्रभाव यह हुआ कि लोग हिन्दुस्तानी को ही हिन्दी समझने लगे। दूसरा प्रभावशाली माध्यम है मीडिया किन्तु टीव्ही के निजी चैनलों ने हिन्दी में अंग्रेजी का घालमेल करके हिन्दी को गर्त में और भी नीचे ढकेलना शुरू कर दिया और वहाँ प्रदर्शित होने वाले विज्ञापनों ने तो हिन्दी की चिन्दी करने में "सोने में सुहागे" का काम किया। इसी प्रकार से रोज पढ़े जाने वाले हिन्दी समाचार पत्रों, जिनका प्रभाव लोगों पर सबसे अधिक पड़ता है, ने भी वर्तनी तथा व्याकरण की गलतियों पर ध्यान देना बंद कर दिया और पाठकों का हिन्दी ज्ञान अधिक से अधिक दूषित होते चला गया।

अब अन्तरजाल में ब्लोग्स का साम्राज्य है। हिन्दी ब्लोग्स की संख्या में निरन्तर वृद्धि हो रही है किन्तु प्रायः हिन्दी ब्लोग्स में "हम मुर्ख हैं", "बातें कि जाये" आदि पढ़ने के लिए मिलता है। यह सोचकर कि वर्तमान में हिन्दी भाषा के लिए उन्नत तकनीक उपलब्ध नहीं हैं और अनेक अहिन्दीभाषी लोग भी हिन्दी ब्लोग लिख रहे हैं तथा उनसे ऐसा होना स्वाभाविक है, एक बार इसे अनदेखा किया भी जा सकता है मगर दुःख तो इस बात का होता है कि कई बार उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ जैसे हिन्दीभाषी क्षेत्र के ब्लोगरों के ब्लोग्स में भी हिज्जे और व्याकरण की गलतियाँ मिलती हैं। इसका मुख्य कारण सिर्फ यही लगता है कि हम हिन्दीभाषी ब्लोगर्स अपनी प्रविष्टियाँ आनन फानन में बिना जाँचे ही प्रकाशित कर देते हैं। यदि हम अपनी प्रविष्टियाँ प्रकाशित करने के पहले एक बार उसे पढ़ लें तो इस प्रकार की गलतियाँ हो ही नहीं सकती।

हिन्दी ब्लोग्स में अंग्रेजी-हिन्दी की खिचड़ी वाले ऐसे-ऐसे शब्दों का प्रयोग किया जा रहा है जिनका अर्थ न तो नलंदा विशाल शब्दसागर जैसे हिन्दी से हिन्दी शब्दकोश में खोजने पर भी नहीं मिलता और न ही आक्फोर्ड, भार्गव आदि अंग्रेजी से हिन्दी शब्दकोशों में।

इन्सान गलतियों का पुतला है, मुझसे भी अपने पोस्ट में अनेक बार हिज्जों तथा व्याकरण की गलतियाँ होती हैं, हो सकता है कि इस पोस्ट में भी हुई हों। मेरा प्रयास तो यही रहता है कि ऐसी गलतियाँ न हों किन्तु कई बार प्रयास के बावजूद भी रह जाती हैं, पता चलने पर उन्हें सुधारता भी हूँ। अनजाने में हुई गलती क्षम्य है किन्तु जानबूझ कर की जाने वाली गलतियों के विषय में क्या कहा जा सकता है?

यदि हम अपनी रचनाओं के माध्यम से हिन्दी को सँवारने-निखारने का कार्य नहीं कर सकते तो क्या हमारा यह कर्तव्य नहीं बनता कि कम से कम उसके रूप को विकृत करने का प्रयास तो न करें।

चलते-चलते

राष्ट्रभाषा के उद्‍गार

(स्व. श्री हरिप्रसाद अवधिया रचित कविता)

मैं राष्ट्रभाषा हूँ -
इसी देश की राष्ट्रभाषा, भारत की राष्ट्रभाषा

संविधान-जनित, सीमित संविधान में,
अड़तिस वर्षों से रौंदी एक निराशा
मैं इसी देश की राष्ट्रभाषा।
तुलसी, सूर, कबीर, जायसी,
मीरा के भजनों की भाषा,
भारत की संस्कृति का स्पन्दन,
मैं इसी देश की राष्ट्रभाषा।

स्वाधीन देश की मैं परिभाषा-
पर पूछ रही हूँ जन जन से-
वर्तमान में किस हिन्दुस्तानी
की हूँ मैं अभिलाषा?
मैं इसी देश की राष्ट्रभाषा।

