साहिर साहब ने एक गीत लिखा था "वो सुबह हमीं से आयेगी" किन्तु फिल्म "फिर सुबह होगी" में उन्होंने अपने उसी गीत को "वो सुबह कभी तो आयेगी" के रूप में बदल दिया था। प्रस्तुत हैं दोनों गीतः
वो सुबह हमीं से आयेगी
जब धरती करवट बदलेगी, जब क़ैद से क़ैदी छूटेंगे
जब पाप घरौंदे फूटेंगे, जब ज़ुल्म के बन्धन टूटेंगे
उस सुबह को हम ही लायेंगे, वो सुबह हमीं से आयेगी
वो सुबह हमीं से आयेगी
मनहूस समाजों ढांचों में, जब जुर्म न पाले जायेंगे
जब हाथ न काटे जायेंगे, जब सर न उछाले जायेंगे
जेलों के बिना जब दुनिया की, सरकार चलाई जायेगी
वो सुबह हमीं से आयेगी
संसार के सारे मेहनतकश, खेतो से, मिलों से निकलेंगे
बेघर, बेदर, बेबस इन्सां, तारीक बिलों से निकलेंगे
दुनिया अम्न और खुशहाली के, फूलों से सजाई जायेगी
वो सुबह हमीं से आयेगी
अब देखिए साहिर जी अपने उसी गीत को कैसे दूसरा रूप दे देते हैः
वो सुबह कभी तो आयेगी
इन काली सदियों के सर से, जब रात का आंचल ढलकेगा
जब दुख के बादल पिघलेंगे, जब सुख का सागर छलकेगा
जब अम्बर झूम के नाचेगा, जब धरती नज़्में गायेगी
वो सुबह कभी तो आयेगी
जिस सुबह की खातिर जुग-जुग से, हम सब मर-मर कर जीते हैं
जिस सुबह के अमृत की धुन में, हम जहर के प्याले पीते हैं
इन भूखी प्यासी रूहों पर, इक दिन तो करम फर्मायेगी
वो सुबह कभी तो आयेगी
माना कि अभी तेरे मेरे, अरमानों की कीमत कुछ भी नहीं
मिट्टी का भी है कुछ मोल मगर, इन्सानों की कीमत कुछ भी नहीं
इन्सानों की इज्जत जब झूठे, सिक्कों में न तोली जायेगी
वो सुबह कभी तो आयेगी
दौलत के लिये जब औरत की, इस्मत को न बेचा जायेगा
चाहत को न कुचला जायेगा, ग़ैरत को न बेचा जायेगा
अपनी काली करतूतों पर, जब ये दुनिया शर्मायेगी
वो सुबह कभी तो आयेगी
बीतेंगे कभी तो दिन आख़िर, ये भूख के और बेकारी के
टूटेंगे कभी तो बुत आख़िर, दौलत की इजारादारी के
जब एक अनोखी दुनिया की बुनियाद उठाई जायेगी
वो सुबह कभी तो आयेगी
मजबूर बुढ़ापा जब सूनी, राहों की धूल न फांकेगा
मासूम लड़कपन जब गंदी, गलियों में भीख न मांगेगा
ह़क मांगने वालों को जिस दिन, सूली न दिखाई जायेगी
वो सुबह कभी तो आयेगी
फ़ाको की चिताओं पर जिस दिन, इन्सां न जलाये जायेंगे
सीनों के दहकते दोज़ख में, अर्मां न जलाये जायेंगे
ये नरक से भी गन्दी दुनिया, जब स्वर्ग बनाई जायेगी
वो सुबह कभी तो आयेगी
13 comments:
साहिर साहेब की यह अनमोल रचना पढ़वाकर बड़ा उपकार किया आपने
धन्यवाद !
बिलकुल, हमीं से आएगी।
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प्यार का तावीज..
सर्प दंश से कैसे बचा जा सकता है?
मजबूर बुढ़ापा जब सूनी, राहों की धूल न फांकेगा
मासूम लड़कपन जब गंदी, गलियों में भीख न मांगेगा
ह़क मांगने वालों को जिस दिन, सूली न दिखाई जायेगी
वो सुबह कभी तो आयेगी
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति, आभार ।
दोनों ही गीत बहुत अच्छे हैं। आपका आभार।
वाह , बहुत खूब । बढ़िया प्रस्तुति अवधिया जी । आभार ।
दोनों ही अपने अपने भावों में दमदार।
जिस तरह फूलों से उनकी महक नहीं छीनी जा सकती..
उसी तरह इन गीतों की चहक इन दिलों से नहीं जा सकतीं...
क्या गीत हैं दोनों.. सभी के साथ बांटने के लिए बधाई..
आभार
दोनो गीत ही बहुत अच्छॆ लगे, दुसरे गीत मै आशा दिखती है जब की पहले गीत मै जोश दिखता है ओर सच भी कि ....
वो सुबह हमीं से आयेगी... जब हम सब मिल कर इन सिस्टम को बदलेगे, तभी वो सुबह हमीं लायेगे.
धन्यवाद इन सुंदर गीतो के लिये
ये दोनों गीत हमारे पसंदीदा गीतों में से हैं !
इस दुर्लभ जानकारी और दोनों गीत पढ़वाने के लिए शुक्रिया।
अवधिया जी,
इसी फिल्म का एक और गीत है...चीन-ओ-अरब हमारा, रहने को घर नहीं, कहने को सारा हिंदुस्तान हमारा...बेहतरीन गीत है...उसमें राज कपूर बंबई में एक बेंच पर सोना चाहते हैं तो पुलिस वाला उन्हें उठा देता है...साथ ही कहता है फूटो यहां से..फिर राज यही गीत गाते हैं...
जय हिंद...
बेहतरीन लेखन के बधाई
तेरे जैसा प्यार कहाँ????
आपकी पोस्ट की चर्चा ब्लाग4वार्ता पर है-पधारें
ワウワウ..素敵な記事 ..,इस नगमे के बोल ह्रदय को छूते हुए आत्मा तक पहुच जाते है
तहे दिल से शुक्रिया अदा करता हूँ ..नगमा याद आया भेज रहा हूँ ,फुरसत से सुनियेगा.. मक्
My recent youtube upload ..
वो सुबह कभी तो आयेगी...
http://www.youtube.com/watch?v=a3g1nivv0-A
http://www.youtube.com/mastkalandr
http://www.youtube.com/9431885
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