चले गये गौरांग देश से,
पर गौरांगी छोड़ गये
अंग्रेजी गौरांगी के चक्कर में,
भारत का मन मोड़ गये
मैं अंग्रेजी के शिविर की बन्दिनी
अपने ही घर में एक दुराशा
मैं इसी देश की राष्ट्रभाषा।

मान लिया अंग्रेजी के शब्द अनेकों,
राष्ट्रव्यापी बन रुके हुये हैं,
पर क्या शब्दों से भाषा निर्मित होती है?
तब क्यों अंग्रेजी के प्रति हम झुके हये हैं?
ले लो अंग्रेजी के शब्दों को-
और मिला दो मुझमें,
पर वाक्य-विन्यास रखो हिन्दी का,
तो, वो राष्ट्र! आयेगा गौरव तुझमें।

'वी हायस्ट नेशनल फ्लैग एण्ड सिंग
नेशनल सांग के बदले
अगर बोलो और लिखो कि
हम नेशनल फ्लैग फहराते-
और नेशनल एन्थीम गाते हैं-
तो भी मै ही होउँगी-
नये रूप में भारत की राष्ट्रभाषा
मैं इसी देश की राष्ट्रभाषा।

मैं हूँ राष्ट्रभाषा
मैं इसी देश की राष्ट्रभाषा।

(रचना तिथिः गुरुवार 15-08-1985)

10 comments:

समयचक्र said...

बढ़िया चिंतन ..
हिंदी दिवस पर हार्दिक बधाई और ढेरों शुभकामनाये....
जय हिंद जय हिंदी

ब्लॉ.ललित शर्मा said...

Whish you gr8 Hindi Day

arvind said...

aapki chintaayen vaajib hain...badhiya post.. saabhaar.

उम्मतें said...

अरे भाई हम तो साल भर यही ओढते बिछाते हैं ! एक दिन का लफडा अपनी समझ में कभी नहीं आया !

राजेश उत्‍साही said...

हिन्‍दी प्रेमियों से अनुरोध है कि अपना प्रेम दर्शाने के लिए सबसे पहले यह देखें कि टिप्‍पणी के साथ प्रदर्शित होने वाला आपका नाम किस भाषा में हैं। अगर आप हिन्‍दी में ब्‍लाग लिख रहे हैं तो सबसे पहले तो अपना नाम ही हिन्‍दी में लिखें।
अब बताएं कि कितने लोगों के हस्‍ताक्षर हिन्‍दी में हैं। हां हस्‍ताक्षर दो हो सकते हैं एक अंग्रेजी और एक हिन्‍दी में । मेरा अपना हस्‍ताक्षर केवल हिन्‍दी में है। फिर चाहे मुझे अंग्रेजी दस्‍तावेज पर हस्‍ताक्षर करना हो हिन्‍दी पर। आखिर आपकी पहचान तो एक ही होती है न। तो मित्रों अगर अभी त‍क आपने यह दोनों बातें नहीं की हैं तो अब कर लें। इस हिन्‍दी दिवस पर आपका यही योगदान होगा और संकल्‍प भी। वरना बड़ी बड़ी बातें तो जमाने से चली आ रही हैं और चलती रहेंगी।

प्रवीण पाण्डेय said...

हिन्दी को 15 दिन तक सीमित करने का प्रयास।

Asha Joglekar said...

इतने दुखी न हों अब ब्लॉग जगत है ना हिदी की धुरा सम्हालने को । हिन्दी दिवस की शुभ कामनाएँ ।

शिवम् मिश्रा said...


बेहतरीन पोस्ट लेखन के बधाई !

आशा है कि अपने सार्थक लेखन से, आप इसी तरह, हिंदी ब्लाग जगत को समृद्ध करेंगे।

आपकी पोस्ट की चर्चा ब्लाग4वार्ता पर है-पधारें

nayee dunia said...

हिंदी का अस्तित्व कौन मिटा सकता है भला .....

vandana gupta said...

सच कहा

हिन्दी ना बनी रहो बस बिन्दी
मातृभाषा का दर्ज़ा यूँ ही नही मिला तुमको
और जहाँ मातृ शब्द जुड जाता है
उससे विलग ना कुछ नज़र आता है
इस एक शब्द मे तो सारा संसार सिमट जाता है
तभी तो सृजनकार भी नतमस्तक हो जाता है
नही जरूरत तुम्हें किसी उपालम्भ की
नही जरूरत तुम्हें अपने उत्थान के लिये
कुछ भी संग्रहित करने की
क्योंकि
तुम केवल बिन्दी नहीं
भारत का गौरव हो
भारत की पहचान हो
हर भारतवासी की जान हो
इसलिये तुम अपनी पहचान खुद हो
अपना आत्मस्वाभिमान खुद हो …………